संध्या जैन। श्रीनगर की प्रसिद्ध हजरतबल दरगाह के जीर्णोद्धार शिलापट्ट पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चक्र की उपस्थिति ने ईद-ए-मिलाद (पैगंबर का जन्मदिन पांच सितंबर) पर मस्जिद जाने वाले कुछ कश्मीरी मुसलमानों में आक्रोश भड़का दिया। अशोक चक्र को निशाना बनाकर की गई तोड़फोड़ की घटना ने पूरे देश की भावनाओं को ठेस पहुंचाई।

यह मुद्दा इस्लाम के भीतर और इस्लाम एवं गैर-इस्लाम के भीतर की संवेदनशीलताओं से जुड़ा है। चूंकि राजनीति इस विवाद में शामिल हो गई, इसलिए इस विषय की निष्पक्ष पड़ताल जरूरी है। जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड ने अस्सरी शरीफ हजरतबल दरगाह का जीर्णोद्धार कराया था।

इसका उद्घाटन तीन सितंबर, 2025 को जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष डा. सैयद दरख्शां अंद्राबी ने किया। शिलापट्ट पर अंकित अन्य सदस्यों में सैयद मोहम्मद हुसैन, डा. गुलाम नबी हलीम, बोर्ड के तहसीलदार इश्तियाक मोहिउद्दीन और इंजीनियर सैयद गुलाम ए मुर्तजा शामिल हैं।

शिलापट्ट के शीर्ष पर बीच में एक उर्दू पाठ है। दाहिनी ओर अर्धचंद्र के ऊपर मस्जिद का चित्र है और बाईं तरफ उसी आकार का अशोक चक्र का प्रतीक है। न तो यह शिलापट्ट और न ही उस पर अंकित कोई भी प्रतीक इबादत का था। यह निश्चित है कि अशोक चक्र पर तीन सितंबर को ही ध्यान दिया गया। फिर भी चार सितंबर तक असहमति या विरोध की कोई आवाज नहीं उठी। पांच सितंबर को ही विरोध प्रकट किया गया।

पहले पुरुषों और फिर महिलाओं के एक समूह ने पत्थर मार-मारकर शिलापट्ट में अंकित प्रतीक में तोड़फोड़ कर उसे मिटा दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि यह हरकत सोच-समझकर की गई। आश्चर्यजनक रूप से राजनीतिक नेताओं द्वारा इस तोड़फोड़ का बचाव किया गया। वे इस मामले को बोर्ड या राज्यपाल के समक्ष निजी तौर पर उठा सकते थे, लेकिन उन्होंने अलग और लोगों को भड़काने वाला रवैया अपनाया। उनका इरादा कश्मीर के साथ देश में भावनाओं को भड़काने का प्रतीत हुआ। यह तर्क पूरी तरह खोखला लगता है कि दिल्ली में संसद भवन में बने शेर प्रतीकात्मक हैं और दरगाह के धार्मिक मूल्यों के साथ असंगत हैं।

हजरतबल दरगाह की प्रसिद्धि एक पवित्र अवशेष, पैगंबर मुहम्मद की दाढ़ी के एक बाल के कारण है, जिसे मोई-ए-मुकद्दस कहा जाता है। इसे पैगंबर के व्यक्तिगत प्रतीक के रूप में सम्मान दिया जाता है, हालांकि इसकी औपचारिक रूप से इबादत नहीं की जाती। सवाल उठता है कि क्या अशोक चक्र को गणतंत्र के प्रतीक के रूप में उस पट्टिका पर सम्मान नहीं दिया जा सकता था, जहां उसकी औपचारिक रूप से इबादत नहीं की जा रही थी? अंद्राबी ने इस तोड़फोड़ की निंदा करते हुए इसे एक “आतंकवादी हमला” और संविधान, दरगाह की गरिमा और राष्ट्रीय प्रतीकों पर हमला बताया।

उन्होंने इस उपद्रव के लिए नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार ठहराया और इसे वक्फ बोर्ड पर नियंत्रण न रख पाने की उनकी हताशा से जोड़ा। इस कथन में कुछ दम नजर आता है। इसलिए और भी, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने मस्जिदों और दरगाहों पर नियंत्रण करके और उन्हें वक्फ बोर्ड के अधीन लाकर कश्मीरी मुसलमानों के एक प्रमुख नेता के रूप में अपनी सार्वजनिक छवि बनाई थी। यह उनकी राजनीति का आधार स्तंभ था। शायद नेशनल कांफ्रेंस को वक्फ बोर्ड पर अपना नियंत्रण न होने का अफसोस है।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक तरह से दरगाह के शिलापट्ट में अशोक चक्र के साथ की गई तोड़फोड़ का समर्थन किया। उन्होंने मजहबी स्थल पर अशोक चिह्न लगाने पर सवाल उठाया और तोड़फोड़ में शामिल लोगों पर जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) लगाने का भी विरोध किया। उमर अब्दुल्ला की बातों का समर्थन पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती एवं उनकी बेटी ने भी किया।

महबूबा मुफ्ती ने कहा कि दरगाह पर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न रखना ईशनिंदा के समान है। उन्होंने यह भी दावा किया कि विरोध प्रदर्शन “प्रतीक चिह्न के खिलाफ नहीं”, बल्कि “मूर्ति पूजा” के खिलाफ था। माकपा नेता और विधायक एमवाई तारिगामी और मीरवाइज उमर फारूक ने भी प्रदर्शनकारियों का पक्ष लिया।

इस मामले में यह सवाल अपनी जगह मौजूद है कि आखिर तीन या चार सितंबर को किसी ने आवाज क्यों नहीं उठाई? इस सवाल के बीच कुछ मुसलमानों ने प्रदर्शनकारियों की यह कहते हुए आलोचना की कि अशोक स्तंभ भारत की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा और राष्ट्रीय प्रतीक है। मस्जिद के बाहर शिलापट्ट पर उसकी उपस्थिति न तो नमाज में बाधा डालती है और न ही मजहबी आस्था को किसी तरह का नुकसान पहुंचाती है।

दिलचस्प बात यह है कि अशोक चक्र हज पहचान पत्रों पर भी अंकित है और भारतीय पासपोर्ट पर भी। इसी कारण ऐसे सवाल उठाए जा रहे हैं कि अशोक चक्र का विरोध करने वाले क्या हज यात्रा के दौरान भारतीय पासपोर्ट का विरोध करेंगे? इस विवाद के बीच आठ सितंबर को सोशल मीडिया पर हजरतबल दरगाह पर लगे एक हरे और सफेद रंग के होर्डिंग की तस्वीर सामने आई। पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान (2017-2022) लगाए गए इस होर्डिंग पर अशोक चक्र अंकित है और योजना का संदेश लिखा है।

यह केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय (2014-15) की एक पहल थी, जो ऐतिहासिक महत्व के तीर्थ स्थलों के विकास के लिए थी। यदि आलोचक इस नतीजे पर पहुंच रहे हैं कि नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा राष्ट्रीय प्रतीक का विरोध पूरी तरह राजनीतिक है तो उन्हें गलत नहीं कहा जा सकता। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि कई इस्लामी देशों की मस्जिदों की होर्डिंग्स-शिलापट्ट में वहां के राष्ट्रीय प्रतीक अंकित हैं।

भारत के मुसलमानों को अरब के कुछ इस्लामी देशों से सीख लेनी चाहिए, जहां इस्लाम का जन्म हुआ। वे एक उदार इस्लाम का समर्थन कर रहे हैं। इतना ही नहीं, ये देश कट्टरपंथियों के सोच और उनकी क्रूरता से अपने युवाओं को दूर रख रहे हैं। ये इस्लामी देश अपने देश के लोगों को सुसंस्कृत नागरिक बनने की प्रेरणा भी दे रहे हैं। आखिर भारत के मुसलमान इन इस्लामी देशों के मुसलमानों का अनुकरण क्यों नहीं कर सकते?

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)