राजीव सचान। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से 103 मिनट के अपने लंबे संबोधन में देश-दुनिया का ध्यान खींचने वाली जो महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं, उन पर अब तक चर्चा हो रही है। इसलिए हो रही है, क्योंकि कुछ घोषणाएं देश का कायाकल्प करने वाली हैं। जीएसटी में व्यापक बदलाव समेत नए दौर के आर्थिक सुधार लाने, रोजगार की नई योजना शुरू करने, डेमोग्राफी मिशन की तैयारी से लेकर रक्षा से जुड़ी सुदर्शन चक्र और ऊर्जा सुरक्षा संबंधी समुद्र मंथन जैसी योजनाओं की घोषणाएं ऐसी हैं कि यदि उन पर आधा भी अमल हो सके तो देश का भाग्योदय हो सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने जब से कार्यभार संभाला है, तब से ही अर्थात 2014 से लाल किले से दिए गए उनके भाषणों की कुछ बातों का उल्लेख रह-रह कर होता है। ऐसी कुछ घोषणाओं ने तो प्रभावी योजनाओं का रूप भी लिया, जैसे स्वच्छ भारत अभियान, शौचालय निर्माण, आयुष्मान भारत योजना, कृषि सम्मान निधि आदि। प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ भी कुछ न कुछ कहते रहे हैं। 2024 में उन्होंने दो टूक कहा था,‘भ्रष्टाचार के खिलाफ मेरी लड़ाई ईमानदारी के साथ जारी रहेगी और भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई जरूर होगी। मैं उनके लिए भय का वातावरण पैदा करना चाहता हूं। देश के सामान्य नागरिकों को लूटने की जो परंपरा बनी है, उसे मुझे रोकना है।’

इसके अलावा वे पीएम बनने के पहले यह भी कह चुके हैं कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा। क्या यह कहा जा सकता है कि भ्रष्ट तत्वों के लिए भय के वातावरण का निर्माण हो सका है? इसका सीधा जवाब है-नहीं। केवल यह कहना ही सही नहीं कि सरकारी क्षेत्र में जहां किसी तरह का निर्माण, वहां भ्रष्टाचार। सच यह भी है कि जहां भी किसी तरह का सरकारी दखल, वहां पैसे लेने-देने का चलन। यदि सरकारी तंत्र को कोई अनुमति-स्वीकृति देनी है या किसी तरह का प्रमाणन या नवीनीकरण करना है तो वह बिना जेब ढीली किए होना मुश्किल है।

कई बार लोगों के जायज काम भी कुछ दिए बिना नहीं होते और सब जानते हैं कि नाजायज काम होते रहते हैं। सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार बढ़ते-बढ़ते इतना व्यापक हो गया है कि वह निजी क्षेत्र में भी घुस गया है। सरकारी क्षेत्र में मलाईदार पदों पर नियुक्तियों, कोई काम या ठेका देने अथवा खरीद में जैसा भ्रष्टाचार है, वैसा ही कुछ-कुछ निजी क्षेत्र में भी है। कमीशनबाजी हर कहीं है। यह है तो दलाली और घूसखोरी ही, पर अब उसे सुविधा शुल्क भी कहते हैं। इसके आधार पर ऐसे निष्कर्ष पर भी नहीं पहुंचा जाए कि देश गड्ढे में जा रहा है अथवा सबके सब सरकारी अधिकारी-और कर्मचारी भ्रष्ट हैं। ऐसा नहीं है।

भारत विरोधाभासों का देश है। अपने यहां कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी-कर्मचारी भी हैं और वे अपना काम सही तरीके से भी करते हैं। कुछ तो फोन पर भी जनता की शिकायत सुनकर उसका समाधान कर देते हैं, पर यह कहना बहुत कठिन है नौकरशाही में उनकी ही अधिकता है। ऐसा होता तो आज परिदृश्य कुछ और होता। इसके बाद भी यह सही से काम करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों की ही कर्तव्यनिष्ठा का नतीजा है कि कुछ सरकारी विभागों का कामकाज सुधरा और सुगम हुआ है। इसका लाभ भी मिला है।

यदि उदाहरण देना हो तो पासपोर्ट कार्यालय, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) आदि का दिया जा सकता है। राज्य सरकारों के भी कुछ विभागों के कामकाज में सुधार के साथ पारदर्शिता बढ़ी है। यदि कहीं-कहीं सरकारी काम में लगने वाला समय कम हुआ है, कुछ सरकारी दफ्तरों में कतारें कम या खत्म हुई हैं और समय के साथ औसत लोगों की आय बढ़ी है एवं देश पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है तो इसका मतलब है कि कुछ अच्छा हुआ है और हो रहा है, लेकिन क्या हम विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में सही गति और दिशा में बढ़ रहे हैं?

हम विकसित देश के लक्ष्य को पाने की सही गति और दिशा पकड़ सकें, इसके लिए अभी बहुत कुछ करना है-केंद्र सरकार को भी, राज्य सरकारों को भी और सबसे बड़ी बात उनकी नौकरशाही को भी। भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ को प्राथमिकता के आधार पर खत्म करना होगा। यह गठजोड़ स्थानीय निकायों के स्तर पर ही शुरू हो जाता है। यदि सरकारी वेतन बढ़ रहे हैं तो सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती भी बढ़ानी होगी। भ्रष्ट तत्वों के मन में सचमुच दंडित होने का भय होना चाहिए, भले ही वे कितने ही उच्च पद पर हों। भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती दिखाने की बातें तो होती रहती हैं, लेकिन नतीजा वैसा नहीं, जैसा दिखना चाहिए।

अपने देश में भ्रष्ट सरकारी अफसरों-कर्मियों को दंडित करना अब भी कठिन है। शीर्ष स्तर के भ्रष्ट अफसरों को तो दंड देना कुछ ज्यादा ही कठिन है। कई बार नेताओं से भी अधिक। यह ठीक है कि उन्हें एक हद तक संरक्षण मिलना चाहिए, ताकि वे बिना किसी भय और दबाव के फैसले ले सकें, लेकिन इस कवच के दायरे में भ्रष्ट तत्व क्यों आने चाहिए?

निःसंदेह कोई भी देश और यहां तक कि लाखों की आबादी वाले देश भी भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त नहीं, लेकिन वे भ्रष्ट तौर-तरीकों पर प्रभावी रोक लगा सकते हैं। सबसे अधिक आबादी वाला भारत भी ऐसा कर सकता है। जब भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, तभी भारत तेजी से आगे बढ़ेगा और विकसित देश के सपने को साकार करेगा।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)