भारत के लिए सुनहरा अवसर चुनौतियों से निपटने के लिए अमिताभ कांत के सुझाव
भारत ने 2030 का हरित ऊर्जा लक्ष्य पांच साल पहले ही हासिल कर लिया है और एआइ क्वांटम कंप्यूटिंग और डीप टेक में भारी निवेश कर रहा है। चुनौतियां बनी हुई हैं लेकिन दिशा स्पष्ट है। हम एक आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं जिसे महत्वाकांक्षा दृढ़ता और सुधार शक्ति दे रहे हैं।
अमिताभ कांत। विश्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और भारत की परीक्षा हो रही है, लेकिन हर चुनौती एक अवसर भी लेकर आता है। टैरिफ और प्रतिकूल वैश्विक परिस्थितियां हमारे संकल्प को कमजोर नहीं करनी चाहिए। उन्हें हमें प्रेरित करना चाहिए। भारत को साहसिक कदम उठाकर अवसर को भुनाना होगा। यह हमारे लिए पीढ़ी में एक बार मिलने वाला नेतृत्व करने का अवसर है। इसे हाथ से जाने नहीं देना चाहिए।
27 अगस्त से भारत पर अमेरिका का 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगेगा, जो राष्ट्रपति ट्रंप के 'पारस्परिक' शुल्क में सबसे अधिक है। अमेरिका का आरोप है कि भारत, रूस से तेल खरीदकर रूस की वित्तीय मदद कर रहा है, लेकिन तुर्किए पर यह शुल्क 15 प्रतिशत ही है। यूरोपीय संघ के बराबर है। तुर्किये रूसी तेल का सबसे बड़ा आयातक है। उसने जनवरी 2022 से रूसी गैस के लिए 297 अरब यूरो का भुगतान किया है। व्हाइट हाउस को यह भी पता नहीं कि अमेरिका रूस से उर्वरक का आयात करता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-अमेरिका आर्थिक, व्यापारिक और राजनीतिक संबंधों में भारी निवेश किया है, लेकिन अमेरिका का टकराव वाला रुख भविष्य के सहयोग को प्रभावित करेगा। हम अपनी ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता नहीं कर सकते। यह भी स्पष्ट है कि भारत झुकने से इन्कार कर रहा है। ऐसा ही हमने अतीत में कई बार किया है। वैश्विक दबाव हमें डराने के बजाय इसके लिए प्रेरित करने वाला होना चाहिए कि हम वे ऐतिहासिक सुधार करें, जिनकी हमें सख्त जरूरत है।
वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी भारत का सबसे महत्वपूर्ण कर सुधार है। सात साल बाद कर संग्रह बढ़ रहा है।
जीएसटी ने अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने में सहायता की है। समय आ गया है कि मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ जीएसटी सुधार आगे बढ़ाए जाएं। हमें दो-दर वाले जीएसटी ढांचे की ओर बढ़ना चाहिए और उसकी प्रक्रियाओं में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहिए। नई पंजीकृत कंपनियों और स्टार्टअप्स को जीएसटी नंबर, उनके पैन-टैन के साथ मिलने चाहिए। जीएसटी पंजीकरण के लिए किसी आफिस जाने की जरूरत को तकनीक के माध्यम से कम किया जाना चाहिए। आयकर सुधार भी लागू करने ही होंगे।
दस साल पहले, कारोबार सुगमता में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए गए। इसके अच्छे परिणाम मिले। अब एक कदम और आगे बढ़कर भारत को कारोबार करने के लिए सबसे आसान ठिकाना बनाया जाए। श्रम संहिता के नियमों को अधिसूचित करने जैसे लंबित कार्य तुरंत पूरे किए जाएं। राज्यों को क्रमिक सुधारों से आगे बढ़कर सिंगल-विंडो क्लीयरेंस को वास्तव में अपनाना होगा। कई जटिल प्रक्रियाएं अब तक नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम(एनएसडब्लूएस) में शामिल नहीं की गई हैं।
निजी उद्यमों के लिए पूंजी की लागत कम करनी होगी। सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) के तहत वाणिज्यिक बैंकों को अपनी संपत्तियों का 18 प्रतिशत सरकारी प्रतिभूतियों में रखना अनिवार्य है।
इससे अर्थव्यवस्था में कर्ज लायक निधि का पूल घटता है और निजी उद्यमों के लिए पूंजी की लागत बढ़ जाती है। एसएलआर को शून्य पर लाना चाहिए। इससे लाखों करोड़ रुपये के अतिरिक्त कर्ज देने का रास्ता खुलेगा और पूंजी की लागत घटेगी। हमें यह मानना होगा कि एक उदार व्यापार व्यवस्था हमारे मैन्यूफैक्चरिंग इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए जरूरी है। हाल के वर्षों में गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों (क्यूसीक्यू) की संख्या बढ़ी है। ये जरूरी आयात की लागत बढ़ाते हैं और देश में निर्मित उत्पादों को वैश्विक बाजार में गैर-प्रतिस्पर्धी बनाते हैं। इन क्यूसीक्यू को खत्म किया जाना चाहिए। हमारे यहां कुछ वस्तुओं पर टैरिफ बहुत अधिक है। इन्हें घटाना होगा। हमें व्यापार समझौतों पर वार्ता को तेज करके अपने निर्यात बाजारों का विविधीकरण करना होगा।
पर्यटन पर कोई टैरिफ नहीं है। भारत अपनी प्राकृतिक सुंदरता, विरासत, संस्कृति और विविधता के साथ अंतरराष्ट्रीय पर्यटक आगमन में 1.5 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। यदि हम अनिवासी भारतीयों के आगमन को हटा दें, तो यह संख्या और भी कम हो जाती है। पिछले दशक में भारतीय पर्यटन के लिए कोई प्रभावी ब्रांडिंग अभियान नहीं चला। जब अनेक देश पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए प्रयास तेज कर रहे हैं, तब हम पीछे हैं।
हमें भारत की संभावनाओं को उजागर करने के लिए अब तक का सबसे बड़ा वैश्विक ब्रांडिंग और मार्केटिंग अभियान चलाना चाहिए, अन्यथा जिन 1800 विमानों को भारतीय एयरलाइंस खरीद रही हैं, वे सिर्फ विदेश में छुट्टियां मनाने जा रहे भारतीयों को ले जाने का काम करेंगे। हमें विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करना होगा।
आगंतुकों के लिए हमारे शहर पहला प्रभाव छोड़ते हैं। लंबे समय से शहरों का शासन ठप पड़ा है। वह वित्त, योजना और मानव संसाधन के लिए राज्य सरकारों पर निर्भर है। शहरों को शक्तियां सौंपने वाले संवैधानिक संशोधन व्यवहार में लागू नहीं हुए हैं। हमें अपने शहरों को वास्तव में स्वायत्त और वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनाना होगा।
2021-22 के बजट में सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम की नई नीति (पीएसई) की घोषणा की गई। इसे मिशन मोड में लेना होगा। पिछले वित्तीय वर्ष में विनिवेश से केवल 10,000 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए। हमें अल्पांश हिस्सेदारी बिक्री से आगे बढ़कर रणनीतिक विनिवेश करना होगा। हाल के बजट में 10 लाख करोड़ रुपये की एसेट मोनेटाइजेशन योजना की जो घोषणा की गई उसे भी जल्द लागू करना होगा।
भारत किसी भी तरह से ‘मृत अर्थव्यवस्था’ नहीं है। हम वास्तव में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, जो एक दशक के संरचनात्मक सुधारों, डिजिटल नवाचार और बुनियादी ढांचे में निवेश से संचालित है। 25 करोड़ से अधिक लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं और अत्यधिक गरीबी दर 3 प्रतिशत से नीचे आ गई है, जो जीवन की गुणवत्ता में वास्तविक सुधार दर्शाता है।
महिलाएं इस परिवर्तन में तेजी से भाग ले रही हैं। स्टैंड-अप इंडिया कर्ज का 80 प्रतिशत और मुद्रा ऋणों का 68प्रतिशत महिलाओं को मिला है। भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआइ) ने वित्तीय समावेशन में क्रांति ला दी है और बुनियादी ढांचे पर सार्वजनिक पूंजीगत व्यय दोगुने से अधिक हो गया है, जो दीर्घकालिक उत्पादकता की नींव रखता है। भारत ने 2030 का हरित ऊर्जा लक्ष्य पांच साल पहले ही हासिल कर लिया है और एआइ, क्वांटम कंप्यूटिंग और डीप टेक में भारी निवेश कर रहा है। चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन दिशा स्पष्ट है। हम एक आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं, जिसे महत्वाकांक्षा, दृढ़ता और सुधार शक्ति दे रहे हैं।
(लेखक नीति आयोग के पूर्व सीईओ और जी-20 के शेरपा रहे हैं)
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