जागरण संपादकीय: नए मोड़ पर भारत-अमेरिका संबंध, ट्रंप के अमेरिकी हितों से रहना होगा सचेत
अमेरिका से हुए समझौते संबंध प्रगाढ़ करने वाले हैं लेकिन भारत को ट्रंप के अमेरिकी हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाले रवैये से सतर्क रहना होगा। ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी से वार्ता के ठीक पहले ही पारस्परिक टैरिफ की घोषणा कर दी। वे आक्रामक तरीके से अतार्किक बातें करके उस पर अनावश्यक दबाव बनाते हैं। ट्रंप भारत को टैरिफ किंग कहते रहे हैं।
संजय गुप्त। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद वाशिंगटन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात ने यह स्थापित किया कि भारत और अमेरिका के संबंध फिर से मजबूत होने जा रहे हैं और वे दूरगामी नतीजों को रखकर बनाए जा रहे हैं।
इसके बाद भी भारत को कुछ मुश्किलें आ सकती हैं, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में यह ठाना है कि वह अन्य देशों से आने वाले उत्पादों पर आयात शुल्क यानी टैरिफ बढ़ाकर अमेरिकी उद्योगों को बढ़ावा देंगे और अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत बनाएंगे। वह ऐसा मेक अमेरिका ग्रेट अगेन नारे के तहत कर रहे हैं।
ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी से वार्ता के ठीक पहले ही पारस्परिक टैरिफ की घोषणा कर दी। अमेरिकी राष्ट्रपतियों और खासकर ट्रंप की यह आदत रही है कि वह किसी देश से मनमाफिक समझौते के लिए आक्रामक तरीके से अतार्किक बातें करके उस पर अनावश्यक दबाव बनाते हैं।
यह पारस्परिक टैरिफ की उनकी घोषणा से भी इंगित हो रहा है। यह ध्यान रहे कि पहले उन्होंने कनाडा और मेक्सिको के उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की और फिर उसे कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दिया।
ट्रंप भारत को टैरिफ किंग कहते रहे हैं। बीते दिवस भी उन्होंने कहा कि भारत बहुत अधिक टैरिफ लगाता है। वह टैरिफ की बात करते हुए हर्ले डेविडसन मोटरसाइकिल का जिक्र करने से नहीं चूकते। ट्रंप यह कहते रहे हैं कि अधिक टैरिफ के कारण ही उनके पिछले कार्यकाल में हर्ले डेविडसन भारत में अपनी मोटरसाइकिल नहीं बेच सका और उसे उनका निर्माण भारत में करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
उन्होंने अपना यह रोना रोया फिर से रोया। उनके रवैये से यह आशंका बढ़ गई है कि दुनिया में ट्रेड वार शुरू हो सकता है। यह ध्यान रहे कि चीन ने टैरिफ बढ़ाने की ट्रंप की घोषणा के जवाब में खुद भी टैरिफ बढ़ाने की चेतावनी दी है। यदि ट्रंप पारस्परिक टैरिफ की नीति पर सचमुच चलते हैं तो जापान और यूरोपीय देशों के साथ भारत पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ सकता है।
अभी भारत से जो निर्यात अमेरिका को हो रहे हैं, वे उच्च तकनीक आधारित कम हैं। भारत अमेरिका को बड़े पैमाने पर आभूषण, रत्न, दवाएं, कपड़े आदि निर्यात करता है। यदि अमेरिका इन पर टैरिफ बढ़ाता है तो इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को तो कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला, लेकिन भारत के उद्योगपतियों के लिए चुनौती खड़ी हो जाएगी।
भारत जिस सामग्री का निर्यात अमेरिका को करता है, वह उसे अन्य देशों से भी हासिल कर सकता है। स्पष्ट है कि भारत को यह देखना होगा कि अमेरिका उसके हितों की अनदेखी तो नहीं कर रहा है?
भारत के सामने यह चुनौती है कि वह तकनीक आधारित ऐसे उत्पादों का निर्यात कैसे बढ़ाए, जिनकी विश्व में अधिक मांग है। यह तब संभव हो पाएगा, जब हमारे कारोबारी शोध-अनुसंधान को बढ़ावा देकर उत्तम कोटि के उत्पाद बनाने में सक्षम होंगे। इस मामले में भारतीय कारोबारी सुस्त दिखते हैं। पता नहीं क्यों वे इस मामले में चीनी कारोबारियों से कोई सीख नहीं लेना चाहते?
यह देखना होगा कि भारत-अमेरिका के बीच नए सिरे से जो व्यापार वार्ता शुरू होनी है, वह एक तय समय में पूरी हो पाती है या नहीं? ट्रंप के पिछले कार्यकाल में ये वार्ताएं किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थीं। भारत की कोशिश होनी चाहिए कि इस बार ये वार्ताएं सफल हों।
यह तब तक संभव नहीं, जब तक दोनों देश एक-दूसरे के हितों की रक्षा का ध्यान नहीं रखते। मोदी और ट्रंप के बीच मुलाकात में यह तय हुआ कि 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार को पांच सौ अरब डालर तक ले जाया जाएगा। इस लक्ष्य को तभी पाया जा सकता है, जब टैरिफ दरें ऐसी होंगी, जो एक-दूसरे को रास आएंगी। अमेरिका के पास तमाम ऐसी आधुनिक तकनीक हैं, जिनकी भारत को आवश्यकता है।
अमेरिका अपनी तकनीक देने के साथ इसकी भी कोशिश में रहता है कि भारत उसके अधिक से अधिक हथियार खरीदे। कुछ वर्षों पहले अमेरिका भारत को एफ-16 लड़ाकू विमान बेचना चाहता था। तब भारत ने फ्रांस से राफेल विमान खरीदना बेहतर समझा था।
अब अमेरिका लड़ाकू विमान एफ-35 बेचने की पेशकश कर रहा है। कहना कठिन है कि भारत इस पेशकश को स्वीकार करेगा। भारत अपना लड़ाकू विमान तेजस तैयार करने में लगा हुआ है, लेकिन उसके लिए जरूरी इंजन अमेरिका से मिलने में देर हो रही है। इस देरी पर पिछले दिनों वायु सेना प्रमुख ने अप्रसन्नता भी व्यक्त की।
उम्मीद है कि इस संदर्भ में भारतीय प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति से चर्चा की होगी। यह आवश्यक है कि भारत अपनी जरूरत के हिसाब से ही लड़ाकू विमान एवं अन्य हथियार अमेरिका से खरीदे, क्योंकि यह समय रक्षा मामलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने का है। जहां तक संभव हो, भारत को वही रक्षा उपकरण खरीदने चाहिए, जिनकी तकनीक भी मिले।
भारत को रक्षा क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करनी होगी। इस कोशिश में कामयाब होने के लिए अमेरिकी तकनीक चाहिए होगी, लेकिन उसे हासिल करने के नाम पर अमेरिका की मनचाही शर्तें मानने से बचना होगा।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अभी भारत अपनी जरूरत की तमाम सामग्री बाहर से खरीदता है और वह ऐसी कई तकनीक खुद विकसित नहीं कर सका है, जिनकी आवश्यकता है। भारत को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना होगा।
डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के दौरान अमेरिका से जो अनेक समझौते हुए, वे दोनों देशों के संबंधों को आगे ले जाने वाले हैं। भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक सहयोग लगातार बढ़ रहा है और मोदी की अमेरिका यात्रा से दोनों देशों के संबंध एक नए और बेहतर मोड़ पर आ गए हैं, लेकिन भारत को ट्रंप के अमेरिकी हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाले रवैये से सावधान रहना होगा।
चूंकि इस बार ट्रंप वह सब कुछ हासिल करने की जल्दी में हैं, जो अपने पिछले कार्यकाल में नहीं कर पाए थे, इसलिए उनकी नीतियों से वैश्विक अर्थव्यवस्था में उथलपुथल हो सकती है। भारत को खुद को इस उथलपुथल से बचाए रखने के प्रति सचेत रहना होगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।