जागरण संपादकीय: सैन्य संघर्ष में भारतीयता का संदेश, ऑपरेशन सिंदूर से भारत ने देश-दुनिया को बहुत कुछ बताया
Operation Sindoor लेख में भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष के दौरान प्रतीकात्मक युद्ध का वर्णन है। ऑपरेशन सिंदूर जिसका नाम ही प्रतीकात्मक है भारतीय संस्कृति में सम्मान सुरक्षा और पवित्रता का प्रतीक है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे धर्म की रक्षा के लिए बताया जहाँ धर्म सत्य और न्याय का प्रतीक है।
प्रो. निरंजन कुमार। भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव के समय एक अन्य स्तर पर भी लड़ाई छिड़ी हुई थी। यह लड़ाई प्रतीकात्मक, सांकेतिक और नैतिकता के धरातल पर चल रही थी। इस नैरेटिव युद्ध में भी भारत ने विजय पाई और वैश्विक पटल पर भी अपनी नैतिक श्रेष्ठता एवं साफ्ट पावर का ध्वज लहराया। युद्ध में प्रतीकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि विभिन्न प्रतीकों-शब्दों, चिह्नों, विचारों और कविता-कहानियों या शास्त्रीय आधार पर भी लड़ा जाता है।
ये प्रतीक युद्ध में प्रभाव, शक्ति और वैधता के उपकरण भी होते हैं, जो संबंधित राष्ट्र की वैचारिकी और साफ्ट पावर को संप्रेषित करते हैं, सैन्य कार्रवाईयों को वैधता प्रदान करते हैं। लोगों में एकता का भाव भरने के साथ ही गहरी भावनात्मक प्रतिक्रियाएं भी जगाते हैं। भारत ने इस संघर्ष में प्रतीकों का उपयोग रणनीतिक और सांस्कृतिक दोनों रूपों में किया।
हमने घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जनमत को प्रभावित करते हुए एक प्रभावशाली नैरेटिव बनाने का सफल प्रयास भी किया। इस कड़ी में ऑपरेशन सिंदूर नाम ही सूक्ष्म प्रतीकात्मकता और गहरी अर्थवत्ता लिए हुए है। यह केवल एक सैन्य अभियान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, भावनात्मक और राजनीतिक संकेत भी था। भारतीय समाज में विवाहित स्त्री के लिए सिंदूर उसके सम्मान, सुरक्षा और पवित्रता का प्रतीक होता है। ‘सिंदूर’ का लाल रंग शौर्य, पराक्रम और बलिदान का भी प्रतीक है, जिसकी जीती-जागती मिसाल भारतीय सेना है।
ऑपरेशन सिंदूर के शुरुआती दिनों में महिला अधिकारी सैन्य परिधान में प्रेस कांफ्रेस में आईं। उन्होंने देश की नारी शक्ति का परिचय दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत की कार्रवाई केवल सामरिक नहीं, बल्कि यह अधर्म के विरोध में धर्म की रक्षा के लिए है। यहां धर्म का अर्थ कोई रिलीजन या मजहब नहीं।
धर्म का अर्थ यहां सत्य और न्याय है, जबकि अधर्म का अर्थ असत्य एवं अन्याय के पक्ष में खड़ी आसुरी आतंकवादी ताकतें यानी पाकिस्तानी सेना है। इसी परिप्रेक्ष्य में गीता के श्लोक ‘यदा यदा हि धर्मस्य...’ का भी उल्लेख किया गया। सैन्य टकराव के बीच ही प्रधानमंत्री ने भगवान बुद्ध का भी स्मरण किया। बुद्ध शांति के अन्यतम प्रतीक हैं। मोदी ने जहां यह कहा कि यह समय युद्ध का नहीं, वहीं यह भी स्पष्ट किया कि यह वक्त आतंकवाद का भी नहीं है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि शांति का मार्ग शक्ति के माध्यम से ही प्रशस्त होता है। भारत न युद्ध चाहता है और न युद्ध से डरता है। वह शांति चाहता है, लेकिन अपनी सीमाओं-नागरिकों की रक्षा के लिए वह पूर्ण संकल्पित है।
युद्ध के समय जनता और सैनिकों का मनोबल बनाए रखने और अपनी कार्रवाई को न्यायोचित दिखाने के लिए एक अन्य शास्त्रीय प्रतीक था ‘शिव तांडव स्तोत्र’, जो ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग के दौरान सुनाया गया। यह सेना के शौर्य और पावन समर्थन का प्रतीक था, जिसने सैन्य कार्रवाइयों को भारत की महान सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत से जोड़ा। ‘शिव तांडव स्तोत्र’ भारतीय सेना के लिए शुद्ध धार्मिकता से परे एक युद्धगीत की भांति है, जो शक्ति, साहस और नैतिकता का स्रोत भी है।
यह स्तोत्र अत्याचारी के विनाश एवं विश्व के कल्याण की भारतीय दृष्टि को भी रूपायित करता है, जो शिव के तांडव नृत्य का संदेश है। भाषा, शब्द और साहित्य का भी अपना प्रतीकात्मक महत्व है जो संप्रेषण और नैरेटिव में प्रभावशाली भूमिका निभाता है। ऑपरेशन सिंदूर को न्यायसंगत ठहराते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने तुलसीदास की चौपाई का उल्लेख किया-’जिन मोहि मारा, तिन मोहि मारे.’ यानी हमने उन्हीं अर्थात केवल आतंकवादियों को मारा, जिन्होंने हमारे मासूमों को मारा।
सेना की प्रेस ब्रीफिंग में रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियों ‘हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना। याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा’ के उल्लेख ने भी चमत्कारी प्रभाव पैदा किया। इस प्रभाव को एयर मार्शल एके भारती ने यह कहकर और स्पष्ट किया कि ‘भय बिनु होय न प्रीति’ अर्थात बिना दंड एवं डर के दुष्टों को समझ नहीं आता। यह संदेश पाकिस्तानी सेना के साथ-साथ विश्व समुदाय को भी था। भारतीय सेना की वीरता के लिए पीएम मोदी द्वारा गुरु गोबिंद सिंह की पंक्ति ‘सवा लाख ते एक लड़ाऊं’ को उद्धृत करना भी सेना में उत्साह का संचार करने के लिए ही था।
हमारी सामरिक सामग्री के नाम भी सत्य एवं न्याय के प्रतीक हैं। भारत पर पाकिस्तानी हमलों को हमारी जिस रक्षा प्रणाली ने विफल कर दिया, उसमें एस-400 को सुदर्शन भी कहते हैं। सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का दिव्य शस्त्र है, जिसका प्रयोग उन्होंने धर्म अर्थात सत्य एवं न्याय की रक्षा और अधर्म यानी असत्य एवं अन्याय के विनाश के लिए किया। इसी तरह पाकिस्तानी आतंकी और सैन्य अड्डों को नष्ट करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल हमारे शास्त्रों में वर्णित ब्रह्मास्त्र का प्रतीक है।
दूसरी ओर, पाकिस्तानी सेना की मिसाइलें बाबर, गजनी, गोरी इत्यादि वहशी लुटेरों, आक्रांताओं और जिहादी मानस वाले लोगों के नाम पर हैं। यह पाकिस्तानी सेना-सरकार की जिहादी, उन्मादी वैचारिकी को ही रेखांकित करता है। स्पष्ट है कि भारत ने पाकिस्तान पर न केवल अपनी सैन्य श्रेष्ठता सिद्ध की, बल्कि अपने सांस्कृतिक प्रतीकों के माध्यम से संसार को यह संदेश भी दिया कि भारत शक्ति और शांति का वैश्विक प्रतीक है और इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में सीनियर प्रोफेसर हैं)
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