हर्ष वी. पंत। महज कुछ माह के अंतराल में अपनी दूसरी अमेरिकी यात्रा के दौरान पाकिस्तान सेना के फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर ने भारतीय उपमहाद्वीप में परमाणु हथियारों से जुड़ा वितंडा खड़ा किया। उन्होंने भारत के मौजूदा बुनियादी ढांचे और भावी अहम परियोजना को निशाना बनाने की धमकी दी।

उनकी इस धमकी को भारत की उस नई रणनीति के आलोक में देखने की जरूरत है, जिसमें नई दिल्ली ने दशकों पुराने रवैये को पीछे छोड़ते हुए आतंक की किसी भी घटना को देश पर हमले के रूप में मानते हुए उसके कड़े प्रतिकार की नई नीति बनाई है। इस नीति का उद्देश्य यह है कि पाकिस्तान के किसी भी दुस्साहस की स्थिति में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की सैन्य कार्रवाई के प्रति समर्थन सुनिश्चित करते हुए उसकी करतूतों को उजागर किया जा सके।

मुनीर की परमाणु हथियार के इस्तेमाल की धमकी वैसी ही बयानबाजी है, जैसी अक्सर पाकिस्तान की ओर से होती रहती है। कुछ पहलुओं पर इसकी पड़ताल भी जरूरी हो जाती है। यह किसी से छिपा नहीं रहा कि पाकिस्तान का कुलीन वर्ग और सेना मुख्य रूप से अपना अस्तित्व ही भारत के खिलाफ भावनाओं का भयादोहन करके ही बचाते आए हैं। पाकिस्तानी सेना देश और देश के बाहर नैरेटिव को नियंत्रित करने वाली सबसे प्रमुख कड़ी बनी हुई है। मुनीर की बयानबाजी पाकिस्तान सेना की इस छवि को नए सिरे से स्थापित करने का ही प्रयास है कि सेना पाकिस्तान की संप्रभुता की रक्षा करने में समर्थ है।

पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठतम अधिकारी के रूप में मुनीर की पाकिस्तानी परमाणु नीति में बदलाव अपनी ओर से पेश किए जा रहे खतरे को दोहराने की कोशिश है। इसके पीछे की मूल मंशा मुनीर की उस मजहबी-वैचारिक सोच से जुड़ी है, जिसके अनुसार भारत को एक ऐसे हिंदू देश के रूप में देखा जाता है, जो पाकिस्तान के लिए खतरा है। परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर जोर देने की धमकी भारत के साथ रणनीतिक स्थिरता को पुनः संतुलित करने की कोशिश है। वर्ष 1998 में परमाणु क्षमता हासिल करने के बाद से ही पाकिस्तान नई दिल्ली पर परमाणु धमकियों के जरिये दबाव डालने की कोशिश कर रहा है।

इसके जवाब में भारत अपनी पारंपरिक सैन्य कार्रवाइयों के माध्यम से अधिक जोखिम उठाकर डेटरेंस यानी निवारक क्षमता बढ़ाने और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के स्तर पर नए आयाम गढ़ने का काम करता आया है। पाकिस्तान जानबूझकर अस्थिरता की आशंका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है ताकि नई दिल्ली पर दबाव बनाया जा सके। पाकिस्तान इस नैरेटिव को स्थापित करना चाहता है कि यदि भविष्य में भारत “आपरेशन सिंदूर जैसी सैन्य कार्रवाई फिर करता है, तो पाकिस्तान को (टैक्टिकल) परमाणु हथियार इस्तेमाल करने पर मजबूर होना पड़ेगा। पाकिस्तान जो भी कहना चाहे, उसके लिए परमाणु हमले का जोखिम उठाना और भारत की सुनिश्चित जवाबी कार्रवाई का सामना करना अब भी एक बड़ी चुनौती है।

मुनीर के बयानों का मकसद पाकिस्तान की ‘आपसी असुरक्षा’ की अवधारणा को मजबूत करना और भारत की प्रतिक्रिया देने की संभावना को कम करना है, लेकिन पाकिस्तान का यह ढांचा पहले ही भारत की कार्रवाई से काफी हद तक टूट चुका है और इसका ताजा उदाहरण पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन सिंदूर है। ऐसे परिदृश्य में स्थिरता बनाए रखने का मुख्य दारोमदार पाकिस्तान का है। खुद को पाकिस्तान के विचार का संरक्षक मानने वाली पाकिस्तानी सेना ने भारत की पारंपरिक श्रेष्ठता और सैन्य बढ़त का मुकाबला करने के लिए ही आक्रामक परमाणु नीति अपनाई है।

मुनीर की भारत-विरोधी परमाणु दांव और पारस्परिक तबाही की धमकी अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बीच में लाने की कोशिश है, ताकि भारत की प्रतिक्रिया और प्रतिकार(डेटरेंट) नीति पर अंकुश लगाया जा सके। डेटरेंट सदैव मनोवैज्ञानिक रणनीति के दायरे में शुरू और समाप्त होता है।

पाकिस्तान का रिकार्ड यह दर्शाता है कि वह भारत के खिलाफ बार-बार परमाणु हथियार के इस्तेमाल की धमकी देकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचने की कोशिश करता है। पाकिस्तान जानबूझकर अस्पष्टता बनाए रखता है और परमाणु हथियारों को पहली बार इस्तेमाल करने और अंतिम उपाय की तरह इस्तेमाल करने यानी दोनों रूपों में प्रस्तुत करता है। भारत ने इसी विरोधाभास का लाभ उठाकर बालाकोट और आपरेशन सिंदूर के जरिये उसे पस्त किया।

कुल मिलाकर मुनीर के शब्द निराशा से उपजी बयानबाजी हैं, जो पाकिस्तानी की अस्पष्ट परमाणु नीति पर अत्यधिक निर्भरता और सेना की ओर से अपने लिए घरेलू राजनीति में समर्थन जुटाने की कोशिश का हिस्सा है। इसके भरेपूरे आसार हैं कि आपरेशन सिंदूर के बाद वह अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने की कोशिश करे। उसने ऐसी कोशिश शुरू भी कर दी है-राकेट फोर्स के गठन की घोषणा करके। अमेरिकी खुफिया आकलन के अनुसार पाकिस्तान भारत की बढ़ती सैन्य क्षमता का मुकाबला करने और चुनौती देने के लिए अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता विकसित कर रहा है।

चीन, जो ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान की परमाणु और मिसाइल तकनीक में मदद करता रहा है, इसमें उसकी मदद कर सकता है। पाकिस्तान का अंतिम उद्देश्य भारत को यह अवसर न देना है कि वह पारंपरिक परमाणु परिदृश्य में पाकिस्तान के खिलाफ विश्वसनीय डेटरेंट स्थापित कर सके। इन परिस्थितियों में नई दिल्ली को अपनी परमाणु और सामरिक गैर-परमाणु क्षमता को बढ़ाने से नहीं हिचकना चाहिए।

हमारे नीति-निर्माताओं को पाकिस्तान की बयानबाजी पर गंभीरता और सख्ती दिखानी होगी, अन्यथा पाकिस्तान अमेरिका को भारत-पाकिस्तान परमाणु समीकरण में फिट करने की कोशिश करेगा। आपरेशन सिंदूर ने नई दिल्ली को यह नई सीख दी है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ जोखिम स्वीकार करना और पाकिस्तान अपने किसी भी दुस्साहस की कीमत चुकाए, ऐसी क्षमताएं बढ़ाने में ही में भविष्य की राह निहित है।

(लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं)