विचार : निचले स्तर पर राजनीतिक व्यवहार, राहुल गांधी के झूठे दावे बेनकाब
राहुल गांधी पहले भी कई संस्थाओं को धमकी दे चुके हैं। वे प्रधानमंत्री का नाम लेकर सार्वजनिक रूप से ऐसा कह चुके हैं कि मोदी अब सड़कों पर निकलेगा तो लोग डंडों से पीटेंगे? उनके नेतृत्व में अब कांग्रेस ऐसी राजनीति कर रही है जिसमें मर्यादा पद की गरिमा भाषा की शालीनता व्यवहार का संतुलन तथा सच और झूठ के भेद के लिए कोई स्थान नहीं है।
अवधेश कुमार। देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस इन दिनों अपने शीर्ष नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर झूठे आरोप लगा रही है। वे उसके अधिकारियों के प्रति अमर्यादित भाषा का प्रयोग कर रहे हैं और निचले व्यवहार पर उतरकर उनके परिवार तक को निशाना बना रहे हैं। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था में शर्मनाक है।
राहुल गांधी और उनकी पूरी पार्टी चुनाव आयोग तथा मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को चोर कहते हुए निशाना बना रही है। बिहार में वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी कह रहे हैं कि तीनों चुनाव आयुक्त सुन लें... एक दिन आएगा, जब बिहार और दिल्ली में हमारी सरकार होगी। फिर हम आप तीनों को देखेंगे, आपके खिलाफ कार्रवाई होगी। कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के सोशल मीडिया हैंडल देख आप सन्न रह जाएंगे। राजनीति इतने नीचे स्तर पर गिर जाएगी, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की होगी। नेता विपक्ष राहुल गांधी की राजनीति देश में डरावने दृश्य प्रस्तुत कर रही है। राहुल गांधी और कांग्रेस का यह व्यवहार पहली बार नहीं है। पिछले लगभग सात वर्षों से राहुल गांधी की राजनीति का एक स्थापित पैटर्न बन गया है।
राहुल गांधी पहले भी कई संस्थाओं को धमकी दे चुके हैं। वे प्रधानमंत्री का नाम लेकर सार्वजनिक रूप से ऐसा कह चुके हैं कि मोदी अब सड़कों पर निकलेगा तो लोग डंडों से पीटेंगे? उनके नेतृत्व में अब कांग्रेस ऐसी राजनीति कर रही है जिसमें मर्यादा, पद की गरिमा, भाषा की शालीनता, व्यवहार का संतुलन तथा सच और झूठ के भेद के लिए कोई स्थान नहीं है। जैसे ही राहुल गांधी किसी को निशाना बनाते हैं, उनकी पूरी पार्टी उस व्यक्ति, अधिकारी या उनके खानदान को ढूंढ़ कर चरित्र हनन और बदनाम करने का अभियान चलने लगती है। डिजिटल मीडिया कई बार बहुत विषाक्त हो जाता है। इसकी अनदेखी न की जाए कि आपरेशन सिंदूर के दौरान विदेश सचिव विक्रम मिसरी को डिजिटल मीडिया पर किस तरह निशाना बनाया गया।
निम्न राजनीति पहले सामने वाले के विरुद्ध संदेह पैदा करने के लिए कथित तथ्य गढ़ती है, फिर नारे एवं मुहावरे बनाती है। अब वह संस्थाओं को भी निशाना बना रही है। इन दिनों संवैधानिक संस्था निर्वाचन आयोग इस राजनीति के निशाने पर है। आज पूरे देश के सामने प्रश्न है कि इस तरह के राजनीतिक व्यवहार का प्रतिकार कैसे हो?
राहुल गांधी मुख्य चुनाव आयुक्त सहित पूरे चुनाव आयोग को वोट चोर कह रहे हैं, लेकिन अपने आरोपों के पक्ष में कोई ठोस तथ्य नहीं दे रहे हैं। अब तो वे सार्वजनिक रूप से गलत साबित हो रहे हैं। गत दिनों बिहार में उनकी वोट अधिकार यात्रा के दौरान रोहतास जिले के नौहट्टा प्रखंड के एक गांव की रंजू देवी उनके सामने यह कहती देखी गईं कि उनका और परिवार के सभी छह लोगों का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। राहुल ने इसे वोट चोरी का मुद्दा बना दिया। बाद में उन्हीं रंजू देवी ने कहा कि मतदाता सूची में उनके परिवार के सभी लोगों के नाम हैं। उनके अनुसार वार्ड सचिव ने कहा था कि राहुल आ रहे हैं, उनके सामने बता देना कि हमारा नाम मतदाता सूची से कट गया है। उन्होंने माना कि वार्ड सचिव ने जैसा कहा, वैसा राहुल के सामने बोल दिया।
यह एक प्रसंग राहुल और वोट चोरी के आरोप लगाने वालों के लिए शर्म का विषय होना चाहिए। राहुल के महाराष्ट्र चुनाव संबंधी आरोप भी गलत साबित हो चुके हैं। बंबई उच्च न्यायालय संबंधित याचिका खारिज कर चुका है। महाराष्ट्र के रामटेक और देवली विधानसभा में लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा में क्रमशः 38.45 प्रतिशत तथा 36.82 प्रतिशत मतदाताओं की कमी का आंकड़ा भी गलत साबित हो गया। इसे “सामने” लाने वाले सीएसडीएस के चुनाव विश्लेषक ने न केवल संबंधित पोस्ट को हटाया, बल्कि गलत उत्तर देने के लिए माफी भी मांगी। इसके बावजूद वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी के तेवर और भाषा देखकर लगता है कि उनका मुद्दा चुनाव आयोग या सत्ता प्रतिष्ठान नहीं, बल्कि कुछ और है।
लगता है वे सब कुछ पहले से निर्धारित किसी योजना के अनुसार कर रहे हैं। अध्ययन बताते हैं कि किसी संवैधानिक संस्था पर नेताओं द्वारा राजनीतिक आरोप लगाने के पीछे निश्चित उद्देश्य होते हैं। जैसे कि संस्थानों पर दबाव बढ़ाना, उन्हें कानूनी मामले में फंसाना, ताकि लोगों का मुख्य काम से ध्यान हटे। देश में संस्थाओं के प्रति घोर अविश्वास और विरोध का वातावरण बनाने और उसके खिलाफ आक्रामक तरीके से शोर मचाने के पीछे क्या मकसद हो सकता है? क्या राहुल और उनके सहयोगी देश में उथल-पुथल और अशांति की स्थिति पैदा कर राजनीतिक लक्ष्य साधना चाहते हैं?
आखिर राहुल गांधी चाहते क्या हैं, इसे जनता खुद समझे। शायद वह समझ भी रही है। इसकी आशंका है कि अपने किसी खतरनाक उद्देश्य के लिए राहुल के नेतृत्व में आगे भी देश की अन्य संस्थाओं की प्रतिष्ठा समाप्त करने के लिए ऐसे ही निम्नतम स्तर के अभियान चलें, ताकि सामने वाला विवश होकर या आवेश में कार्रवाई करे और देश का वातावरण बिगड़े। देश की शांति, स्थिरता, समृद्धि और विश्व स्तर पर उसकी साख की चिंता करने वाले हर व्यक्ति को ऐसी राजनीति से चिंतित होना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।