मध्य प्रदेश और राजस्थान में खांसी की दवा के सेवन से 12 बच्चों की मौत को लेकर जैसी विरोधाभासी खबरें आ रही हैं, वे कफ सीरप की गुणवत्ता को लेकर संदेह बढ़ाने वाली तो हैं ही, उस सरकारी तंत्र पर अविश्वास पैदा करने वाली भी हैं, जिसका दायित्व दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना है।

मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार की मानें तो बच्चों की मौत का कारण समझी जा रही कफ सीरप कोल्ड्रिफ में कोई विषाक्त रसायन नहीं मिला, लेकिन जिस तमिलनाडु में उसका निर्माण होता है, वहां की सरकारी एजेंसी का कहना है कि उसमें खतरनाक जहरीला तत्व मिला। आखिर सच क्या है? इस सवाल के बीच कई राज्यों की ओर से इस कफ सीरप पर पाबंदी लगा दी गई है और केंद्र सरकार की ओर से यह एडवाइजरी जारी की गई है कि दो वर्ष से छोटे बच्चों को कफ सीरप न दिया जाए। क्या यह एडवाइजरी जारी करने के लिए 12 बच्चों की मौत का इंतजार किया जा रहा था?

यह बड़े शर्म की बात है कि पहले भी भारत में निर्मित विषाक्त कफ सीरप से गांबिया और उजबेकिस्तान में बच्चों की मौत के मामले सामने आने और उनसे भारतीय दवा कंपनियों की साख पर बट्टा लगने के बाद भी यह सुनिश्चित नहीं किया जा सका कि देश में बनने वाली दवाओं की गुणवत्ता से किसी तरह का समझौता न होने पाए। मध्य प्रदेश और राजस्थान के मामले बता रहे हैं कि ऐसा हो रहा है और वह तंत्र अक्षम है, जिसका काम दवाओं की गुणवत्ता देखना है। यह सीधे-सीधे सरकारी तंत्र की नाकामी है। इस नाकामी की एक बड़ी वजह सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार है। इस भ्रष्टाचार के चलते ही दोयम दर्जे की दवाएं बनती और बिकती हैं।

यदि दोयम दर्जे की दवाओं के निर्माण का सिलसिला कायम रहा तो मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे जानलेवा मामले तो सामने आएंगे ही, भारत की दुनिया के दवा कारखाना वाली छवि भी मलिन होगी। दवाएं तब दोयम दर्ज की बनती हैं, जब उनका निर्माण मानकों के हिसाब से नहीं होता और गुणवत्ता परीक्षण के नाम पर खानापूरी होती है। यही दोयम दर्जे की दवाएं कई बार विषाक्त हो जाती हैं।

अपने देश में किस तरह बड़े पैमाने पर दोयम दर्जे की दवाएं बनती हैं, इसका प्रमाण आए दिन आने वाली वे खबरें हैं, जो यह बताती हैं कि दवाओं के इतने नमूने गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। ऐसा सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते होता है। वह चाह ले तो किसी भी दवा के निर्माण में मानकों की अनदेखी न होने पाए, लेकिन ऐसा लगता है कि किस्म-किस्म की एजेंसियों से लैस सरकारी तंत्र में कोई भी नियम-कानूनों के साथ अपने कर्तव्यों के पालन के प्रति सजग नहीं। यह वह रवैया है, जो न तो स्वदेशी के सपने को साकार करेगा और न ही देश को स्वावलंबी बना सकेगा।