जागरण संपादकीय: चीन के आश्वासन, केंद्र को विकसित भारत के लक्ष्य का रखना होगा ध्यान
बदले हुए अंतरराष्ट्रीय माहौल में भारत से संबंध सुधारने को तैयार चीन के विदेश मंत्री वांग ई ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिलकर भले ही सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति जताई हो लेकिन यह कहना कठिन है कि इस सहमति के अनुरूप कुछ ठोस होगा। यह ध्यान रहे कि विशेष प्रतिनिधि स्तर की 24 दौर की वार्ता के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात वाला है।
यह राहतकारी है कि भारत यात्रा पर आए चीनी विदेश मंत्री वांग ई ने दुर्लभ धातुओं यानी रेयर अर्थ मैग्नेट की आपूर्ति बहाल करने, बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं के लिए जरूरी मशीनों का निर्यात करने के साथ उर्वरकों की बिक्री शुरू करने का आश्वासन दिया। चीन ने कुछ ही समय पहले भारत को उर्वरक भेजने के साथ ही रेयर अर्थ मैग्नेट की आपूर्ति बंद कर दी थी। इसके अतिरिक्त भारी मशीनरी का निर्यात सीमित कर दिया था।
यह किसी नेक इरादे से नहीं किया गया था। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मनमानी टैरिफ नीति और अन्य मामलों में तीखे तेवरों को देखते हुए ही चीन ने भारत से संबंध सुधारने की जरूरत महसूस की है। स्पष्ट है कि भारत चीनी विदेश मंत्री के आश्वासन पर बहुत उत्साहित नहीं हो सकता, क्योंकि बात तब बनती दिखेगी, जब इन आश्वासनों पर अमल होगा।
अपने कहे से मुकरने वाला चीन यह समझने को तैयार नहीं कि वह और भारत मिलकर पश्चिम की चुनौतियों का सामना करने के साथ आर्थिक सहयोग को बहुत आगे ले जा सकते हैं। इस सहयोग का लाभ भारत के साथ उसे भी मिलेगा। दोनों देशों की हजारों साल पुरातन संस्कृति है और दोनों के संबंध सदियों पुराने हैं। होना यह चाहिए कि दोनों देश मिलकर अपनी और विश्व की समस्याओं का समाधान करें।
चीन भारत के साथ चलने की नीति का हामी नहीं दिखता। इसके बजाय वह भारत की प्रगति में अड़ंगा लगाते और उसके हितों के खिलाफ काम करते दिखता है। वह यह तो चाहता है कि भारत उसके हितों के प्रति संवेदनशील रहे, पर स्वयं ऐसा नहीं करता। इसका उदाहरण है अरुणाचल, कश्मीर पर उसकी बेजा बयानबाजी।
चीनी नेतृत्व ने अपने यहां की क्रांति के बाद तो भारत से मैत्री भाव दिखाया, लेकिन फिर उसने भारत विरोधी रवैया अपना लिया। इसी का परिणाम था 1962 का युद्ध। भारत डोकलाम विवाद और गलवन की घटना को भी नहीं भूल सकता। बदले हुए अंतरराष्ट्रीय माहौल में भारत से संबंध सुधारने को तैयार चीन के विदेश मंत्री वांग ई ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिलकर भले ही सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति जताई हो, लेकिन यह कहना कठिन है कि इस सहमति के अनुरूप कुछ ठोस होगा।
यह ध्यान रहे कि विशेष प्रतिनिधि स्तर की 24 दौर की वार्ता के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात वाला है। यह सही है कि आज भारत को भी चीन के सहयोग की आवश्यकता है और संभवतः इसी कारण भारतीय प्रधानमंत्री शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल होने चीन जा रहे हैं, लेकिन अच्छा होगा कि इस पर विचार किया जाए कि हम दुर्लभ धातुओं, उर्वरकों, भारी मशीनों आदि के लिए चीन पर क्यों निर्भर हैं? विकसित भारत के लक्ष्य को देखते हुए यह निर्भरता ठीक नहीं।
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