जागरण संपादकीय: भारत-अमेरिका संबंध से दुनिया को संदेश, चीन पर भी बन रहा दबाव
प्रधानमंत्री मोदी एक ऐसे समय क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लेने अमेरिका पहुंचे जब वहां राष्ट्रपति चुनावों का जोर है। यह लगभग तय है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कोई भी बने दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ होते रहेंगे। यह स्थिति बनी रहे इसके लिए उन मुद्दों को हल करना भी आवश्यक है जो दोनों देशों के संबंधों में बाधा बनते रहते हैं अथवा अविश्वास का कारण बनते हैं।
भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा दोनों देशों के संबंधों में और अधिक प्रगाढ़ता का परिचय देने वाली तो है ही, भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय कद को भी रेखांकित करने वाली है। इस यात्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि क्वाड संगठन अब एक ठोस आकार ले रहा है और उसके उद्देश्य भी पहले से कहीं अधिक स्पष्ट हो रहे हैं।
क्वाड को और अधिक सशक्त करने के लिए यह आवश्यक है कि सभी सदस्य देश अर्थात भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया अपने आपसी संबंधों में भी सुधार लाने की दिशा में आगे बढ़ें।
क्वाड के समक्ष जो चुनौतियां हैं, उनमें केवल एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता ही नहीं है, बल्कि विश्व के अन्य क्षेत्रों में भी जारी उथल-पुथल भी है। क्वाड इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि एक ओर रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है तो दूसरी ओर पश्चिम एशिया में भी अशांति बढ़ रही है।
क्वाड को एक ऐसे प्रभावी संगठन के रूप में उभरना होगा, जो न केवल स्वयं अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों के प्रति प्रतिबद्ध रहे, बल्कि यह संदेश देने में भी सफल रहे कि दुनिया के सभी देशों को ऐसा करना होगा।
लोकतांत्रिक देशों के संगठन के रूप में क्वाड के और अधिक प्रभावी होने की आवश्यकता इसलिए भी है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र अपना प्रभाव एवं अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है। विडंबना यह है कि इसके बाद भी संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।
भारतीय प्रधानमंत्री का अमेरिका दौरा इसका भी सूचक है कि दोनों देशों के संबंध अब एक ऐसे दौर में पहुंच रहे हैं, जहां आपसी लेन-देन एवं समझबूझ और अधिक बढ़ेगी। इसकी पुष्टि विभिन्न क्षेत्रों में लगातार हो रहे आपसी समझौतों से भी होती है। अब इस नतीजे पर पहुंचने के अच्छे-भले कारण हैं कि भारत-अमेरिका मैत्री पर किसी देश में सत्ता परिवर्तन से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
यह उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी एक ऐसे समय क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लेने अमेरिका पहुंचे, जब वहां राष्ट्रपति चुनावों का जोर है। यह लगभग तय है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कोई भी बने, दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ होते रहेंगे। यह स्थिति बनी रहे, इसके लिए उन मुद्दों को हल करना भी आवश्यक है, जो दोनों देशों के संबंधों में बाधा बनते रहते हैं अथवा अविश्वास का कारण बनते हैं।
यह अच्छा नहीं हुआ कि भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के ठीक पहले अमेरिकी अधिकारियों ने खालिस्तान समर्थकों से मुलाकात करना आवश्यक समझा। इस मुलाकात का उद्देश्य कुछ भी हो, उससे संदेश यही निकला कि अमेरिकी नेतृत्व खालिस्तानी तत्वों की गतिविधियों को लेकर भारत की चिंताओं के प्रति संवेदनशील नहीं।
भारत इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकता कि अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देशों में किस तरह खालिस्तान समर्थकों को संरक्षण दिया जा रहा है और उन्हें भारत विरोधी गतिविधियां चलाने की छूट सी दी जा रही है।