स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश में राष्ट्रपति द्रौपद्री मुर्मु ने सदैव की तरह लोगों को प्रेरित करने वाली बातें करने के साथ विभिन्न क्षेत्रों में हासिल जिन अनेक उपलब्धियों का उल्लेख किया, वे सच में महत्वपूर्ण हैं। ये उपलब्धियां आर्थिक-सामाजिक विकास, जनकल्याण, तकनीक, रक्षा-सुरक्षा आदि क्षेत्र में हासिल की गई हैं, पर राजनीतिक, प्रशासनिक वर्ग और देश को गतिशील रखने वाले सभी लोगों को यह ध्यान रहे कि भारत को वास्तव में विकसित बनाने के लिए जो किया गया है और किया जा रहा है, वह अभी पर्याप्त नहीं।

काफी कुछ किया गया तो बहुत कुछ करना शेष है। इस शेष की पूर्ति यथाशीघ्र हो और इसमें सभी का योगदान हो, यह सभी का लक्ष्य होना चाहिए। विकसित भारत की यात्रा में कोई पीछे छूटने न पाए और विकास के लक्ष्यों के साथ देश में हर स्तर पर सद्भाव बना रहे, इसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

ऐसा करके ही हम हर तरह की चुनौतियों का सामना कर पाएंगे। इसे हमने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन सिंदूर से सिद्ध भी किया। इस अभूतपूर्व सैन्य कार्रवाई ने आतंक के पोषक पाकिस्तान को पस्त और दुनिया को दंग किया।

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में सुशासन स्थापित करने के साथ भ्रष्टाचार सहन न करने की महत्ता को रेखांकित किया। सुशासन की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। आखिर यह सभी राजनीतिक दलों का संयुक्त लक्ष्य क्यों नहीं हो सकता? संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देना तभी उचित है, जब राजनीतिक दल सुशासन को प्राथमिकता दें और विकास एवं जनकल्याण के मामले में संकीर्ण दलगत हित न आड़े आने दें।

यह दुर्भाग्य की बात है कि वे न केवल आड़े आ रहे हैं, बल्कि देश की प्रगति में बाधक बनने के साथ भ्रम भी फैला रहे हैं। यह सस्ती राजनीति कम होने के बजाय बढ़ रही है। यह भी गंभीर चिंता की बात है कि शासन-प्रशासन के स्तर पर भ्रष्टाचार कम होने का नाम नहीं ले रहा है। यह सही है कि कई क्षेत्रों में सरकारी कामकाज सुधरा और सुगम हुआ है, लेकिन अनेक क्षेत्रों में वह जस का तस है।

ऐसे कई सरकारी काम हैं, जहां भ्रष्टाचार नियंत्रित होने के बजाय बढ़ता और बेलगाम होता दिखता है। यह एक त्रासदी है। यह भी एक विडंबना है कि हर क्षेत्र में सुधार की बातें हो रही हैं और कुछ न कुछ नया होने के साथ आज की जरूरत बन चुकी तकनीक का उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन ठोस एवं प्रभावी न्यायिक सुधारों के लिए देश अभी भी प्रतीक्षारत है। समझना कठिन है क्यों? यह वह प्रश्न है, जिस पर चिंतन-मनन होना ही चाहिए। स्वतंत्रता के राष्ट्रीय पर्व पर ऐसा हो, इस अपेक्षा के साथ शुभकामनाएं।