आखिरकार राहुल गांधी ने तथाकथित एटम बम फोड़ दिया, लेकिन वह तो फुस्स पटाखा निकला। उन्होंने बेंगलुरु लोकसभा सीट के चुनाव को लेकर जैसे आरोपों के सहारे चुनाव आयोग और भाजपा को कठघरे में खड़ा किया, वैसे आरोप वे महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों को लेकर पहले भी लगा चुके हैं।

वे यह समझा चुके हैं कि महाराष्ट्र में वोटों की चोरी ऐसे-ऐसे हुई थी, लेकिन इसके बारे में चुनाव आयोग ने उन्हें जो बताया और पूरी बात समझाने के लिए अपने समक्ष उपस्थित होने को बार-बार कहा, उसकी उन्होंने अनदेखी ही की। चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा करने का काम एक अर्से से किया जा रहा है।

ईवीएम को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी निशानेबाजी को सदैव खारिज ही किया। वास्तव में यह राहुल गांधी की नई खोज है कि कांग्रेस इसलिए चुनाव हार रही है, क्योंकि चुनाव आयोग छल-छद्म से भाजपा को जिताने का काम कर रहा है।

यदि ऐसा है तो उन्हें अथवा उनके जैसी बातें करने वाले विपक्ष के किसी नेता को यह स्पष्ट करना चाहिए कि झारखंड और जम्मू-कश्मीर में भाजपा क्यों हारी? राहुल गांधी यह समझें तो बेहतर कि वे नेता सदन हैं, लेकिन संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग को बिना किसी ठोस प्रमाण बदनाम करने के साथ ही उसे धमकाने में भी लगे हुए हैं। यह उन्हें शोभा नहीं देता।

उनकी मानें तो बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के नाम पर चुनाव आयोग भाजपा को जिताने की कोई गहरी साजिश कर रहा है। विपक्षी दलों के कुछ और नेता ऐसा ही मान रहे हैं। अपने देश में मतदाता सूची में मृतकों के नाम होना और जीवित लोगों के न होना नई-अनोखी बात नहीं। इसमें सुधार की सख्त जरूरत है।

चुनाव आयोग यही कर रहा है। इसकी तो सराहना होनी चाहिए, लेकिन उलटे उसे बदनाम किया जा रहा है। चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का जो पहला मसौदा जारी किया, उस पर विपक्ष हंगामा तो कर रहा है, लेकिन आयोग के समक्ष अपनी आपत्ति दर्ज नहीं करा रहा है।

यह लोगों को गुमराह करने वाली राजनीतिक चालबाजी को ही बयान करता है। होना तो यह चाहिए कि सभी दल चुनाव आयोग से यह पूछें कि वह मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का काम समय पर क्यों नहीं करता? यह लोकतंत्र के हित में है कि कोई ऐसा व्यक्ति वोट न देने पाए, जो इसके लिए पात्र नहीं है।

इसी तरह किसी पात्र व्यक्ति को वोट देने से वंचित भी नहीं किया जाना चाहिए। यदि राहुल गांधी अपने आरोपों को लेकर तनिक भी गंभीर हैं तो वह सारी जानकारी शपथपत्र के जरिये चुनाव आयोग को दें, जो उसने उनसे मांगी है। यदि वे ऐसा नहीं करते तो चुनाव आयोग को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।