नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।

मौजूदा समय में मोटापा एक बड़ी समस्या के तौर पर उभरकर सामने आई है। लैसेंट की एक रिपोर्ट के हवाले से भारत की 70% शहरी आबादी को मोटापे या अधिक वजन वाली श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, जिससे देश मोटापे के संकट में है । चिंता की बात यह है कि बच्चों और किशोरों में मोटापे की दर बढ़ने की यह वैश्विक प्रवृत्ति चिंता का कारण है। चिकित्सकों का मानना है कि खराब लाइफस्टाइल, कम पौष्टक और प्रोसेस्ड फूड के बढ़ते चलन से मोटापे की समस्या विकराल होती जा रही है।

वहीं अधिक वजन की उभरती समस्या अक्सर अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में कुपोषण के बोझ के साथ मौजूद है, जिससे कुपोषण का दोहरा बोझ भी पैदा हो रहा है।

हाल ही आए एक अध्ययन टेंपोरल चेंज इन प्रीवेलेंस ऑफ बीएमआई कैटेगरीज इन इंडिया : पैटर्न्स एक्रॉस स्टेट्स एंड यूनियन टेरेटरीज ऑफ इंडिया नामक शोधपत्र के अनुसार महिलाओं की दुबलेपन की तादाद में लगातार कमी आई है। महिलाओं में दुबलापन 1999 के मुकाबले 31.7% से घटकर 2021 में 14.2% हो गया। वहीं पुरुषों में 2006 के बनिस्पत दुबलापन 23.4% से घटकर 2021 में 10.0% हो गया। वहीं तुलनात्क तौर पर महिलाओं के लिए मोटापे की व्यापकता 2.9% (1999) से बढ़कर 6.3% (2021) हो गई, और पुरुषों के लिए 2.0% (2006) से बढ़कर 4.2% (2021) हो गई। 2021 में, सबसे ज़्यादा मोटापे की व्यापकता वाले राज्य पुडुचेरी, चंडीगढ़ और दिल्ली थे। दादरा और नगर हवेली और दीव, गुजरात, झारखंड और बिहार में गंभीर/मध्यम रूप से पतलेपन का प्रचलन सबसे ज़्यादा था। महाराष्ट्र (12.05%), तमिलनाडु (9.83%), उत्तर प्रदेश (9.60%), और कर्नाटक (9.00%) भारत में मोटापे के कुल बोझ का 40.48% हिस्सा हैं।

शोधपत्र में कहा गया है कि अधिक लोगों में मोटापे की बड़ी वजह अस्वास्थ्यकर आहार हैं, जिसमें आसानी से उपलब्ध, कम पौष्टिक और अत्यधिक प्रोसेस्ड फूड और कोल्ड ड्रिंक्स शामिल हैं। इसके अलावा शारीरिक गतिविधि में कमी आना भी मोटापा बढ़ने का एक कारण है। विभिन्न जैविक कारक (जैसे आयु और लिंग), सामाजिक-आर्थिक स्थिति , और कई जनसांख्यिकीय और पर्यावरणीय कारक इसे प्रभावित करते हैं।

शोधपत्र के अनुसार दुबले लोगों की तादाद में लगातार कमी आ रही है, जबकि अधिक वजन/मोटापे की दर पिछले कुछ वर्षों में बढ़ रही है। महिलाओं में पुरुषों की तुलना में चरम श्रेणियों (गंभीर/मध्यम रूप से पतला और मोटा) का प्रचलन अधिक है। गंभीर/मध्यम रूप से पतले लोगों की सबसे बड़ी संख्या महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश में पाई जाती है, जो कुल बोझ का 45% हिस्सा हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में दुबलापन अधिक

ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में दुबलेपन की दर लगातार अधिक देखी गई है, जहां अधिक वजन और मोटापे के मामले अधिक हैं। उदाहरण के लिए, 2021 में शहरी भारत में गंभीर या मध्यम दुबलेपन की दर महिलाओं के लिए 3.5% और पुरुषों के लिए 2.5% थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में ये आंकड़े क्रमशः 6.2% और 3.5% तक बढ़ गए। इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों में मोटापे की दर अधिक थी, जहां 2021 में 11.0% महिलाएं और 6.6% पुरुष प्रभावित हुए, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 4.8% महिलाएँ और 3.3% पुरुष प्रभावित हुए।

इन राज्यों में मोटापे की ऐसी स्थिति

2021 में, सबसे ज़्यादा मोटापे की व्यापकता वाले राज्य पुडुचेरी (महिलाएं: 20.2%, पुरुष: 10.1%), चंडीगढ़ (महिलाएं: 19.0%, पुरुष: 10.0%) और दिल्ली (महिलाएं: 16.4%, पुरुष: 7.8%) थे। इन राज्यों में ज़्यादा वज़न के लोग अधिक थे। दादरा और नगर हवेली और दीव (महिलाएं: 9.8%, पुरुष: 6.0%), गुजरात (महिलाएं: 9.3%, पुरुष: 6.6%), झारखंड (महिलाएं: 8.0%, पुरुष: 3.4%), और बिहार (महिलाएं: 8.0%, पुरुष: 4.4%) में गंभीर/मध्यम रूप से पतले लोगों की आबादी अधिक थी।

महिलाओं के लिए, सभी राज्यों में गंभीर/मध्यम रूप से पतली आबादी में गिरावट देखी गई, जिसमें पश्चिम बंगाल में 1999 और 2021 के बीच 22 वर्षों में सालाना 0.77% अंकों की सबसे बड़ी कमी देखी गई। पतले लोगों की बीएमआई आबादी में लगातार कमी आई, लेकिन कुछ राज्यों (असम, बिहार, मध्य प्रदेश और त्रिपुरा) में 1999 और 2006 के बीच वृद्धि देखी गई। तमिलनाडु (एसएसी 1999-2021: 0.58%), आंध्र प्रदेश (0.49%), और हरियाणा (0.34%) में मोटापा काफी हद तक बढ़ गया ।

कैलोरी से अधिक लेने और फास्ट फूड से बढ़ सकता है मोटापा

आर्टेमिस हॉस्पिटल्स, गुड़गांव के जनरल एंड मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के डॉ कपिल कोचर कहते हैं कि आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में मोटापे की समस्या किसी महामारी की तरह बढ़ रही है। पिछले कुछ दशक में भारतीय भी इसकी चपेट में तेजी से आए हैं। इसमें चिंताजनक बात यह है कि किशोर और युवावस्था से ही मोटापा बढ़ने की समस्या देखने को मिलने लगी है। मोटापे का कारण जानने से पहले यह समझना होगा कि मोटापा कहते किसे हैं। असल में शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी फैट के रूप में जमा होने लगती है। फैट या चर्बी बढ़ने की इसी प्रक्रिया को मोटापा कहा जाता है।

इसकी परिभाषा से इसका एक कारण स्पष्ट है, वह है जरूरत से ज्यादा कैलोरी लेना। उम्र, शारीरिक गतिविधियों एवं मेटाबोलिक रेट के आधार पर हर व्यक्ति की कैलोरी की जरूरत अलग होती है। महिलाओं और पुरुषों में भी कैलोरी की आवश्यकता अलग होती है। जब कोई व्यक्ति अपने शरीर के लिए जरूरी कैलोरी से अधिक कैलोरी का सेवन बहुत लंबे समय तक करता है, तो मोटापे की आशंका बढ़ जाती है। यही कारण है कि एक जैसा खानपान रखने वाले दो लोगों का वजन अलग-अलग हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि अपने शरीर की आवश्यकता को समझकर कैलोरी का सेवन करें। जहां तक संभव हो व्यायाम व अन्य शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से कैलोरी जलाते भी रहें। इससे शरीर पर चर्बी नहीं चढ़ती है। फास्ट फूड, मैदे से बने खाद्य पदार्थ और बहुत मीठा खाना अक्सर वजन बढ़ने का कारण होता है।

हार्मोनल बदलाव और तनाव भी है प्रमुख कारक

शारदा अस्पताल के डिपॉर्टमेंट ऑफ मेडिसिन के हेड डा. ए.के.गाडपायले का कहना है कि जीवनशैली, खान-पान, शरीर में हार्मोनल बदलाव जैसे कई कारक हैं जो लोगों में वजन बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं। जीवनशैली में बदलाव इसका सबसे बड़ा कारण है। ऊर्जा के लिए शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी का सेवन करने से शरीर में वसा का प्रतिशत अधिक हो सकता है। शरीर भोजन से प्राप्त अतिरिक्त ऊर्जा को बाद में उपयोग करने के लिए वसा के रूप में संग्रहित करता है। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों, मिठाइयों, अस्वास्थ्यकर वसा और परिष्कृत कार्ब्स से भरपूर आहार के कारण वजन बढ़ना और शरीर में वसा प्रतिशत में वृद्धि हो सकती है। शरीर में वसा का उच्च प्रतिशत कम या कोई व्यायाम न करने वाली गतिहीन जीवन शैली का परिणाम हो सकता है। शारीरिक गतिविधि कैलोरी कम करने में मददगार होती है। कुछ लोगों का पाचनतंत्र धीमा हो सकता है, जिससे वजन बढ़ने और शरीर में वसा के निर्माण में मदद मिलती है। लंबे समय तक तनाव के कारण अत्यधिक खाना और वजन बढ़ सकता है, खासकर पेट के निचले हिस्से में। तनाव हार्मोन में से एक कोर्टिसोल भी वसा भंडारण को प्रोत्साहित कर सकता है। अपर्याप्त नींद हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकती है जो भूख और भूख के नियमन को प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः अधिक खाना और वजन बढ़ना हो सकता है। लोगों का चयापचय धीमा हो जाता है और उम्र के साथ उनकी मांसपेशियां कम होने लगती हैं, जिससे वजन बढ़ाना और शरीर में वसा बढ़ाना आसान हो जाता है।

2019 में भारत में हुई 20,000 वजन घटाने वाली सर्जरी

2019 में, देश में लगभग 20,000 वजन घटाने वाली सर्जरी की गईं, जबकि एक दशक पहले केवल 800 सर्जरी हुई थीं। भारत सरकार अब अपने तीन मिलियन सरकारी कर्मचारियों के लिए वजन घटाने वाली सर्जरी की लागत को कवर करती है, जिससे यह प्रक्रिया व्यापक आबादी के लिए अधिक सुलभ हो जाती है। लैंसेट रिपोर्ट ने आगे खुलासा किया कि लगभग 80 मिलियन भारतीयों, जिनमें 5-19 वर्ष आयु वर्ग के 10 मिलियन व्यक्ति शामिल हैं, को मोटापे के रूप में वर्गीकृत किया गया है। आर्टेमिस हॉस्पिटल्स, गुड़गांव के जनरल एंड मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के डॉ कपिल कोचर के अनुसार मोटापा किसी भी कारण से बहुत ज्यादा बढ़ गया हो तो इलाज से भी राहत संभव है। आज की तारीख में कुछ दवाएं हैं, जो मोटापे को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इसके अलावा गैस्ट्रिक बलून प्रोसिजर और सर्जरी की मदद से भी मोटापा कम किया जा सकता है। गैस्ट्रिक बलून प्रोसिजर में पेट में सिलिकॉन का बना एक गुब्बारा डाला जाता है, जो कम खाने में ही पेट भरा अनुभव कराता है। इससे व्यक्ति खाने पर नियंत्रण करते हुए वजन कम करता है। वहीं, सर्जरी के दौरान शरीर से अतिरिक्त चर्बी को हटाया जाता है। मोटापे के इलाज से डायबिटीज एवं हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से भी राहत मिलती है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में भी सामने आई थी बात

देश में कुछ समय पहले आई नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में आया था कि मोटापे से जूझ रहे लोगों की संख्‍या में भी इजाफा हुआ है। 22 में से 19 राज्‍यों में पुरुषों में मोटापा बढ़ा है। वहीं 16 राज्‍यों में महिलाओं में इसकी वृद्धि देखी गई है। कर्नाटक में सबसे ज्‍यादा महिलाओं में मोटापा देखा गया। यह 6.8 फीसदी रहा. जबकि पुरुषों में सबसे ज्‍यादा मोटापा जम्‍मू-कश्‍मीर में देखा गया। वहां यह 11.1 फीसदी रहा।

मोटापे की वजह से दुनिया भर में हेल्थकेयर सिस्टम पर लगातार बोझ बढ़ता जा रहा है। ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार डायबिटीज पर खर्च होने वाली 70 फीसद खर्च की वजह मोटापा होता है। कार्डियोवॉस्कुलर बीमारियों की 23 फीसद खर्च और कैंसर के नौ फीसद खर्च में मोटापा जिम्मेदार होता है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका 2020 से 2050 तक मोटापे पर प्रति व्यक्ति 644 डॉलर खर्च करेगा। यह अमेरिका के हेल्थ पर खर्च किए जाने वाले बजट का 14 फीसद होगा। वहीं कनाडा 2020 से 2050 के दौर में प्रति व्यक्ति मोटापे पर 295 डॉलर खर्च करने लगेगा जो कि उसके हेल्थ बजट का 11 प्रतिशत होगा।

रिपोर्ट के अनुसार 36 में 34 ओईसीडी देश के लोग ओवरवेट है और वहां चार में से एक व्यक्ति मोटा है। वहीं इसकी वजह से आयु में .9 साल से 4.2 साल तक की कमी हो रही है।

रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि मोटापा कुपोषण के सिर्फ एक पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि कम वजन या पतलापन स्पेक्ट्रम का दूसरा छोर है। कुपोषण के दोनों रूप हृदय और यकृत जैसे महत्वपूर्ण अंगों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं, जिससे व्यक्तियों को कई प्रकार की बीमारियों का खतरा होता है।

दुनिया में भी तेजी से बढ़ रहा मोटापा

वैश्विक डेटा विश्लेषण ने चिंता का और कारण प्रदान किया, यह दर्शाता है कि 2022 में दुनिया भर में बच्चों और किशोरों के बीच मोटापे की दर 1990 में दर्ज की गई तुलना में चार गुना अधिक थी। अध्ययन के अनुसार, ब्रिटेन में महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 13.8 फीसदी से बढ़कर 2022 में 28.3 फीसदी और पुरुषों में यह 10.7 फीसदी से 26.9 फीसदी हो गई है। अमेरिका में, महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 21.2 फीसदी से बढ़कर 2022 में 43.8 फीसदी और पुरुषों में 16.9 फीसदी से 41.6 फीसदी हो गई। चीन में, महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 2.0 फीसदी से बढ़कर 2022 में 7.8 फीसदी और पुरुषों के लिए 2022 में 0.8 फीसदी से 8.9 फीसदी हो गई।

चुनौतियां और समाधान

विशेषज्ञ इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए जीवनशैली में बदलाव, आहार में बदलाव और नियमित व्यायाम की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोगों को अब मोटापे के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनकी संख्या कम वजन वाले व्यक्तियों से अधिक है। मोटापे की दर में यह तेजी से वृद्धि कुपोषण का दोहरा बोझ पैदा करती है और मधुमेह, हृदय रोग और गुर्दे की बीमारी जैसी बीमारियों की शुरुआती शुरुआत के बारे में चिंता पैदा करती है। मोटापे की दवाओं की उपलब्धता और लागत भी इस वैश्विक समस्या के समाधान में चुनौतियाँ पेश करती है।