नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/ संदीप राजवाड़े। 21 सितंबर को होने वाले चुनाव के लिए तैयार श्रीलंकाई मतदाताओं के लिए अपना नेता चुनना आसान नहीं है। श्रीलंका के 1.7 करोड़ योग्य मतदाताओं को 38 उम्मीदवारों में से एक उम्मीदवार को चुनना होगा। 2019 में, जब गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति चुने गए थे, तब से अब तक के पांच वर्षों में, देश के राजनीतिक परिदृश्य और आर्थिक लक्ष्य में भारी बदलाव आया है, जिससे यह राष्ट्रपति चुनाव इस देश राष्ट्र में अब तक देखे गए किसी भी अन्य राष्ट्रपति चुनाव से अलग है। यही नहीं श्रीलंका की अर्थव्यवस्था संकट से बाहर आ गई है, लेकिन अभी भी आय के स्तर में सुधार नहीं हुआ है, इस चुनाव में मुख्य मुद्दा है। 2022 में मुद्रास्फीति 70% से घटकर 5% से नीचे आ गई है, और विदेशी भंडार में वृद्धि हुई है। 2024 के लिए 2% की वृद्धि का भी अनुमान है, जो आर्थिक पतन के बाद से सबसे अधिक है। इसके अलावा दक्षिण एशिया के लिहाज से यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। अमेरिका, चीन और भारत तीनों की नजर इन चुनावों पर टिकी है, क्योंकि चुनाव जीतने वाले का पलड़ा किस तरफ ज्यादा झुकेगा, इसे लेकर फिलवक्त तस्वीर पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मानते हैं कि परिणाम चाहें किसी के पक्ष में हो, भारत के प्रति श्रीलंका का रवैया बेहतर रहेगा।

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