एस.के. सिंह/स्कंद विवेक धर, नई दिल्ली। दुनिया की नजर इस समय अगले मंगलवार को होने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर है, क्योंकि इसके नतीजे पूरे विश्व को प्रभावित करेंगे। चुनाव प्रचार के दौरान डेमोक्रेट उम्मीदवार उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस और रिपब्लिकन प्रत्याशी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी-अपनी भावी आर्थिक नीतियों का भी ऐलान किया है। दोनों ने अमेरिकी नागरिकों को राहत देने और अमेरिका की अर्थव्यवस्था को गति देने की बात कही है, लेकिन इस मंजिल पर पहुंचने के लिए दोनों के रास्ते काफी अलग हैं। अमेरिका के 23 नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्रियों ने कमला हैरिस के तरीके को बेहतर बताया है। हैरिस की नीतियों से 10 वर्षों पर अमेरिका पर 4 लाख करोड़ (ट्रिलियन) डॉलर का कर्ज बढ़ेगा, जबकि ट्रंप की नीतियों से कर्ज 7.8 लाख करोड़ डॉलर बढ़ेगा। जहां तक भारत पर असर की बात है, तो विशेषज्ञों का कहना है कि चुनाव नतीजों से भारत-अमेरिका संबंध खास प्रभावित नहीं होंगे। पिछले एक दशक में अमेरिकी निवेशकों ने भारत के टेक्नोलॉजी, इन्फ्रास्ट्रक्चर और एनर्जी सेक्टर में काफी रुचि दिखाई है। ऐसा लगता नहीं कि कोई राजनीतिक सोच इन कारोबारी फैसलों को बाधित करेगी।

डेमोक्रेट बनाम रिपब्लिकन

वर्ष 1993 में बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति बनने से लेकर अब तक विभिन्न राष्ट्रपतियों के शासनकाल पर गौर करने पर पता चलता है कि डेमोक्रेट्स के समय अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार ने बेहतर प्रदर्शन किया है। शिकागो यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार डेमोक्रेट्स के शासनकाल में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की औसत विकास दर 4.86% और रिपब्लिकन के समय 1.7% रही है। जागरण प्राइम रिसर्च के मुताबिक बिल क्लिंटन (डेमोक्रेट) के आठ साल में अमेरिकी शेयर बाजार का एसएंडपी 500 इंडेक्स 86% बढ़ा तो उनके बाद जॉर्ज बुश (रिपब्लिकन) के आठ वर्षों में 19% गिर गया। फिर बराक ओबामा (डेमोक्रेट) के आठ वर्षों में इंडेक्स 115% बढ़ गया तो उनके बाद डोनाल्ड ट्रंप (रिपब्लिकन) के समय इसमें सिर्फ 13% की बढ़त रही। बाइडेन के समय अब तक इंडेक्स करीब 55% बढ़ चुका है। इस दौरान एक-दो मौकों को छोड़ दें तो भारतीय शेयर बाजारों का प्रदर्शन अमेरिका के मुताबिक ही रहा है। (देखें टेबल)

एक और रोचक तथ्य है कि पिछले तीन दशक में रिपब्लिकन राष्ट्रपति के रहते अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कोई न कोई संकट झेलना पड़ा है। वहां 1990-91 में आर्थिक मंदी आई तो जॉर्ज बुश (सीनियर) राष्ट्रपति (1989-1993) थे। वर्ष 2007-08 के सब-प्राइम संकट के समय जॉर्ज बुश (जूनियर) इस पद पर थे। कोरोना महामारी ने भी जब अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया तो डेमोक्रेट डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति थे। डेमोक्रेट्स के लिहाज से देखें तो क्लिंटन 1990-91 की मंदी के बाद राष्ट्रपति बने थे। बराक ओबामा ने भी 2008-09 के आर्थिक संकट के समय पद संभाला था। नवंबर 2020 के चुनाव में जब बाइडन को जीत मिली तब कोरोना महामारी का प्रभाव था।

23 नोबेल अर्थशास्त्रियों ने किया हैरिस का समर्थन

अमेरिका के नोबेल पुरस्कार प्राप्त 23 अर्थशास्त्रियों ने पिछले बुधवार (23 अक्टूबर) को एक सामूहिक पत्र लिख कर कहा कि कमला हैरिस का प्रस्तावित आर्थिक एजेंडा डोनाल्ड ट्रंप से बेहतर है। उन्होंने लिखा, “अलग-अलग आर्थिक मुद्दों पर हमारे मत अलग हैं। लेकिन कुल मिलाकर हमारा मानना है कि हैरिस का आर्थिक एजेंडा हमारे देश में निवेश, सस्टेनेबिलिटी, रेजिलिएंस, रोजगार और निष्पक्षता का माहौल बेहतर करेगा।” ट्रंप के आर्थिक एजेंडे को उन्होंने प्रतिकूल करार दिया है।

एक समय ट्रंप ने ट्विटर (अब एक्स) पर खुद को ‘टैरिफ मैन’ कहा था। इस बार भी उन्होंने चीन से आयात पर टैरिफ बढ़ा कर 60% और बाकी देशों से आयात पर 20% टैरिफ लगाने की बात कही है। उनका कहना है कि मेक्सिको से कार आयात पर अथवा अमेरिका से अपनी मैन्युफैक्चरिंग मेक्सिको ले जाने वाली कंपनियों के प्रोडक्ट के आयात पर 100% या 200% टैरिफ लगाया जाएगा। ट्रंप का कहना है कि इससे अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी और यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा। लेकिन नोबेल अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ऊंचे आयात शुल्क और टैक्स में कटौती से दाम बढ़ेंगे, महंगाई बढ़ेगी, घाटा बढ़ेगा और लोगों के बीच असमानता भी बढ़ेगी। एक आकलन के अनुसार ट्रंप के टैरिफ बढ़ाने के प्रस्ताव से आम अमेरिकी परिवार पर हर साल 2500 से 3000 डॉलर का बोझ बढ़ेगा।

कमला हैरिस के आर्थिक प्रस्तावों पर नोबेल अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे मध्य वर्ग मजबूत होगा, इकोनॉमी में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा। उनकी नीतियों से आर्थिक प्रदर्शन मजबूत होगा, विकास अधिक टिकाऊ और बराबरी वाला होगा।

इससे पहले जून में भी नोबेल पुरस्कार प्राप्त जोसेफ स्टिग्लिज समेत 16 अर्थशास्त्रियों ने ट्रंप के प्रस्ताव लागू होने पर महंगाई बढ़ने की चेतावनी दी थी। जिस तरह हैरिस और ट्रंप के बीच मुकाबला दिनों-दिन कड़ा होता जा रहा है, इन अर्थशास्त्रियों की राय कुछ हद तक हैरिस के लिए मददगार हो सकती है, क्योंकि एक सर्वे के अनुसार आधे से ज्यादा लोग आर्थिक नीतियों को सबसे अधिक महत्व देते हैं। इकोनॉमी की मौजूदा हालत कैसी है इस पर एसोसिएटेड प्रेस के सर्वेक्षण में 38% लोगों ने इसे अच्छा जबकि 62% ने खराब बताया।

आर्थिक नीतियों की तुलना

पारंपरिक रूप से डेमोक्रेट्स को अधिक सरकारी खर्च वाली और कल्याणकारी योजनाओं वाली पार्टी माना जाता है। रिपब्लिकन बिजनेस जगत के करीबी समझे जाते हैं। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप 2017 में ‘टैक्स कट्स एंड जॉब्स एक्ट’ लेकर आए थे जिसकी अवधि 2025 में खत्म होगी। ट्रंप ने चुनाव प्रचार में आम लोगों और बिजनेस दोनों के लिए इसे आगे बढ़ाने की बात कही है। उन्होंने सात साल पहले कॉरपोरेट टैक्स रेट 35% से घटा कर 21% किया था और अब कुछ श्रेणी की कंपनियों के लिए इसे 15% करना चाहते हैं। लेकिन कमला हैरिस का प्रस्ताव कॉरपोरेट टैक्स को 21% से बढ़ा कर 28% करने का है। वे 10 लाख डॉलर से अधिक इनकम वालों के लिए कैपिटल गैन टैक्स की दर बढ़ाने और 10 करोड़ डॉलर से अधिक इनकम वालों पर अतिरिक्त टैक्स लगाने के पक्ष में हैं।

कमला हैरिस के प्रस्ताव मध्य वर्ग के लिए ज्यादा मददगार माने जा रहे हैं। उन्होंने 10 करोड़ अमेरिकी नागरिकों को कर में राहत देने का वादा किया है। इनमें चाइल्ड टैक्स क्रेडिट प्रति बच्चा 2000 से बढ़ा कर 3600 डॉलर करना, निम्न और मध्य वर्ग के लिए 6000 डॉलर की नई चाइल्ड टैक्स क्रेडिट योजना शुरू करना शामिल हैं। प्रचार के दौरान कमला हैरिस ने कहा था कि परिवारों को अपनी इनकम का 7% से अधिक बच्चों की देखरेख पर खर्च नहीं करना चाहिए। हेल्थ केयर सेक्टर के लिए उन्होंने कहा है कि जो लोग अकेले घर पर नहीं रह सकते उनकी सहायता के लिए स्वास्थ्य कर्मी रखने की योजना शुरू की जाएगी, जो उन्हें नहलाने, खाना खिलाने जैसे रोजमर्रा के कामों में मदद करेंगे। वे प्रति घंटे न्यूनतम वेतन भी 15 डॉलर करना चाहती हैं।

ट्रंप ने मध्य वर्ग के लिए कुछ समय तक क्रेडिट कार्ड पर ब्याज की दर आधी करने और कार लोन के ब्याज को टैक्स डिडक्शन में शामिल करने जैसे प्रस्ताव रखे हैं। हालांकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे अमीर अमेरिकियों को ज्यादा फायदा होगा और वे अधिक महंगी कारें खरीदेंगे।

महंगाई रोकने के लिए हैरिस ने बड़ी फूड और ग्रॉसरी चेन पर लगाम कसने की बात कही है। खाद्य पदार्थों के दाम ज्यादा बढ़ाने पर रोक लगाई जाएगी। पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने पेट्रोल और ग्रॉसरी के साथ अन्य जरूरी चीजों के दाम भी घटाने का वादा किया है। दाम घटाने की कोई रणनीति तो उन्होंने नहीं बताई पर आम तौर पर वे कहते रहे हैं कि तेल और गैस उत्पादन बढ़कर पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाई जा सकती हैं।

कमला हैरिस ने 30 लाख नए घर बनाने, पहली बार घर खरीदने वालों को आर्थिक मदद देने और डेवलपर्स को भी टैक्स इन्सेंटिव देने का प्रस्ताव किया है। ट्रंप ने हाउसिंग के लिए कोई औपचारिक की घोषणा तो नहीं की है पर यह जरूर कहा है कि रेगुलेशन कम करके हाउसिंग को अधिक अफोर्डेबल किया जाएगा तथा सप्लाई बढ़ाई जाएगी। ट्रंप का सबसे रोचक प्रस्ताव अवैध अप्रवासियों को वापस भेजने तथा उनके घर खरीदने पर रोक लगाने का है। उनका कहना है कि इससे घरों की डिमांड कम होगी तो दाम अपने आप कम होंगे।

प्रस्तावित आर्थिक नीतियों का भारत पर असर

ट्रंप ने एक चुनावी सभा में टैरिफ को सबसे बड़ा अविष्कार बताया था। उन्होंने भारत समेत सभी देशों से आयात पर टैरिफ लगाने की बात कही है। इससे अमेरिका को भारत से होने वाला निर्यात भी महंगा होगा। हालांकि विशेषज्ञों का मत है कि यह टैरिफ सभी देशों पर लागू होगा इसलिए किसी एक देश के अधिक या कम प्रभावित होने की गुंजाइश नहीं है। यह जरूर है कि टैरिफ से अमेरिकी नागरिकों के लिए चीजें महंगी होंगी तो उससे कम होने वाली डिमांड का दूसरे देशों के निर्यात पर असर पड़ सकता है। हाल के महीनों में पहले ही भारत को निर्यात के मोर्चे पर जूझना पड़ रहा है।

पीरामल समूह के मुख्य अर्थशास्त्री देबोपम चौधरी का मानना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव का भारत-अमेरिका संबंधों पर खास असर नहीं होगा। जागरण प्राइम से बातचीत में उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में अमेरिकी निवेशकों ने भारत की टेक, इन्फ्रास्ट्रक्चर और एनर्जी सेक्टर में काफी रुचि दिखाई है। यह मानने की कोई वजह नहीं है कि कोई राजनीतिक सोच इन कारोबारी फैसलों को बाधित करेगी।

देबोपम ने कहा कि 1990 के दशक से हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं। तब भारत की परमाणु महत्वाकांक्षाओं और शीत युद्ध के कारण हमारे संबंध निम्नतम स्तर पर पहुंच गए थे। लेकिन उसके बाद दोनों देशों ने समय के साथ अपने संबंधों को गहरा किया है। बिल क्लिंटन (डेमोक्रेटिक), जॉर्ज डब्ल्यू बुश (रिपब्लिकन), बराक ओबामा (डेमोक्रेटिक), डोनाल्ड ट्रम्प (रिपब्लिकन) या जो बाइडेन (डेमोक्रेट) सभी के दौर में भारत-अमेरिका के संबंध लगातार बेहतर ही हुए हैं।

उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ में भारत की बढ़ती आर्थिक प्रासंगिकता, चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने की इसकी क्षमता और इसका बड़ा उपभोक्ता आधार यह सुनिश्चित करेंगे कि भारत-अमेरिका संबंध मजबूत बने रहें। दोनों देशों के बीच व्यावसायिक हित अनुचित टैरिफ वार को रोकेंगे। वीजा मुद्दे अमेरिका में आंतरिक शासन के मामले हैं, और सभी अप्रवासियों पर समान नियम लागू होते हैं। यह संभावना नहीं है कि भारत को कोई अतिरिक्त लाभ मिलेगा, चाहे सत्ता में कोई भी आ जाए।

पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के मुख्य अर्थशास्त्री डॉ. एस.पी. शर्मा का मानना है कि गहराते भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक संकट के बीच भारत का विकास लगातार मजबूत बना हुआ है और अमेरिका के साथ मजबूत होते द्विपक्षीय संबंधों का नई सरकार में भी सकारात्मक प्रभाव रहेगा। साझा लोकतांत्रिक मूल्य, विभिन्न मुद्दों पर समान हित तथा दोनों देशों के वाइब्रेंट संपर्क के कारण भारत और अमेरिका की लगभग हर क्षेत्र में विश्व स्तर पर रणनीतिक साझेदारी है।

डॉ. शर्मा के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत में एफडीआई का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत अमेरिका था। वहां से 4.99 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया जो कुल एफडीआई का लगभग 9% था। भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार भी अमेरिका ही है। कैलेंडर वर्ष 2023 में दोनों देशों के बीच 190.1 अरब डॉलर की वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार हुआ। अमेरिका में भारतीय मूल के लगभग 44 लाख लोग रहते हैं। भारतीय डायस्पोरा ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत बनाने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाई है।

20 जनवरी को ही शपथ क्यों

अमेरिका में चुनाव तो नवंबर में होते हैं लेकिन राष्ट्रपति करीब ढाई महीने बाद 20 जनवरी को शपथ लेते हैं। बाइडेन ने 20 जनवरी 2021 को शपथ ली थी। उनसे पहले ट्रंप ने 2017 में, ओबामा ने पहली बार 2009 में, बुश ने 2001 और क्लिंटन ने 1993 में इसी तारीख को शपथ ली थी। चुनाव और शपथ के बीच का समय राष्ट्रपति चुने गए प्रत्याशी को कैबिनेट चुनने के लिए दिया जाता है। इसे लेम डक पीरियड कहते हैं। कभी यह अवधि चार महीने की होती थी और नया राष्ट्रपति 4 मार्च को शपथ लेता था। 23 जनवरी 1933 को अमेरिकी संविधान के 20वें संशोधन में इसे 20 जनवरी किया गया। फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने इस तारीख को पहली बार 1937 में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी थी।