संजय गुप्त। कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार की ओर से अपने यहां के खालिस्तानी चरमपंथियों को खुश करने के लिए अपनाए गए भारत विरोधी रवैये पर मोदी सरकार ने जिस तरह प्रतिकार किया, उससे दोनों देशों के संबंधों में गिरावट आना तय है। इसके लिए ट्रूडो सरकार ही जिम्मेदार होगी। ट्रूडो सरकार ने पहली बार भारत विरोधी रवैया नहीं अपनाया। इसके पहले जस्टिन ट्रूडो कृषि कानून विरोधी आंदोलन पर बेजा टिप्पणी कर चुके हैं और कनाडा भागे खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भी भारत पर मढ़ चुके हैं। गत दिनों उन्होंने निज्जर की हत्या में भारतीय उच्चायुक्त और कुछ अन्य राजनयिकों को लिप्त बताते हुए उनकी जांच की जरूरत जताई। इस पर भारत ने उच्चायुक्त समेत अपने अन्य राजनयिकों को कनाडा से वापस बुला लिया और उसके छह राजनयिकों को निष्कासित कर दिया। बाद में कनाडा ने भी ऐसा ही किया।

जस्टिन ट्रूडो एक ऐसे समय भारत विरोधी रवैया अपनाए हुए हैं, जब वह अपनी लोकप्रियता तेजी से खोते जा रहे हैं। हाल में उनका दल दो महत्वपूर्ण उपचुनाव हार चुका है। जस्टिन ट्रूडो अपने दल और सरकार में खालिस्तानी चरमपंथियों को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं। एक बार तो वह अपनी भारत यात्रा में एक खालिस्तानी चरमपंथी को लेकर आ गए थे। वह कट्टर खालिस्तानी जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली एनडीपी नामक पार्टी से होड़ लेते दिख रहे हैं। दरअसल, अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रखने के लिए वह जगमीत सिंह से भी अधिक कट्टर खालिस्तान समर्थक दिखना चाहते हैं, लेकिन इस कोशिश में वह भारत से संबंध बिगाड़ने के साथ अपने देश के लोगों को भी नाराज कर रहे हैं।

कनाडा में अगले वर्ष चुनाव होने हैं और आसार यही हैं कि उनमें ट्रूडो की हार निश्चित है। उनकी खालिस्तानपरस्त नीतियों का विरोध प्रमुख विपक्षी दल के साथ उनके दल के नेता भी कर रहे हैं। उनका मानना है कि खालिस्तानियों की सक्रियता बढ़ने से भारत से संबंध बिगड़ने के साथ कनाडा की सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा होगा, क्योंकि खालिस्तानी अतिवादी ड्रग्स तस्करी और संगठित अपराध में भी लिप्त हैं। इनमें से कई पंजाब से भागकर वहां पहुंचे हैं। इनमें हरदीप सिंह निज्जर भी था। उसे भारत ने आतंकी और भगोड़ा घोषित कर रखा था। यह जानते हुए भी ट्रूडो सरकार ने उसे नागरिकता दे दी, जबकि पहले वह उसे संदिग्ध अपराधी और अवैध तरीके से कनाडा में प्रवेश करने वाला मान रही थी। खालिस्तानी चरमपंथी और अन्य गैंगस्टर गैर कानूनी ढंग से पंजाब के लोगों को कनाडा लाने का भी काम करते हैं। वे उन पंजाबी गायकों की भी मदद करते हैं, जो हिंसक गानों के जरिये गन कल्चर और ड्रग्स को बढ़ावा देते हैं। इस सबसे जस्टिन ट्रूडो अनजान नहीं, लेकिन अपना राजनीतिक भविष्य बचाने के लिए वह भारत पर अनर्गल आरोप लगा रहे हैं। उनके आरोपों पर भारत उनसे सुबूत मांग रहा है, लेकिन वह देने से इन्कार कर रहे हैं। यह हास्यास्पद है कि कनाडा जिस लारेंस बिश्नोई का जिक्र कर रहा है, उसके संदर्भ में इस तथ्य की अनदेखी कर रहा है कि उसका भाई और एक अन्य सहयोगी कनाडा में ही रह रहे हैं। यह भी विचित्र है कि जस्टिन ट्रूडो निज्जर की हत्या में भारत का हाथ बता रहे हैं, जबकि उसकी हत्या में चार लोगों को उनकी पुलिस ने ही गिरफ्तार किया हुआ है।

कनाडा में विदेशी खासकर चीन के हस्तक्षेप को लेकर एक आयोग के सामने पेश हुए ट्रूडो ने यह कहकर अपनी फजीहत ही कराई कि उनके पास भारत के खिलाफ कथित सुबूत के नाम पर केवल खुफिया सूचनाएं हैं। माना जाता है कि कनाडा को ये खुफिया सूचनाएं अमेरिका ने दी हैं। कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन खुफिया नेटवर्क फाइव आइज के सदस्य हैं। ये देश आपस में खुफिया सूचनाएं साझा करते हैं। भारत को अमेरिका से भी सतर्क रहना होगा, क्योंकि खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश को तूल देकर वह भारत पर बेजा दबाव बना रहा है। इसी सिलसिले में गत दिनों उसने भारत के एक पूर्व अधिकारी विकास यादव को पन्नू की हत्या की साजिश में लिप्त बता दिया। अमेरिका भारत की तमाम शिकायतों के बाद भी पन्नू के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा है। यही रवैया कनाडा का भी है। वह उन गैंगस्टरों और खालिस्तानी चरमपंथियों के खिलाफ कुछ नहीं कर रहा है, जिनके विरुद्ध भारत कार्रवाई करने की बार-बार मांग कर रहा है।

भारत में 1980-90 के दशक में जो खालिस्तानी आतंकवाद उभरा था, वह समाप्त-सा हो चुका है, लेकिन कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों की सरकारों ने अपने यहां के खालिस्तानी चरमपंथियों की हरकतों के प्रति आंखें बंद कर रखी हैं। पहले जैसे पाकिस्तान खालिस्तानियों की मदद करता था, वैसे ही अब पश्चिमी देश करते दिख रहे हैं। पाकिस्तान पोषित खालिस्तानी आतंकवाद के चलते पंजाब में हजारों लोगों की जानें गई थीं, लेकिन कनाडा, अमेरिका आदि इसकी अनदेखी ही कर रहे हैं। वे खालिस्तानी चरमपंथियों और आतंकियों के कृत्यों की निंदा करने के लिए भी तैयार नहीं। कनाडा तो एयर इंडिया के विमान को विस्फोट से उड़ाने की साजिश रचने वाले खालिस्तानी आतंकियों को भी दंडित करने को तैयार नहीं।

आज विकसित देशों में मानवाधिकार एक बड़ा मसला है, लेकिन कुछ पश्चिमी देश मानवाधिकारों की आड़ में विभिन्न देशों पर अनुचित दबाव बनाते हैं। यही काम पश्चिमी देशों के कुछ संगठन भी करते हैं। वे धन के जरिये ऐसे लोगों की मदद करते हैं, जो किसी देश में मानवाधिकार हनन का मामला उठाते हैं। अरबपतियों के पैसे से संचालित पश्चिमी देशों के ऐसे कुछ संगठनों के निशाने पर भारत भी है। कई खालिस्तानी चरमपंथी ऐसे संगठनों से पैसा पाते हैं। वे इसी पैसे के बल पर भारत के खिलाफ अपनी गतिविधियां चलाते हैं। आज जब खालिस्तानी चरमपंथियों के कारण कनाडा और भारत के रिश्तों में खटास आ गई है, तब भारत के राजनीतिक दल कनाडा की सीधी आलोचना के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं। उनका ऐसा ढुलमुल रवैया मुट्ठी भर खालिस्तानी चरमपंथियों का दुस्साहस बढ़ाने वाला ही है। सभी राजनीतिक दलों के साथ सिख संगठनों को विदेश में सक्रिय खालिस्तानी चरमपंथियों की निंदा करनी चाहिए, क्योंकि उनकी हरकतें भारत समेत अन्य देशों में रह रहे सिख समुदाय की छवि को प्रभावित करने वाली हैं।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]