क्रूरता और कट्टरता का गुणगान, औरंगजेब सरीखे मतांध शासक का महिमामंडन सभ्य समाज के लिए शर्म की बात
निर्दयी औरंगजेब केवल मुगल शासन के पतन का कारण ही नहीं बना बल्कि अपनी क्रूरता के चलते एक दुष्ट शासक के रूप में भी जाना गया। उसने अपने पिता शाहजहां को कैद किया और अपने सगे भाइयों मुराद और दारा शिकोह का कत्ल कराया।
राजीव सचान : महाराष्ट्र के कोल्हापुर और अहमदनगर में औरंगजेब के महिमामंडन के साथ छत्रपति शिवाजी के अपमान के चलते तनाव फैलने के बाद भी राज्य के अन्य क्षेत्रों में मुगल वंश के इस सबसे क्रूर और कट्टर शासक का गुणगान जारी है। इसके चलते नाशिक और बीड़ में भी तनाव फैला। कोई नहीं जानता कि यह सिलसिला कब थमेगा, लेकिन यह आसानी से जाना जा सकता है कि इस देश में औरंगजेब का महिमामंडन करने वालों की कमी नहीं।
जिस मानसिकता के तहत औरंगजेब का महिमामंडन किया जाता है, वह वही है, जिसके चलते पाकिस्तान अपने पूर्वजों को ही रौंदने वाले गजनवी, गोरी, अब्दाली, बाबर और तैमूर आदि के नाम पर अपनी मिसाइलों का नामकरण करता है। कुछ मूर्ख पाकिस्तानी यहां तक मानते हैं कि पाकिस्तान की नींव तभी पड़ गई थी, जब मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला किया था और गैर मुसलमानों पर जिजिया (जजिया) लगाया था। जिजिया के कहर से बचने के लिए तमाम लोगों ने मजबूरी में इस्लाम स्वीकार किया। आज ऐसे ही लोगों के वंशज मुहम्मद बिन कासिम के तराने गाते हैं। इसी तरह की मानसिकता वाले कुछ लोग भारत में केवल औरंगजेब का ही गुणगान नहीं करते, बल्कि अन्य इस्लामी आक्रांताओं और लुटेरों को भी सराहते हैं। यह तब है, जब उनकी क्रूरता के किस्से किसी से छिपे नहीं। ऐसे लोगों को अकबर जैसे शासक रास नहीं आते, क्योंकि वह मुगल शासकों में अपेक्षाकृत उदार था। ऐसे लोगों को रहीम, रसखान, जायसी, खान अब्दुल गफ्फार खान, अब्दुल हमीद, एपीजे अब्दुल कलाम आदि शख्सीयत भी पसंद नहीं। इन्हें वे घास तक नहीं डालते, लेकिन वह औरंगजेब इनके लिए आदर का पात्र है, जिसने उन्माद से भरी अपनी मूर्खतापूर्ण नीतियों से मुगल शासन का बेड़ा गर्क किया।
निर्दयी औरंगजेब केवल मुगल शासन के पतन का कारण ही नहीं बना, बल्कि अपनी क्रूरता के चलते एक दुष्ट शासक के रूप में भी जाना गया। उसने अपने पिता शाहजहां को कैद किया और अपने सगे भाइयों मुराद और दारा शिकोह का कत्ल कराया। वह अपने एक अन्य भाई शाह शुजा की जान के पीछे भी पड़ा, जिसके चलते वह बर्मा के अराकान इलाके में भागने को मजबूर हुआ। वहां वह जनजातियों के हाथों मारा गया। एक समय औरंगजेब ने मुराद और शुजा को यह आश्वासन देकर अपने साथ किया था कि दारा को रास्ते से हटाने के बाद उन्हें बड़ी जागीरें दी जाएंगी, लेकिन उसका ऐसा कोई इरादा नहीं था।
औरंगजेब ने सबसे दर्दनाक मौत दारा को दी। आगरा के पास सामूगढ़ में औरंगजेब के हाथों परास्त होने के बाद दारा अफगानिस्तान की ओर भाग गया। वहां औरंगजेब के एक सहयोगी ने उसे छल से गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद उसने उसे औरंगजेब को सौंप दिया। दारा को दिल्ली लाकर एक बूढ़े और मरियल हाथी पर बैठाया गया। दिल्ली की सड़कों पर उसका जुलूस निकाला गया। उसकी बेइज्जती करने के लिए उसे मैले-कुचैले कपड़े पहनाए गए और उसके शरीर पर मिट्टी-कीचड़ फेंका गया।
इस सबका आंखों देखा वर्णन इटली के यात्री निकोलो मनूची ने अपनी पुस्तक ‘स्टोरिया दो मोगोर’ में विस्तार से किया है। वह उन दिनों दिल्ली में ही थे। निकोलो लिखते हैं कि ‘दारा को दिल्ली की सड़कों पर अपमानित करने के बाद कैद कर लिया गया। कैद में ही औरंगजेब के सिपाहियों ने उसका उसके बेटे के सामने बेरहमी से कत्ल कर दिया। उसके कटे सिर को धोकर औरंगजेब के सामने पेश किया, ताकि वह आश्वस्त हो सके कि उसके भाई का सिर ही उसके सामने लाया गया है। उसके सिर को तश्तरी में रखकर और एक कपड़े से ढककर शाहजहां के पास तोहफे के तौर पर ले जाया गया। औरंगजेब के भेजे तोहफे की सूचना पाकर शाहजहां खुश हुआ कि आखिरकार उसके बेटे को उसकी याद आई। शाहजहां ने जब तश्तरी से कपड़ा हटाया तो उसमें दारा का कटा सिर था। यह देखकर शाहजहां गश खाकर गिर गया। आखिर ऐसे क्रूर शासक का महिमामंडन कोई सही सोच वाला व्यक्ति कैसे कर सकता है?
औरंगजेब की क्रूरता के किस्सों की कमी नहीं। उसने गुरु तेगबहादुर और उनके तीन अनुयायियों-भाई मति दास, सती दास और दयाल दास को बेहद निर्ममता और खौफनाक तरीके से मारा। इनका ‘दोष’ केवल इतना था कि इन्होंने इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया था। औरंगजेब की एक कुख्याति इसके लिए भी है कि उसने तमाम बड़े और प्राचीन मंदिरों का ध्वंस कराया। इनमें काशी और मथुरा के मंदिर भी हैं। इसके अलावा उसने हिंदुओं और अन्य गैर-मुसलमानों पर जिजिया लगाया।
ज्ञात हो कि अकबर ने अपने शासनकाल में जिजिया खत्म कर दिया था। औरंगजेब की ओर से जिजिया लगाने का दुष्परिणाम यह हुआ कि उसके खिलाफ असंतोष भड़क उठा। उसे मराठों, जाटों और राजपूतों के विद्रोह का लगातार सामना करना पड़ा। इन विद्रोहों से वह कभी पार नहीं पा सका। छत्रपति शिवाजी महाराज हमेशा उसकी नाक में दम किए रहे। कुछ लोग जिजिया का यह कहकर बचाव करते हैं कि वह तो एक तरह का टैक्स था। यह निरा झूठ है। जिजिया किसी तरह का टैक्स नहीं, गैर-मुसलमानों की जान की सलामती के एवज में की जाने वाली हफ्ता वसूली होती थी। जिजिया देने वाले पर यह शर्त होती थी कि वह छोटा बनकर यानी अपमानित होकर उसे चुकाएगा। उसे चुकाने के लिए लोगों को नंगे पैर आना पड़ता था। औरंगजेब कट्टर इस्लामिक मान्यताओं को लेकर इतना क्रूर और मतांध न होता तो भारत का इतिहास कुछ और होता। उसका महिमामंडन किया जाना सभ्य समाज के लिए शर्म की बात है।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)
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