जागरण संपादकीय: संतुलन साधने में सफल रही सरकार, जीडीपी को गति देगा बजट
Indian Economy बजट में कुछ अपूर्णताएं भी हैं। कुछ राज्यों की अपेक्षाएं अपेक्षित रूप से पूरी नहीं हो पाई हैं लेकिन वे साझेदारी के जरिये तरक्की की राह बना सकते हैं। वहीं जब वृद्धि पर दबाव दिखता है तो ऐसी स्थिति से निपटने के लिए राजकोषीय अनुशासन के बजाय खर्च बढ़ाने को प्राथमिकता देने का नुस्खा सुझाया जाता है।
जीएन वाजपेयी। वित्त मंत्री ने एक फरवरी को जो बजट पेश किया, उसे विकसित भारत की संकल्पना साकार करने की दिशा में एक सार्थक पहल की संज्ञा दी जा सकती है। वित्त मंत्री ने आर्थिक सुस्ती को भांपते हुए उपभोग को बढ़ावा देने का दांव चला है। भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं भी सरकार के संज्ञान में हैं। ऐसी परिस्थितियों में वित्त मंत्री ने वृहद आर्थिक स्थायित्व, निवेश और उपभोग को प्रोत्साहन देने का असंभव सा काम संभव किया है।
राजकोषीय अनुशासन के मोर्चे पर सरकार वित्तीय घाटे को नियंत्रित रखने में सफल रही है। सरकार की सकल उधारी 14.83 लाख करोड़ रुपये रही, जिसमें गत वर्ष की तुलना में केवल 5.6 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। नामिनल जीडीपी में 10.1 प्रतिशत की वृद्धि के आसार हैं। यह परिदृश्य राजस्व एवं व्यय अनुमान को लेकर भरोसा बढ़ाता है। यह रिजर्व बैंक को भी सकारात्मक संकेत देता है।
पिछले कुछ समय से अपना निवेश बढ़ा रही सरकार ने बजट के जरिये अब निजी क्षेत्र को निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया है। इन्फ्रास्ट्रक्चर में निजी क्षेत्र की सहभागिता से पूंजीगत निवेश में बढ़ोतरी होगी। खपत बढ़ाने पर भी सरकार का पूरा जोर है। मध्य वर्ग को सरकार की ओर से करीब एक लाख करोड़ रुपये की टैक्स छूट मिलने जा रही है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसमें से 80 प्रतिशत राशि से लोग खरीदारी करेंगे तो 20 प्रतिशत बचाएंगे।
बजट प्रस्तावों को तीन नजरियों से देखा जा सकता है-तात्कालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक। तात्कालिक नजरिये से बजट जीडीपी को गति देगा, मध्यम अवधि में यह निरंतर तेज जीडीपी को सहारा देगा और दीर्घ अवधि में समृद्धि की आधारशिला रखेगा। बजट में कृषि, विनिर्माण और सेवा जैसे अर्थव्यवस्था के प्रत्येक स्तंभ पर ध्यान दिया गया है।
यह ग्रामीण एवं शहरी जनता के लिए समान रूप से कल्याणकारी और समाज के सभी वर्गों का उत्थान करने वाला है। इसमें बिजली, खनन, शहरी विकास, वित्तीय क्षेत्र, जीवन एवं कारोबारी सुगमता, कपड़ा उद्योग और सामुद्रिक उत्पादों के स्तर पर बड़े सुधारों का सूत्रपात हुआ है। पर्यटन उद्योग विशेषकर स्वास्थ्य पर्यटन को ध्यान में रखते हुए 50 क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है। कृषि के साथ-साथ ये सभी क्षेत्र व्यापक स्तर पर रोजगार सृजन में सहायक होंगे।
कृषि को उचित रूप से प्राथमिकता में रखते हुए वित्त मंत्री ने कृषि की वृद्धि के साथ ही उपज उत्पादकता एवं किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी पर ध्यान केंद्रित किया है। दलहन में तुअर, उड़द और मसूर के लिए राष्ट्रीय मिशन के माध्यम से आत्मनिर्भरता की योजना है। विभिन्न फसलों के लिए व्यापक उत्पादन वाले बीज विकसित करने की तैयारी है। फसलों को जलवायु परिवर्तन की तपिश से बचाने के लिए योजना भी केंद्र में है। कपास उत्पादन में भी नवाचार की पहल हुई है। कम उत्पादकता वाले सौ जिलों में धन धान्य कृषि योजना करीब 1.7 करोड़ किसानों को फायदा पहुंचाएगी। इसके लिए इन जिलों में कृषि एकीकृत विकास योजना अमल में लाई जाएगी।
नेशनल मैन्यूफैक्चरिंग मिशन से सूक्ष्म, छोटे एवं लघु उद्यमों यानी एमएसएमई को बड़ा सहारा मिलेगा। इस कड़ी में छोटे उद्यमियों के लिए क्रेडिट गारंटी बढ़ाई गई है। एमएसएमई को 27 क्षेत्रों में एक प्रतिशत गारंटी फीस पर ऋण मिलेगा। स्टार्टअप के लिए पांच लाख तक के विशेष क्रेडिट कार्ड की व्यवस्था की गई है। फुटवियर और खिलौना उद्योग के लिए प्रोत्साहन से इन कदमों को और सहारा मिलेगा। राष्ट्रीय निर्यात मिशन से भी निर्यात को गति मिलेगी।
इससे एमएमई और एमएसएमई को लाभ मिलेगा। ये क्षेत्र रोजगार देने में भी अव्वल हैं। छोटे शहरों में ग्लोबल कैपिबिलिटी सेंटर्स यानी जीसीसी बनाने से भी इन शहरों का विकास होने के साथ ही रोजगार भी सृजन होगा। अपने शहर में ही रोजगार मिलने से ही यहां के पेशेवरों के समक्ष बड़े शहरों में पलायन की विवशता नहीं रह जाएगी। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआइ बढ़ाने के लिए भी सरकार ने कई कदम उठाए हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य और आवासीय योजनाओं के लिए भी सरकार ने उदारता दिखाई है। तीन वर्षों के दौरान सभी जिलों में कैंसर सेंटर स्थापित किए जाएंगे। वित्त वर्ष 2026 के दौरान ही 200 केंद्र बनाए जाएंगे। अस्पतालों की संख्या और उनमें सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी। दवाओं पर आयात शुल्क घटाने से उनकी कीमतें घटेंगी। गिग वर्करों को भी हेल्थ कवर प्रदान किया गया है। सभी स्कूलों को ब्राडबैंड से जोड़ने के साथ ही भारत भाषा योजना के जरिये मातृभाषाओं में पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता भी शिक्षा की दशा-दिशा सुधारेगी।
मेडिकल कालेजों और आइआइटी में भी सीटें बढ़ाने की तैयारी है। वित्त वर्ष 2026 के दौरान और 40,000 किफायती आवास बनकर तैयार हो जाएंगे। शिपबिल्डिंग को सहायता के साथ ही 100 नए हवाई अड्डों के जरिये उड़ान योजना के अंतर्गत 120 नए गंतव्य जुड़ेंगे। परमाणु ऊर्जा के लिए सरकार ने काफी प्रबंध किए हैं। इनसे भविष्य के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार होगा। नवाचार, डिजिटल कायाकल्प, एआइ विकास और डिजिटल इकोसिस्टम के लिए भी पर्याप्त आवंटन भारत को दुनिया के साथ कदमताल करने में सहायक होगा।
उद्योगों के लिए राह आसान बनाने के लिए नियामकीय बाधाओं को दूर करने की प्रतिबद्धता जताई है। लाइसेंस और प्रमाणन प्रक्रिया सुगम होगी। करीब 100 से अधिक प्रविधानों को आपराधिक दायरे से मुक्त करना भी सराहनीय है। टैक्स नियमों को भी सरल एवं सहज बनाने की पहल होने जा रही है। जन विश्वास 2.0 और केवाइसी के लिए एकल पोर्टल से भी कारोबारी सुगमता बढ़ने के साथ ही भरोसा भी बढ़ेगा।
बजट में कुछ अपूर्णताएं भी हैं। कुछ राज्यों की अपेक्षाएं अपेक्षित रूप से पूरी नहीं हो पाई हैं, लेकिन वे साझेदारी के जरिये तरक्की की राह बना सकते हैं। वहीं, जब वृद्धि पर दबाव दिखता है तो ऐसी स्थिति से निपटने के लिए राजकोषीय अनुशासन के बजाय खर्च बढ़ाने को प्राथमिकता देने का नुस्खा सुझाया जाता है। हालांकि ऐसे तमाम ऊहापोह के बीच सरकार सभी मोर्चों पर संतुलन साधने में सफल रही है।
(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)
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