तरुण गुप्त। ऐतिहासिक ओवल क्रिकेट ग्राउंड, जहां इंग्लैंड की धरती पर 1880 में पहला टेस्ट मैच खेला गया, यहीं 1971 में हमें इस देश में पहली जीत मिली थी। यह मैदान एक यादगार टेस्ट शृंखला की रोमांचक परिणति का पड़ाव बना। पांच टेस्ट की करीब दो महीने लंबी शृंखला का अंतिम दिन जब हर संभावित परिणाम के साथ आरंभ हो और अंत में नतीजा बराबरी के रूप में निकले तो यह दोनों टीमों के स्तर और दिलचस्प प्रतिस्पर्धा का प्रमाण है।

भारत-इंग्लैंड शृंखला स्वर्णिम क्रिकेट स्मृतियों में जीवित रहेगी। इंग्लैंड की गर्मियां किसी भी भ्रमणकारी टीम के लिए कड़ी परीक्षा का दौरा रही हैं। पिचें सामान्यतः जीवंत होती हैं, ड्यूक गेंद कुछ अधिक हरकत करती है, अनिश्चित मौसम में किसी पड़ाव पर सूर्य की प्रचंडता तो कुछ ही पलों में बदलियों एवं भारी मौसम का अनुभव होता है।

कभी परिस्थितियां बल्लेबाजों के अनुकूल तो कभी सीम और स्विंग के माध्यम से उनकी परीक्षा के लिए उपयुक्त हो जाती हैं। यह भारतीय परिस्थितियों से बहुत भिन्न है, इसलिए वहां खुद को ढालना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। ऐसे में कोई हैरत की बात नहीं कि 1932 में इंग्लैंड में अपना पहला टेस्ट खेलने के बाद हम 1971, 1986 और 2007 में ही वहां टेस्ट शृंखला अपने नाम कर पाए।

भले ही हम यह शृंखला जीत नहीं पाए, किंतु परिणाम किसी विजय से कम प्रतीत नहीं होता। मैनचेस्टर में चौथा टेस्ट हमारे हाथ से निकल ही चुका था। उसे ड्रा कराने के लिए हमने गजब की जीवटता दिखाई और शृंखला को जीवित रखा। पहली पारी में 300 से अधिक रनों से पिछड़ने और दूसरी पारी में शून्य पर दो विकेट गंवाने के बाद पांच सत्र बल्लेबाजी से मैच बचाकर हमने अद्वितीय क्षमता प्रदर्शित की। ओवल का अंतिम मैच तीन दिनों तक उतार-चढ़ाव के बाद चौथे दिन रूट-ब्रूक की 200 रनों की साझेदारी के दम पर लगभग इंग्लैंड की झोली में चला गया था, तब हमारे गेंदबाजों ने अपना स्तर बढ़ाया और प्रतिद्वंद्वी को तीन विकेट पर 300 के बावजूद 374 के लक्ष्य से पीछे ही रोक दिया। छह रनों से मिली यह विजय हमारी सबसे करीबी जीत रही।

पूरी टीम का उत्कृष्ट प्रयास एवं प्रदर्शन दौरे की सबसे बड़ी विशेषता रही। अलग-अलग खिलाड़ियों ने विभिन्न अवसरों पर मोर्चा संभाला। यह देखना सदैव सुखद होता है कि वांछित परिणाम व्यक्तिगत उत्कृष्टता के बजाय सटीक टीम संयोजन के प्रयासों से संभव हो। हालिया अतीत में सामूहिक प्रयासों से मिली सफलता के कुछ और भी उदाहरण हमारे पास हैं। जैसे 2021 में आस्ट्रेलिया में टेस्ट शृंखला, गत वर्ष टी-20 विश्व कप और इस साल चैंपियंस ट्राफी। आखिर क्रिकेट टीम खेल ही है।

इस दृष्टि से हाल की सफलता और संतुष्टि देने वाली है कि हमने प्रमुख सितारों की अनुपस्थिति में इसे प्राप्त किया। इसमें कोई संदेह नहीं कि बुमराह विश्व के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजों में से एक हैं, किंतु हमें जिन दो टेस्टों में जीत मिली, संयोग से उनमें बुमराह नहीं खेले। पंत भी विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। उनकी अनुपस्थिति से विचलित हुए बिना न केवल हमारी टीम ने अंतिम टेस्ट जीता, बल्कि उनके चोटिल होने के बावजूद हम चौथा टेस्ट बचाने में भी सफल रहे। बेंच स्ट्रेंथ की इससे बेहतर और कोई मिसाल नहीं हो सकती।

इस शृंखला में आक्रामकता, भावनाओं का ज्वार, प्रतिस्पर्धा भाव और गुणवत्तापरक प्रदर्शन जैसे सभी पहलुओं का समावेश था। पंत चोटिल अंगुली के साथ खेलते रहे और मैनचेस्टर में तो पैर में खतरनाक चोट के बावजूद बल्लेबाजी करने आए। इसी तरह वोक्स अंतिम दिन खिसके हुए कंधे के साथ पिच पर उतरे। ये खेल प्रतिभाओं या धैर्य-सहनशक्ति से परे बहादुरी के प्रतिमान के रूप में याद किए जाएंगे। हर मैच में बराबरी का मुकाबला दिखा और अंतिम दिन तक परिणाम अनिश्चित रहा। यह टेस्ट क्रिकेट का शानदार परिदृश्य था।

इस शृंखला में इतने उत्कृष्ट प्रदर्शन देखने को मिले कि सभी की वाहवाही संभव नहीं। फिर भी, सिराज का उल्लेख उचित होगा, जो शृंखला में सर्वाधिक विकेट लेने के साथ ही एकमात्र ऐसे तेज गेंदबाज थे, जिन्होंने पांचों मैच की सभी पारियों में गेंदबाजी की। उन्होंने बुमराह की कमी को पूरा करने का भरपूर प्रयास किया। लार्ड्स में अंतिम विकेट के रूप में आउट होने से उपजी टीस से लेकर चौथे दिन ओवल में ब्रूक को दिए जीवनदान की हताशा से उबरकर सिराज ने जो निर्णायक स्पेल फेंका, उसमें उनके कौशल के साथ ही उन पर दैवीय कृपा भी दिखी।

इतने जुझारू दौरे के कई सबक हैं। जहां उपलब्धियों पर जश्न मनाना उपयुक्त है, वहीं इसकी अनदेखी भी नहीं करनी चाहिए कि हमारा मध्यक्रम अभी भी अस्थिर है। कोई भी शीर्ष टीम विशेषज्ञ मध्यक्रम के बल्लेबाजों के प्रदर्शन में निरंतरता के अभाव की उपेक्षा के साथ यही अपेक्षा नहीं रख सकती कि निचले क्रम पर आने वाले आलराउंडर संकट से उबारते रहें। बल्लेबाजी के साथ ही हमें तेज गेंदबाजी में भी और विकल्प तलाशने चाहिए। कार्यभार प्रबंधन और विश्राम की अवधारणा में बुमराह के अतिरिक्त सिराज भी उपयुक्त हो सकते हैं।

बल्ले के साथ बेहतरीन नजर आए जडेजा और वाशिंगटन गेंदबाज के तौर पर अश्विन के आसपास तक नहीं दिखते। टीम संयोजन के चलते एकमात्र विशेषज्ञ स्पिनर कुलदीप यादव को एक अतिरिक्त बल्लेबाज या आलराउंडर के लिए जगह बनाने के लिए पूरी शृंखला में बाहर बिठाया गया। यह रक्षात्मक दृष्टिकोण सदैव लाभकारी नहीं हो सकता। हमारी कैचिंग विश्वस्तरीय नहीं दिखी। क्रिकेट का स्वरूप ऐसा है कि बल्लेबाज का काम पूरे करियर में बिना एक भी गेंद फेंके चल सकता है, लेकिन गेंदबाजों को तो बल्लेबाजी के लिए उतरना ही पड़ता है। इसलिए यह विस्मृत न किया जाए कि निचले क्रम का बल्लेबाजी योगदान भी कभी-कभी बहुमूल्य हो जाता है।

शृंखला का 2-2 की बराबरी पर रहा परिणाम भले ही संतोषजनक दिखे, लेकिन उत्साही समर्थक ऐसा आकलन करने से स्वयं को रोक नहीं पा रहे कि थोड़ी सतर्कता और भाग्य का साथ मिलता तो यह परिणाम हमारे पक्ष में 4-0 तक हो सकता था। इस टीम की मानसिकता कप्तान गिल और सिराज की प्रतिक्रियाओं में परिलक्षित होती है। जहां गिल ने कहा कि हम कभी हार नहीं मानते, वहीं सिराज ने कहा कि उन्हें खुद पर विश्वास था। उनकी टिप्पणियों में अद्भुत समानता और दृढ़ता अभिव्यक्त है। यह कोई साधारण उपलब्धि नहीं है। अब यह गौरव गाथा का हिस्सा बनेगी। भारतीय टीम को बधाई और शुभकामना।

(लेखक दैनिक जागरण समाचार पत्र समूह के प्रबंध संपादक हैं)