संजय गुप्त। देश की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी इंडिगो ने भारतीय यात्रियों को पिछले एक सप्ताह में जितना अधिक परेशान किया, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। इंडिगो के यात्रियों को इसलिए परेशान होना पड़ा, क्योंकि उसने सुरक्षित विमान यात्रा के लिए नागरिक विमानों के संचालन की नियामक संस्था डीजीसीए के नए नियमों का पालन करने की कोई तैयारी नहीं कर रखी थी।

ये नियम अंतरराष्ट्रीय मानकों के तहत बनाए गए थे और सभी एयरलाइंस को उन्हें लागू करने के लिए पर्याप्त समय भी दिया गया था। इन नियमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि पायलट एक निश्चित समय से अधिक ड्यूटी न करें। सुरक्षित विमान यात्रा के लिए यह आवश्यक होता है कि पायलट लंबी ड्यूटी के चलते थकान का शिकार न हों।

पायलटों को थकान से बचाने के लिए बनाए गए नियमों का पालन करने के लिए जहां एअर इंडिया, स्पाइसजेट और अकासा एयरलाइन ने पर्याप्त व्यवस्था की, वहीं इंडिगो ने ऐसा कुछ करना आवश्यक नहीं समझा और वह भी तब, जब नए नियम लागू करने की समयसीमा बढ़ाई गई थी। इससे यही पता चलता है कि इंडिगो नए नियम लागू करने के लिए तैयार ही नहीं थी।

डीजीसीए को इसकी निगरानी करनी चाहिए थी कि इंडिगो समेत सभी एयरलाइंस नए नियमों का पालन करने के लिए उपयुक्त व्यवस्था कर रही हैं या नहीं? उसे इंडिगो पर इसलिए अधिक निगाह रखनी चाहिए थी, क्योंकि वह घरेलू विमान सेवा की सबसे बड़ी एयरलाइन है और उसकी हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक है।

जहां डीजीसीए ने अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया, वहीं इंडिगो ने भी उसे यह सूचित करना आवश्यक नहीं समझा कि वह नए नियमों का पालन करने की स्थिति में नहीं है या फिर उसे पायलट और अन्य कर्मचारी भर्ती करने के लिए कुछ और मोहलत दी जाए। चूंकि डीजीसीए ने सजगता नहीं बरती, इसलिए जब 1 दिसंबर से नए नियम लागू हुए तो इंडिगो की उड़ानें या तो रद होने लगीं या फिर विलंब से चलने लगीं।

चूंकि रद और विलंब से चलने वाली उड़ानों की संख्या सैकड़ों में पहुंचने लगी, इसलिए परेशान होने वाले यात्रियों की संख्या भी बढ़ने लगी। बड़ी संख्या में इंडिगो की उड़ानें रद होने से हवाई किराया भी महंगा होने लगा। हजारों विमान यात्री केवल समय पर अपने गंतव्य तक ही नहीं पहुंच सके, बल्कि उन्हें अतिरिक्त किराया भी देना पड़ा। इसका केवल आकलन ही नहीं किया जाना चाहिए कि डीजीसीए और इंडिगो की ढिलाई के कारण लोगों के समय और धन की कितनी बर्बादी हुई, बल्कि उसका भुगतान भी किया जाना चाहिए।

इसके लिए किसी को अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए। इसका कोई मतलब नहीं कि इंडिगो केवल खेद जताकर कर्तव्य की इतिश्री कर ले। यदि उसे यात्रियों के समय और धन की बर्बादी की भरपाई के लिए विवश नहीं किया गया तो उसका रवैया सुधरना कठिन ही है।

इंडिगो को किसी न किसी स्तर पर दंड का भागीदार इसलिए भी बनाया जाना चाहिए, क्योंकि उसने एक तरह से जानबूझकर ऐसी परिस्थितियां पैदा कीं, जिससे यात्रियों को परेशान होना पड़ा और साथ ही डीजीसीए को नए नियम लागू करने के अपने ऐसे फैसले को वापस लेना पड़ा, जो विमान यात्रियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक था। डीजीसीए को इसका आभास होना चाहिए कि एक नियामक संस्था के रूप में उसकी क्षमता और साख पर गंभीर सवाल उठे हैं।

भारतीय विमानन बाजार इस समय विश्व का तीसरे नंबर का बड़ा बाजार है। विमान यात्री इंडिगो और एअर इंडिया पर ही अधिक निर्भर हैं। यह साफ दिखा कि इंडिगो ने डीजीसीए को दबाव में लेने की रणनीति पर काम किया और जानबूझकर जरूरत से ज्यादा उड़ानें रद कीं। इसका कारण अपने मुनाफे की अधिक चिंता करना ही रहा होगा। निःसंदेह हर कंपनी को अपने मुनाफे की चिंता करने का अधिकार है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कोई कंपनी बाजार में अपने एकाधिकार वाली स्थिति का बेजा लाभ उठाकर नियामक संस्था के उन नियम-कानूनों का भी पालन न करे, जो लोगों की सुरक्षा के लिए अनिवार्य हैं।

इंडिगो चाहती तो डीजीसीए के नए नियमों का पालन करने के लिए आवश्यक पायलट और कर्मचारी आसानी से भर्ती कर सकती थी, लेकिन ऐसा लगता है कि उसने यह मान लिया कि डीजीसीए उस पर एक सीमा से अधिक दबाव नहीं डाल पाएगा। सच जो भी हो, केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि सरकार ने इस पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं, क्योंकि डीजीसीए को नए नियमों पर अमल को दो माह के लिए टालना पड़ा है। इससे देश-दुनिया को यही संदेश जाएगा कि भारत सुरक्षित विमान संचालन के प्रति सतर्क नहीं।

इंडिगो के मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह पहले भी यात्रियों की सुख-सुविधा का ध्यान न रखने के जानी जाती रही है। इंडिगो से यात्रा करने वालों को यह शिकायत रहती है कि उसके संचालक दल के सदस्य उनसे रूखा व्यवहार करते हैं और वैसी कोई रियायत नहीं देते, जैसी अन्य एयरलाइंस दे देती हैं। इन शिकायतों के बाद भी विमान यात्री इंडिगो से यात्रा करना इसलिए पसंद करते थे, क्योंकि उनका परिचालन समय पर होता था।

इसी के चलते एविएशन बाजार में इंडिगो की हिस्सेदारी बढ़ती गई, लेकिन यही बढ़ी हुई हिस्सेदारी अब एक समस्या के रूप में उभर आई। डीजीसीए कुछ भी दावा करे, इंडिगो ने नए नियमों को लागू करने के बजाय अपनी उड़ानों को स्थगित करके केवल लोगों को परेशान ही नहीं किया, बल्कि एक तरह से उसे झुकने के लिए भी बाध्य किया। यह कोई अच्छी स्थिति नहीं कि कोई कंपनी बाजार में अपनी अधिक हिस्सेदारी के सहारे मनमानी करे और यहां तक कि नियामक संस्था को अपना एक जरूरी फैसला लागू करने में अक्षम कर दे।

भले ही नागरिक उड्डयन मंत्री यह कह रहे हों कि सुरक्षा से समझौता किए बिना विमान संचालन संबंधी नए नियमों को स्थगित करने का फैसला किया गया है, लेकिन तथ्य तो यही है कि पायलटों को कम आराम के साथ विमानों का संचालन करना पड़ेगा। इंडिगो के रवैये के कारण जो संकट खड़ा हुआ, उससे सरकार को सबक लेना होगा और यह देखना होगा कि नए विमान खरीद रहीं एयरलाइन को विमान संचालन की अनुमति तभी मिले, जब वे जरूरी नियमों का पालन करने में सक्षम दिखें।