जागरण संपादकीय: भारत को विकसित बनाने वाली मुद्रा योजना, उपलब्धियों पर हमें गर्व करना चाहिए
विकसित भारत के हमारे सपने को साकार करने में मुद्रा सर्वथा उपयुक्त पहल है क्योंकि यह जनसांख्यिकीय स्थिति का लाभ उठाने की दिशा में शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ दूरदराज के स्थानों में भी सदैव आकांक्षी वर्ग की उद्यमशीलता की क्षमता को सक्रिय करती है और उत्पादन के दो महत्वपूर्ण कारकों-विनिर्माण और कृषि/संबद्ध गतिविधियों को मजबूत करती है।
सीएस सेट्टी। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार स्तंभ हैं। ये व्यवसाय मुख्य रूप से अपंजीकृत संगठनों के रूप में कार्य करते हुए भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। 2024-25 में भारत के कुल निर्यात में उनका योगदान 45.79 प्रतिशत रहा।
एमएसएमई को ऋण उपलब्ध कराना हमारी वित्तीय प्रणाली के लिए एक चुनौती रही है, लेकिन हाल के समय में बैंकों द्वारा भारत की नवीन प्रौद्योगिकी को पूरी तरह आत्मसात कर लिया गया है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना यानी पीएमएमवाइ उद्यमशीलता और स्वरोजगार को गति देकर व्यापक परिवर्तन लाने में सफल रही है।
पीएमएमवाइ के अधिकांश लाभार्थी सामान्य शुरुआत कर पहली पीढ़ी के व्यवसायी बने हैं। वित्त वर्ष 2015-16 से आरंभ पीएमएमवाइ एक युगांतकारी अग्रणी कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य वित्त विहीन सूक्ष्म उद्यमों और छोटे व्यवसायों को वित्त उपलब्ध कराना है। प्रारंभ में इस योजना का लक्ष्य विनिर्माण, व्यापार और सेवा क्षेत्रक सहित गैर-कृषि क्षेत्र था।
बाद में इसके अंतर्गत कृषि गतिविधियों को भी शामिल कर लिया गया। पीएमएमवाइ के तहत कुल ऋण भुगतान वित्त वर्ष 2016 में 1.37 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वित्त वर्ष 2025 में फरवरी के अंत तक 4.8 लाख करोड़ रुपये हो गया। औसत ऋण राशि जो 2016 में 38,100 रुपये थी, वह 2025 में बढ़कर 1,02,870 रुपये हो गई। इस दौरान लगभग सभी बैंकों में औसत ऋण राशि में वृद्धि देखी गई।
पीएमएमवाइ की कुछ प्रमुख विशेषताएं इसे पिछली ऐसी योजनाओं से अलग करती हैं। पीएमएमवाइ को जोखिम मुक्त रखने की कोशिश की गई है, ताकि ऋण प्रवाह निरंतर सुनिश्चित हो। पीएमएमवाइ में सिक्योरिटी/जमानत आधारित ऋण के बजाय नकदी प्रवाह आधारित ऋण देने पर जोर दिया गया है।
अब ऋण लेने वाले उद्यम मित्र पोर्टल पर आनलाइन आवेदन कर सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत लगभग 52 करोड़ मुद्रा ऋणों में 33.19 लाख करोड़ रुपये की राशि प्रदान की गई है। पीएमएमवाइ का सामाजिक प्रभाव भी बहुत गहरा है। इसे सामाजिक समूहों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर इसके प्रभाव से समझा जा सकता है। सामाजिक समूहों के संदर्भ में पीएमएमवाइ ने कमजोर वर्गों को चरणबद्ध तरीके से ऋण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
इसमें एससी-एसटी और ओबीसी जैसी उपश्रेणियों की हिस्सेदारी लगातार बढ़ी है, जो लाभार्थियों का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा (52 करोड़ में से 26 करोड़ रुपये) हैं। महिलाएं भी पीएमएमवाइ का अभिन्न हिस्सा हैं। कुल खातों का लगभग 69 प्रतिशत महिला लाभार्थियों का है। पीएमएमवाइ ने समावेशन के मामले में भी अच्छा प्रदर्शन किया है। अल्पसंख्यक समुदायों के लाभार्थियों द्वारा 5.70 करोड़ मुद्रा ऋणों का लाभ उठाना इसका उदाहरण है।
मुद्रा इकोसिस्टम के साथ जुड़ाव समग्र रूप से बैंक और उसके कार्यबल के लिए एक उत्साहवर्धक अनुभव रहा है। भारतीय बैंकर के रूप में एसबीआई नेक और न्यायपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने में सदैव सबसे आगे रहा है। हम लाखों सूक्ष्म और लघु उद्यमियों, विशेष रूप से नए आवेदकों को अपनी वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए अथक प्रयास करते हैं।
हमारी शाखाओं के साथ-साथ हम अपने डिजिटल बुनियादी ढांचे की उपलब्धता यथासमय सुनिश्चित करते हैं, जिससे बैंक रहित या अल्प-बैंकिंग सुविधा वाले लोगों की जरूरतों और आशाओं के अनुरूप सरलता से समयबद्ध ऋण वितरण किया जाता है। बैंक ने 1.72 करोड़ से अधिक मुद्रा ऋणों का वित्तपोषण किया है, जिसमें तीन लाख करोड़ से अधिक की राशि स्वीकृत की गई। इससे देश के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए एक गतिशील व्यवसाय अनुकूल इकोसिस्टम बना है। अभी, यह केवल एक शुरुआत मात्र है।
डिजिटलीकरण और मुद्रा ऋणों की लोन प्रोसेसिंग और उसकी मंजूरी को सुव्यवस्थित करने पर ध्यान केंद्रित करने के कारण हम इसमें अधिकाधिक योगदान देने में सक्षम हुए हैं। एसबीआई ने जनसमर्थ प्लेटफार्म के माध्यम से 10 लाख तक के ऋण के लिए एक डिजिटल ऋण निर्णय माडल मुद्रा-बीआरई शुरु किया है। यह पहल मानवीय हस्तक्षेप को कम करती है और त्वरित ऋण मंजूरी सुनिश्चित करती है।
जैसे-जैसे महत्वाकांक्षी इकाइयां तेजी से विकास करती हैं, वैसे-वैसे हमारे बैंक की उपस्थिति एवं निगमित ऋण से जुड़ाव उन्हें सहयोग प्रदान करता है। नए बाजारों में पैठ बनाने/सही तकनीक आत्मसात करने एवं मूल्यवान संसाधनों की बचत के साथ उपयुक्त भागीदारों के साथ जुड़ने की इच्छुक इकाइयों के लिए हमारी कागज रहित ऋण वितरण प्रणाली में असीम संभावनाएं हैं।
विकसित भारत के हमारे सपने को साकार करने में मुद्रा सर्वथा उपयुक्त पहल है, क्योंकि यह जनसांख्यिकीय स्थिति का लाभ उठाने की दिशा में शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ दूरदराज के स्थानों में भी सदैव आकांक्षी वर्ग की उद्यमशीलता की क्षमता को सक्रिय करती है और उत्पादन के दो महत्वपूर्ण कारकों-विनिर्माण और कृषि/संबद्ध गतिविधियों को मजबूत करती है। जब यह योजना अपने अतुल्य प्रभाव के 10 वर्ष पूरे कर रही है, तब हमें इसकी व्यापक उपलब्धियों पर गर्व की अनुभूति होती है।
(लेखक एसबीआई के चेयरमैन हैं)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।