आखिरकार बिहार में विपक्षी दलों के मोर्चे महागठबंधन ने राजद नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर दिया। यह घोषणा कांग्रेस नेता अशोक गहलोत की ओर से की गई। इसी के साथ विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआइपी के प्रमुख मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित किया गया। अशोक गहलोत की इस घोषणा से पता चलता है कि अभी तक ऐसा नहीं हो सका तो कांग्रेस की अनिच्छा के कारण।

इस अनिच्छा से यही झलका कि कांग्रेस को अभी गठबंधन राजनीति के धर्म का मर्म जानना है। आखिर वह यह साधारण सी बात क्यों नहीं समझ सकी कि बिहार में राजद ही मुख्य विपक्षी दल है और तेजस्वी यादव उसके सर्वमान्य नेता। कांग्रेस की मानें तो उसने महागठबंधन की एकजुटता के लिए यह घोषणा की। इसका मतलब है कि इस घोषणा में देर करके उसने अभी तक अपने ही गठबंधन की एकजुटता को कमजोर करने और समर्थकों के बीच संशय फैलाने का काम किया।

क्या यह अच्छा नहीं होता कि वह पहले ही तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप पेश करने पर सहमत हो जाती और वह भी तब, जब इसकी मांग हो रही थी? क्या कांग्रेस ऐसा कुछ मानकर चल रही थी कि महागठबंधन के जीतने की सूरत में तेजस्वी यादव के अतिरिक्त अन्य कोई मुख्यमंत्री का दावेदार हो सकता है? उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि वह बिहार में अपनी राजनीतिक महत्ता बनाए रखने के लिए राजद पर ही निर्भर है।

उसकी ऐसी ही निर्भरता अन्य राज्यों में भी वहां के क्षेत्रीय दलों पर है। जब तक वह अपने बलबूते चुनाव लड़ने की सामर्थ्य नहीं जुटा लेती, तब तक उसे उन्हें दबाव में लेने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। तेजस्वी यादव को सीएम पद का प्रत्याशी घोषित करने के साथ-साथ वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी को जिस तरह डिप्टी सीएम के रूप में आगे लाया गया, उससे उनकी राजनीतिक हैसियत का अनुमान लगता है, लेकिन उनकी पार्टी तो महज 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और कांग्रेस उससे चार गुने से अधिक सीटों पर।

हालांकि अशोक गहलोत ने यह कहा कि और भी डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे, पर इससे यह संदेश ओझल नहीं होता कि कांग्रेस की राजनीतिक ताकत वीआइपी से भी कम है। निःसंदेह अशोक गहलोत की घोषणा से महागठबंधन और विशेष रूप से उसका नेतृत्व कर रहे राजद को लाभ मिल सकता है, लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि अब इस गठबंधन में सब कुछ सही हो गया है।

महागठबंधन के 10 से अधिक प्रत्याशी एक-दूसरे के सामने हैं। इस विचित्र स्थिति को मैत्री मुकाबला कहा जा रहा है। आखिर यह मैत्री मुकाबला क्या होता है? ऐसे मुकाबले से यही रेखांकित होता है कि महागठबंधन के घटकों में आपसी तालमेल और विश्वास की कमी है। यह स्वाभाविक है कि भाजपा-जदयू इस कमी को तूल देंगे।