एक और बस में आग, देश में भगवान भरोसे है सार्वजनिक सुरक्षा
पिछले दस दिनों में दो एसी बसों में आग लगने से 45 से अधिक यात्रियों की मौत हो गई। पहली दुर्घटना राजस्थान में और दूसरी आंध्र प्रदेश में हुई। दोनों ही मामलों में बसों की फिटनेस और सुरक्षा जांच पर सवाल उठे हैं। हर बार दुर्घटना के बाद जांच के आदेश दिए जाते हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता। देश में सार्वजनिक सुरक्षा भगवान भरोसे है।
HighLights
दस दिनों में 45 से अधिक यात्रियों की मौत
बसों की फिटनेस और सुरक्षा पर सवाल
सार्वजनिक सुरक्षा भगवान भरोसे
अपने देश में सार्वजनिक परिवहन कितना अधिक जोखिम भरा है, इसका प्रमाण है दस दिनों के अंदर दो एसी बसों में आग लगने से 45 से अधिक यात्रियों की मौत। पहली दुर्घटना में 14 अक्टूबर को जैसलमेर से जोधपुर जा रही एसी बस में शॉर्ट सर्किट से आग लगने से 26 यात्री मारे गए। इस भयावह दुर्घटना की जांच में पता चला कि बस की बनावट में कई नियमों का उल्लंघन किया गया था।
दूसरी घटना गत दिवस आंध्र प्रदेश में हुई। यहां हैदराबाद से बेंगलुरु जा रही एसी बस में आग लगने से 20 बस यात्री मारे गए। इस दुर्घटना का कारण यह बताया जा रहा है कि बस के नीचे एक मोटर साइकिल आ गई। इससे उसका फ्यूल टैंक क्षतिग्रस्त हो गया और उसमें आग लग गई। हैरानी नहीं कि इस दुर्घटना के पीछे भी बस के रखरखाव में कमी और उसकी सही तरह सुरक्षा जांच न किया जाना निकले।
दर्जनों लोगों के लिए काल बनीं दोनों एसी बसें निजी कंपनियों की थीं। यह मानकर तो चला जा सकता है कि उनके संचालन की अनुमति देने के पहले उनकी फिटनेस जांची गई होगी, लेकिन यह कहना कठिन है कि इसके नाम पर खानापूरी नहीं की गई होगी। इसके आसार भी कम हैं कि इसकी ढंग से पड़ताल की गई होगी कि उनमें सुरक्षा के उपयुक्त उपाय हैं या नहीं?
यह किसी से छिपा नहीं कि अपने देश में बड़ी संख्या में निजी बजें खस्ताहाल होती हैं। कई बार तो उनके चालक भी अकुशल होते हैं। एसी बसों के आपातकालीन द्वार तो इस हाल में होते हैं कि उन्हें मुश्किल से ही खोला जा सकता है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि दोनों बस दुर्घटनाओं में यात्रियों के मारे जाने पर शीर्ष स्तर के नेताओं ने संवेदना व्यक्त की और दुर्घटना के कारणों की जांच के आदेश दिए गए, क्योंकि ऐसा हर बड़े हादसे के बाद किया जाता है और नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहता है।
अभी तक का अनुभव यही बताता है कि भीषण से भीषण बस दुर्घटनाओं से भी कोई सबक नहीं सीखा जाता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन किसी की प्राथमिकता में है ही नहीं। इसी कारण आए दिन सार्वजनिक परिवहन के सरकारी या फिर निजी साधन दुर्घटनाग्रस्त होते रहते हैं। प्रायः इन दुर्घटनाओं में हुई जनहानि को विधि का विधान मान लिया जाता है और अफसोस जताकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। यह और कुछ नहीं, चलता है वाला रवैया है।
इस रवैये के कारण ही सार्वजनिक सुरक्षा के हर पहलू की उपेक्षा होती है। सार्वजनिक और खासकर सड़क सुरक्षा में सतर्कता की कमी से होने वाले हादसे अनगिनत लोगों की जान ही नहीं लेते, बल्कि देश की बदनामी भी कराते हैं। वे यह भी बताते हैं कि विकसित बनने के आकांक्षी देश में किस तरह सार्वजनिक सुरक्षा भगवान भरोसे है।












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