बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल की ओर से भारत में शरण लिए पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाने से ऐसी प्रतीति होना स्वाभाविक है कि किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था ने यह फैसला सुनाया है, लेकिन यह तो अंतरराष्ट्रीय नाम वाला बांग्लादेश का अपना न्यायाधिकरण है, जिसके जज से लेकर वकील तक मोहम्मद युनूस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार की ओर से तय किए गए।

इस ट्रिब्यूनल की वैधानिकता और विश्वसनीयता उतनी ही संदिग्ध है, जितनी अंतरिम सरकार की। शेख हसीना को सजा सुनाने वाले ट्रिब्यूनल के फैसले पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं, क्योंकि उसने छात्र आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के समय पुलिस प्रमुख रहे चौधरी अब्दुल्ला को केवल पांच वर्ष की सजा सुनाई।

इससे इन्कार नहीं कि शेख हसीना सरकार के समय जो आरक्षण विरोधी आंदोलन भड़का, उसमें अनेक लोग मारे गए थे, लेकिन तथ्य यह भी है कि यह आंदोलन भी हिंसक था और उसका उद्देश्य तख्ता पलट था। इस आंदोलन के निशाने पर अवामी लीग के समर्थकों के साथ पुलिस कर्मी भी थे। इसकी भी अनदेखी न की जाए कि इस आंदोलन के दौरान जिन पर हिंसा भड़काने के आरोप लगे, उनमें से कई अंतरिम सरकार में शामिल हो गए।

निःसंदेह सत्ता में रहते समय शेख हसीना ने पुलिस को हिंसक छात्र आंदोलन से निपटने के आदेश दिए होंगे, लेकिन इस निष्कर्ष पर पहुंचना विचित्र है कि उनके कहने पर छात्रों की हत्या की गई। तथाकथित इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल की ओर से शेख हसीना के खिलाफ ऐसे ही किसी कठोर फैसले की भरी-पूरी आशंका थी, क्योंकि वहां की अंतरिम सरकार को वे फूटी आंख नहीं सुहा रही थीं।

इसका पता इससे चलता है कि उनकी पार्टी अवामी लीग को प्रतिबंधित कर उसे चुनाव में भाग लेने से पहले ही रोका जा चुका है। इसके अलावा हिंसक आंदोलन की भेंट चढ़े लोगों की मौतों का संज्ञान नहीं लिया गया। शेख हसीना को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद यह और स्पष्ट है कि बांग्लादेश में होने जा रहे चुनावों के समय उनके समर्थकों का दमन होगा।

इन चुनावों में कट्टरपंथी संगठनों को जिस तरह भाग लेने की अनुमित दे दी गई है, उससे बांग्लादेश का भविष्य और अधिक संकट में दिख रहा है। चुनाव बाद कट्टरपंथी तत्व वहां की सत्ता में काबिज हो सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो भारत की समस्या और बढ़ जाएगी। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने जिस तरह भारत से मांग की कि वह शेख हसीना को उन्हें सौंपे, उससे भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि यह तय है कि भारत ऐसा नहीं करने वाला। इसलिए और भी, क्योंकि ट्रिब्यूनल को कंगारू कोर्ट बता रहीं शेख हसीना उसके फैसले को चुनौती दे सकती हैं।