विचार: आतंक पर शरारत भरी बातें, इस शरारत को आरंभ में ही समाप्त करना होगा
भारत विश्व का सबसे विविधतापूर्ण समाज है और अनेक धार्मिक, जातीय और सामाजिक समूहों में असंतोष मौजूद है। क्या देश में दलितों से अधिक उत्पीड़ित कोई वर्ग है? और क्या यह उनके लिए आतंकी गतिविधियां अपनाने का बहाना बन सकता है? कर्नाटक में कांग्रेस एक नेता ने कहा कि एनडीए को बिहार चुनाव के पहले चरण में अपनी हालत खराब लग रही थी, इसलिए शायद उसने दूसरे चरण में वोट पाने के लिए यह विस्फोट कराया हो।
HighLights
आतंकी हमले की निंदा से इनकार
चिदंबरम के बयानों की आलोचना
ए. सूर्य प्रकाश। जो भारतीय स्वयं को एक पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक जीवन-शैली का समर्थक मानते हैं, उन्हें उन सभी नेताओं से सावधान रहना चाहिए, जो लाल किले के निकट हुए आतंकी हमले की स्पष्ट एवं बिना किसी हिचकिचाहट के निंदा करने से इन्कार कर रहे हैं और मुसलमानों के बीच तथाकथित “असंतोष” को लेकर शरारत भरे तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं। यदि हम अपने संविधान और लोकतंत्र को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो दोहरी जबान बोलने वाले, “अगर” और “लेकिन” का सहारा लेकर सतही-शरारती तर्क गढ़ने वाले सभी नेताओं को आईना दिखाया जाना चाहिए। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम कहते हैं कि पहलगाम और लाल किले पर हमले करने वाले “घरेलू” आतंकी थे। उन्हें ऐसे राजनीति प्रेरित सिद्धांत देकर भ्रम फैलाने का कोई अधिकार नहीं।
लाल किला विस्फोट के बाद चिदंबरम ने एक्स पर अपना यह घातक सिद्धांत उछाला कि आतंकियों के दो प्रकार होते हैं-विदेशी प्रशिक्षित घुसपैठिए और घरेलू आतंकी। इससे भी अधिक चिंताजनक बात उन्होंने यह कही कि हमें स्वयं से पूछना चाहिए कि ऐसी कौन-सी परिस्थितियां हैं, जो भारतीय नागरिकों और यहां तक कि शिक्षित लोगों को आतंकी बना देती हैं। उनसे और उनके जैसे अन्य नेताओं से कहा जाना चाहिए कि उनकी ही राजनीति भारतीय नागरिकों को आतंकी बनने की ओर धकेलती है। उन्हीं की तुष्टीकरण की राजनीति ने देश को विभाजित किया और 1940 के दशक में पाकिस्तान के निर्माण की राह बनाई। यही राजनीति आतंक की राह पर चलने वाले मुसलमानों में पीड़ित होने की भावना को बढ़ावा देती है।
यही नेता यह मिथ्या दावा भी करते हैं कि भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं। चिदंबरम और उनके जैसे नेताओं को याद रखना चाहिए कि 1940 के दशक में भारत के मुसलमानों ने एक अलग देश की मांग की थी, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ। उस समय शेष भारत की 88 प्रतिशत आबादी हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध जैसे वैदिक/भारतीय धर्मों के अनुयायियों की थी और उन्होंने तय किया कि भारत एक पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य होगा।
एक अलग मुस्लिम राष्ट्र बनने के बावजूद स्वतंत्रता के समय 3.5 करोड़ मुसलमान भारत में ही रहे। आज उनकी आबादी बढ़कर करीब 20 करोड़ हो गई है। यह आज़ादी के बाद से पांच गुना वृद्धि है, जो सभी धार्मिक समूहों में सबसे अधिक है। यदि उनके साथ अत्याचार हो रहा होता तो क्या उनकी आबादी इतनी तेज़ी से बढ़ पाती? देश भर में मुस्लिम सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थानों, जैसे फ़रीदाबाद के अल-फलाह विश्वविद्यालय की बढ़ोतरी हुई है। मदरसों और मस्जिदों का भी व्यापक विस्तार हुआ है। एक मज़बूत मुस्लिम मध्यवर्ग उभरकर आया है और मुस्लिम युवा अन्य नागरिकों की तरह नौकरशाही, शिक्षा, मीडिया, कारपोरेट प्रबंधन आदि सभी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में प्रवेश कर रहे हैं और कला जगत एवं खेलों में भी अपना नाम रोशन कर रहे हैं। बालीवुड खानों द्वारा संचालित है- सलमान, शाहरुख़ और आमिर खान। भारत को मिसाइल और परमाणु प्रतिरोधक क्षमता देने वाले महान वैज्ञानिक मिसाइल मैन भारत रत्न डा. एपीजे अब्दुल कलाम का योगदान पूरे देश में श्रद्धा से याद किया जाता है। वे बाद में हमारे राष्ट्रपति भी बने। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए हुए परमाणु परीक्षणों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
स्वतंत्रता के बाद तीन राष्ट्रपति और एक कार्यवाहक राष्ट्रपति मुस्लिम रहे हैं। अब तक छह मुस्लिम भारत रत्न से सम्मानित हो चुके हैं इसके अलावा संविधान में निहित वे सभी मौलिक अधिकार उन्हें प्राप्त हैं, जो उन्हें अपना मजहब मानने, पालन करने और प्रचार करने (अनुच्छेद 25), अपने मजहबी स्थानों का निर्माण और संचालन करने (अनुच्छेद 26) तथा अपने शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों का निर्माण और संचालन करने (अनुच्छेद 29-30) की गारंटी देते हैं।
भारत विश्व का सबसे विविधतापूर्ण समाज है और अनेक धार्मिक, जातीय और सामाजिक समूहों में असंतोष मौजूद है। क्या देश में दलितों से अधिक उत्पीड़ित कोई वर्ग है? और क्या यह उनके लिए आतंकी गतिविधियां अपनाने का बहाना बन सकता है? कर्नाटक में कांग्रेस एक नेता ने कहा कि एनडीए को बिहार चुनाव के पहले चरण में अपनी हालत खराब लग रही थी, इसलिए शायद उसने दूसरे चरण में वोट पाने के लिए यह विस्फोट कराया हो। यह अत्यंत शर्मनाक है कि हमारे यहां ऐसे नेता हैं जो 2900 किलो अमोनियम नाइट्रेट और अन्य विस्फोटक रखने वाले आतंकियों के कायरतापूर्ण हमले को राजनीतिक विरोधियों पर थोपना चाहते हैं। यह मुसलमानों में असंतोष भड़काने की घोर कुचेष्टा है। समय आ गया है कि कश्मीरी नेताओं-अबदुल्ला पिता-पुत्र को भी कठघरे में खड़ा किया जाए, जिन्होंने कश्मीर घाटी में हिंदुओं के नरसंहार के दौरान शासन किया और फिर भी स्वयं को सेक्युलर और संविधानवादी बताते हैं। यह सदा याद रखना चाहिए कि अब्दुल्ला परिवार भारत के एकमात्र मुस्लिम-बहुल राज्य में हिंदू अल्पसंख्यक की रक्षा करने में बुरी तरह विफल रहा। हिंदुओं को वहां से खदेड़ दिया गया।
जब पूछा गया कि डाक्टर क्यों कट्टरपंथी बन रहे हैं, तो जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “मुझे नहीं पता… कुछ (आतंकी) सोचते हैं कि सरकार ने उनके साथ अन्याय किया है… कुछ मजहब के कारण… कुछ इसलिए, क्योंकि उन्हें अपने भविष्य की कोई उम्मीद नहीं दिखती।” इसका क्या मतलब है? क्या डाक्टरों के साथ अन्याय हुआ? यह शर्म की बात है कि उमर अब्दुल्ला इस तरह की बेतुकी बात कर रहे हैं? उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने तो और भी बदतर बयान दिया। वे कहते हैं, “हर कश्मीरी पर उंगली उठाई जा रही है। हम कब तक इसका जवाब देते रहेंगे? यदि हमने चिदंबरम और अब्दुल्ला परिवार के नेताओं को इस तरह के खतरनाक सिद्धांत फैलाने दिए, तो वे ज़हर फैलाएंगे और भारत की एकता एवं अखंडता संकट में पड़ जाएगी। हमें इस शरारत को आरंभ में ही समाप्त करना होगा।
(लेखक प्रसार भारती के पूर्व सीईओ और वरिष्ठ स्तंभकार हैं)













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