विचार: सर क्रीक को लेकर सचेत रहना होगा, रक्षा और घुसपैठ रोकने के लिए आवश्यक
सर क्रीक पर भारत की सीमाओं की दृढ़ता यह संदेश देती है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है और हर इंच भूमि की सुरक्षा के लिए भारत प्रतिबद्ध है। पाकिस्तान यदि नए सिरे से राजनयिक पहल करे, आतंकवादियों को समर्थन बंद कर दे और अपने शब्दों और कर्मों में ईमानदारी दिखाए तो सर क्रीक विवाद का समाधान निकल सकता है।
HighLights
- <p>रक्षा मंत्री की पाकिस्तान को चेतावनी</p>
- <p>कच्छ क्षेत्र को सिंध से अलग करता है</p>
- <p>भारत की समुद्री सुरक्षा नीति का हिस्सा</p>
डॉ. कृपा नौटियाल। सर क्रीक क्षेत्र भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक बार फिर तनाव का केंद्र बन गया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सर क्रीक में सैन्य जमावड़े को लेकर पाकिस्तान को चेतावनी दी है। यह एक 96 किलोमीटर लंबा ज्वारीय मुहाना है, जो गुजरात में कच्छ के रण को पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अलग करता है। सर क्रीक विवाद की जड़ें 1908 से जुड़ी हैं, जब कच्छ और सिंध के शासकों के बीच क्षेत्रीय विभाजन को लेकर असहमति उत्पन्न हुई।
बांबे प्रेसीडेंसी द्वारा 1914 में एक प्रस्ताव के जरिये मामले को सुलझाने का प्रयास किया गया, लेकिन उसने एक अस्पष्टता पैदा कर दी। प्रस्ताव के एक खंड में सुझाव दिया गया कि सीमा क्रीक के बाहरी किनारे की ओर स्थित है, जबकि दूसरे में अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लेख किया गया, जिसके अलग निहितार्थ थे। यह मुद्दा 1965 के सशस्त्र संघर्ष के बाद फिर से उभरा, जब पाकिस्तान ने कच्छ के रण के आधे हिस्से पर दावा किया।
1968 में एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने रण के 90 प्रतिशत हिस्से पर भारत के दावे को बरकरार रखा, लेकिन सर क्रीक सीमा अनसुलझी रही। भारत का कहना है कि सीमा क्रीक के बीच से होकर गुजरती है, जबकि पाकिस्तान जोर देता है कि यह क्रीक के पूर्वी तट पर स्थित है। यह अंतर निर्धारित करता है कि समुद्री सीमा अरब सागर में कैसे फैली हुई है, जो संभावित हाइड्रोकार्बन भंडार, मछली पकड़ने के क्षेत्रों और दोनों देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में अरबों डालर के सामुद्रिक संसाधनों तक पहुंच को प्रभावित करता है।
साल 1989 से भारत और पाकिस्तान इस विवाद को सुलझाने के लिए ठोस प्रगति के बिना छह दौर की चर्चाएं कर चुके हैं। पाकिस्तान जोर देता है कि समुद्री सीमा के लिए आधार स्थापित करने के लिए पहले क्रीक में सीमा का सीमांकन किया जाना चाहिए, जो भूमि और समुद्री सीमा मुद्दों को जोड़ता है। वहीं भारत ने परिसीमन, सीमांकन का प्रस्ताव रखा, लेकिन तकनीकी कठिनाइयों और राजनीतिक अविश्वास ने कार्यान्वयन को रोक दिया है। यह भारत के अपने अन्य पड़ोसियों के साथ समुद्री सीमाओं के सफल समाधान के बिल्कुल विपरीत है।
श्रीलंका के साथ 1974 और 1976 में द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें मालदीव के साथ त्रिबिंदु से लेकर पाक स्ट्रेट, पाक खाड़ी और मन्नार की खाड़ी में 200 समुद्री मील की सीमा तक फैली 288 किलोमीटर की समुद्री सीमा स्थापित की गई। बांग्लादेश के साथ दशकों की असफल बातचीत के बावजूद विवाद अंततः संयुक्त राष्ट्र सामुद्रिक कानूनों के तहत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के माध्यम से हल किया गया।
2014 में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने बंगाल की खाड़ी में विवादित 25,602 वर्ग किलोमीटर में से 19,467 वर्ग किलोमीटर बांग्लादेश को प्रदान किया। भारत और बांग्लादेश ने इस बाध्यकारी निर्णय को स्वीकार किया और इसे द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के अवसर के रूप में उपयोग किया। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि जब राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तब समुद्री सीमा विवादों का शांतिपूर्ण समाधान बातचीत या मध्यस्थता के माध्यम से संभव है।
सर क्रीक पाकिस्तान को रणनीतिक रूप से प्रभावित करता है। इसका सबसे बड़ा शहर कराची इस विवादित सीमा से केवल 60 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां इसका प्राथमिक नौसैनिक अड्डा है। यहां भारतीय नौसैनिक उपस्थिति पाकिस्तान की व्यावसायिक जीवन रेखा और सैन्य बुनियादी ढांचे को खतरे में डालती है। भारत के लिए सर क्रीक को सुरक्षित करना गुजरात की तटरेखा की रक्षा के लिए आवश्यक है। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कांडला बंदरगाह और क्षेत्र को घुसपैठ गलियारा बनने से रोकने के लिए भी यह जरूरी है।
सर क्रीक पर उठे विवाद को नए सिरे से 2019 के बाद के सैन्य गतिरोध और आपरेशन सिंदूर के व्यापक संदर्भ में समझा जाना चाहिए। भारत के नौसैनिक आधुनिकीकरण जैसे कि स्वदेशी विमानवाहक पोत, उन्नत पनडुब्बियां और बढ़ी हुई तटीय निगरानी ने समुद्री शक्ति संतुलन को मूल रूप से बदल दिया है। पाकिस्तान इसके जरिये नौसैनिक रणनीति को तेज करना चाहता है। वह उन्नत पनडुब्बियां और जहाज-रोधी मिसाइलें प्राप्त करने के लिए चीनी सैन्य सहायता का लाभ उठाना चाहता है। सर क्रीक क्षेत्र में पाकिस्तान की कोई भी दुस्साहसिक कार्रवाई उसे पीढ़ियों तक पछताने पर मजबूर कर सकती है।
सर क्रीक क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के साथ नियमित गश्त भारतीय तटरक्षक बल और पाकिस्तान समुद्री सुरक्षा एजेंसी द्वारा संचालित की जाती है। ये गश्त एक दोहरे उद्देश्य की पूर्ति करती हैं। इससे दोनों देश विवादित जल पर नियंत्रण बनाए रखते हैं और दोनों देशों से मछली पकड़ने वाली नौकाओं द्वारा अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को अनजाने में पार करने से रोकते हैं। फिलहाल यह भारत की समुद्री सुरक्षा नीति का अहम हिस्सा बना हुआ है। सर क्रीक पर भारत की सीमाओं की दृढ़ता यह संदेश देती है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है और हर इंच भूमि की सुरक्षा के लिए भारत प्रतिबद्ध है। पाकिस्तान यदि नए सिरे से राजनयिक पहल करे, आतंकवादियों को समर्थन बंद कर दे और अपने शब्दों और कर्मों में ईमानदारी दिखाए तो सर क्रीक विवाद का समाधान निकल सकता है।
(लेखक भारतीय तटरक्षक बल के अतिरिक्त महानिदेशक रहे हैं)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।