विचार: आवश्यक रक्षा कवच है सुदर्शन चक्र, वैश्विक सुरक्षा-सामरिक परिदृश्य बहुत तेजी से बदला
आत्मनिर्भरता का भाव बढ़ाने के साथ ही यह सतह हवा और समुद्र से भी संचालन-प्रक्षेपण में सक्षम होगा। इसका पुनउपयोग भी किया जा सकेगा। इसका नियंत्रण भी चीफ आफ डिफेंस स्टाफ-सीडीएस के माध्यम से होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जब सुदर्शन चक्र नाम वाली रक्षा प्रणाली प्रभाव में आएगी तो हमारे सामरिक ढांचे का प्रमुख स्तंभ बनेगी।
जगतबीर सिंह। स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई महत्वाकांक्षी घोषणाएं कीं। ऐसी ही एक घोषणा राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भी हुई। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को सुरक्षित महसूस होना चाहिए। इसे सुनिश्चित करने के लिए मिशन सुदर्शन चक्र को मूर्त रूप दिया जाएगा। इसके अंतर्गत अगले दस वर्षों के दौरान स्वदेशी तकनीकी विकास के माध्यम से भारत के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों का सुरक्षा कवच मजबूत किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण से प्रेरणा लेते हुए हमने सुदर्शन चक्र की राह चुनी है।
इस तंत्र से संबंधित समस्त शोध, विकास एवं विनिर्माण भारत में ही किया जाएगा। यह भी एक संयोग ही है कि भारत की प्रमुख स्ट्राइक कोर में से एक 21 कोर को भी सुदर्शन चक्र ही कहते हैं। अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित यह आक्रामक इकाई दुश्मन को उसके इलाके में गहरी चोट पहुंचाने की क्षमताओं से लैस है। पिछले कुछ समय में वैश्विक सुरक्षा-सामरिक परिदृश्य बहुत तेजी से बदला है और निरंतर परिवर्तनों से गुजर रहा है।
इस परिदृश्य में मिसाइल डिफेंस प्रणाली राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतियों का आधार स्तंभ बन गई है। इस क्रम में उन्नत तकनीकें मिसाइल खतरों का पता लगाने, उन्हें ट्रैक करने, इंटरसेप्ट करने और निष्क्रिय करने के लिए डिजाइन की गई हैं। इनके काम का दायरा छोटी रेंज की बैलिस्टिक मिसाइलों से लेकर अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों यानी आइसीबीएम तक फैला हुआ है।
भू-राजनीतिक (जियो-पालिटिकल) तनाव बढ़ने की स्थिति में जब मिसाइलों का चलन बढ़ता है, तब सशक्त मिसाइल रक्षा प्रणालियों का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। इस कड़ी में इजरायल की आयरन डोम प्रणाली का अक्सर उदाहरण दिया जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस साल एलान किया कि वे 175 अरब डालर की लागत से तैयार होने वाली गोल्डन डोम प्रणाली से अमेरिका के रक्षा आवरण को और अभेद्य बनाएंगे।
गोल्डन डोम की संकल्पना स्थल, समुद्र और अंतरिक्ष आधारित मिसाइलों को निष्प्रभावी करने को ध्यान में रखकर की गई है। रूस ए-135 एंटी-बैलिस्टिक प्रणाली के जरिये मास्को और अन्य महत्वपूर्ण शहरों की रक्षा करता है। उसके पास एस-400 जैसी कारगर प्रणाली भी है जो तमाम मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है। भारत के पास भी एस-400 की तीन स्क्वाड्रन हैं, जिसमें दो स्क्वाड्रन का और जुड़ाव होना है।
चीन के पास एचक्यू-9 जैसी प्रणाली है। सतह से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी की यह एंटी-बैलिस्टिक क्षमता प्रणाली एक तरह से रूसी एस-300 का ही चीनी संस्करण है। विमान, क्रूज मिसाइल और टैक्टिकल बैलिस्टिक जैसे हवाई खतरों को इंटरसेप्ट करने में सक्षम इस प्रणाली को चीन ने पाकिस्तान, मोरक्को, मिस्र, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों को बेचा भी है।
ताइवान और जापान के पास भी ऐसी ही प्रणालियां हैं। ताइवान के पास जहां स्काई बो श्रेणी की सतह से हवा में मार करने वाली, एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल और एंटी-एयरक्राफ्ट रक्षा प्रणाली है, वहीं जापान की योजना अमेरिका के पीएसी-3 वाले सतह से हवा में सक्रिय होने वाले इंटरसेप्टर्स को अपनाने की है। अन्य प्रमुख देशों की तरह भारत भी मिसाइल संबंधी खतरों और साइबर हमलों के प्रति अपना रक्षा कवच मजबूत बनाने में लगा है। आपरेशन सिंदूर में इस रक्षा कवच का प्रभावी असर भी देखने को मिला। इंटीग्रेटेड एयर कमांड एवं कंट्रोल सिस्टम यानी आइएसीसीएस के जरिये भारत ने पाकिस्तान के मिसाइल हमलों को सफलतापूर्वक नाकाम किया। अनुमान है कि प्रस्तावित सुदर्शन चक्र को भारत के मौजूदा हवाई सुरक्षा ढांचे से भी जोड़ा जाएगा।
इसे मूल रूप से आइएसीसीएस के आधार पर विकसित किया जाएगा, जिसमें सेना के स्वदेशी आकाशतीर नेटवर्क का भी समावेश होगा। सुदर्शन चक्र में अत्याधुनिक निगरानी, इंटरसेप्शन और प्रतिकार करने की क्षमताएं होंगी। यह हवा में, स्थल पर या समुद्र के साथ-साथ साइबरस्पेस से दस्तक देने वाले किसी भी खतरे को तत्काल निष्प्रभावी करने में सक्षम होगा। माना जा रहा है कि सुदर्शन चक्र की क्षमताएं पारंपरिक मिसाइल डिफेंस से भी कहीं अधिक होंगी।
वर्तमान में जिस तरह के नए-नए खतरे बढ़े हैं, उसे देखते हुए सैन्य एवं तकनीकी रक्षा कवच को और मजबूत बनाया जाना अपरिहार्य हो गया है। याद रहे कि आधुनिक समर नीति में केवल सैन्य प्रतिष्ठान ही नहीं, बल्कि बिजली ग्रिड, संचार नेटवर्क, खाद्य एवं जल आपूर्ति, स्वास्थ्य सुविधाएं और रक्षा प्रणालियां भी निशाने पर होती हैं। इसलिए सुदर्शन चक्र जैसे ढांचे की उपयोगिता बहुत बढ़ जाती है। इसमें सैन्य तकनीकों के साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उभरती तकनीकों की भी अहम भूमिका होगी।
वैसे तो मिशन सुदर्शन चक्र की रूपरेखा अभी पूरी तरह सामने नहीं आई, पर इसमें भारत की प्रतिष्ठित अनुसंधान इकाइयों, रक्षा प्रतिष्ठानों और निजी क्षेत्र की सहभागिता-सक्रियता देखने को मिलेगी। इसके अतिरिक्त, यह आकाश, एस-400 और क्यूआर-सैम जैसी मौजूदा प्रणालियों के साथ-साथ लेजर-आधारित इंटरसेप्टर जैसी भविष्य की ताकत से संचालित होकर एक संयुक्त रक्षा प्रणाली की भूमिका निभाएगा। इसे प्रभावी जवाबी हमलों की क्षमताओं के साथ ही हैकिंग और फिशिंग जैसे साइबर खतरों से निपटने की दृष्टि से भी तैयार किया जाएगा।
आत्मनिर्भरता का भाव बढ़ाने के साथ ही यह सतह, हवा और समुद्र से भी संचालन-प्रक्षेपण में सक्षम होगा। इसका पुन:उपयोग भी किया जा सकेगा। इसका नियंत्रण भी चीफ आफ डिफेंस स्टाफ-सीडीएस के माध्यम से होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जब सुदर्शन चक्र नाम वाली रक्षा प्रणाली प्रभाव में आएगी तो हमारे सामरिक ढांचे का प्रमुख स्तंभ बनेगी। एक निरंतर जटिल होते सुरक्षा परिदृश्य में अत्याधुनिक तकनीकों के जुड़ाव से उभरते हुए खतरों से निजात दिलाने में यह प्रणाली अहम भूमिका निभाकर भी अपनी उपयोगिता साबित करेगी।
(लेखक सेवानिवृत्त मेजर जनरल एवं यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में प्रतिष्ठित फेलो हैं)
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