दैनिक जागरण की ओर से आयोजित नरेन्द्र मोहन स्मृति व्याख्यान एवं साहित्य सृजन सम्मान के अवसर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने घुसपैठ के कारणों पर प्रकाश डालते हुए जो विचार व्यक्त किए, उनसे यही पता चलता है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि से होने वाली घुसपैठ क्यों एक गंभीर समस्या बनी हुई है?

उन्होंने यह तो स्वीकार किया कि सीमाओं की सुरक्षा केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है और इस नाते घुसपैठ रोकना उनका दायित्व है, लेकिन इसी के साथ यह प्रश्न भी किया कि आखिर घुसपैठिये जाते कहां हैं और उन्हें शरण कौन देता है? उन्होंने स्पष्ट किया कि सीमा पर दुर्गम स्थलों के कारण घुसपैठ होती रहती है, लेकिन घुसपैठिये सीमावर्ती क्षेत्रों में ही इसलिए अपना ठिकाना बना लेते हैं, क्योंकि उन्हें वहां शरण मिलती है।

इतना ही नहीं, उनके लिए फर्जी पहचान पत्र बनाने का काम किया जाता है। यह एक ऐसी सच्चाई है, जिससे कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। आखिर यह किसी से छिपा नहीं कि पश्चिम बंगाल में किस तरह बड़ी संख्या में घुसपैठिये राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र एवं आधार बनवा लेते हैं। यह संभव नहीं कि राज्यों का शासन इससे अनभिज्ञ हो।यह चिंताजनक है कि कुछ राज्य सरकारें घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में देखती हैं।

यही कारण है कि बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में किसी थाने में घुसपैठियों के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं होती। घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में देखना और उन्हें शरण देना देश की सुरक्षा के साथ जानबूझकर किया जाने वाला खिलवाड़ है। घुसपैठिये शरणार्थी नहीं हैं। दोनों में अंतर किया जाना चाहिए। अब यह स्पष्ट है कि कुछ राज्य सरकारें घुसपैठ रोकने को लेकर गंभीर नहीं और उलटे जब कभी घुसपैठियों को निकालने के प्रयत्न होते हैं, तो वे उसके खिलाफ खड़ी हो जाती हैं।

इस सच से मुंह नहीं मोड़ा जाना चाहिए कि बंगाल और झारखंड के साथ-साथ पूर्वोत्तर के कई राज्यों में वोट बैंक की संकीर्ण राजनीति के कारण ही घुसपैठियों की संख्या बढ़ गई है। कई सीमावर्ती इलाकों में उन्होंने न केवल सामाजिक तानेबाने को बदल दिया है, बल्कि कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव परिणाम प्रभावित करने की स्थिति में आ गए हैं। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।

इस घंटी को सभी राजनीतिक दलों को दलगत हित से ऊपर उठकर सुनना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब घुसपैठ को रोकने के मामले में राजनीतिक आम सहमति दिखनी चाहिए, तब उसके साथ-साथ मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की चुनाव आयोग की प्रक्रिया का भी विरोध किया जाता है। ऐसे में, यह और जरूरी है कि देश भर में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण प्राथमिकता के आधार पर किया जाए।