प्रो. निरंजन कुमार। फ्रेडरिक नीत्शे का कथन है कि मूल्यांकन करना ही हमारे द्वारा मूल्यवान समझी जाने वाली सबसे मूल्यवान चीज है... मूल्यांकन के बिना अस्तित्व का सार खोखला होगा। व्यावहारिक संदर्भों में इसे समझें तो परीक्षा वह महत्वपूर्ण व्यवस्था है, जिसके द्वारा विद्यार्थियों-परीक्षार्थियों का सम्यक मूल्यांकन होता है। परीक्षा का मूल्य तब और बढ़ जाता है जब इसके माध्यम से उच्चतर पाठ्यक्रमों में प्रवेश अथवा रोजगार का मार्ग खुलता है। परीक्षा प्रणाली की शुचिता किसी भी उन्नत समाज या देश के लिए बहुत जरूरी है।

दुर्भाग्य से विभिन्न राज्यों में बोर्ड परीक्षाएं हों, लोक सेवा आयोग अथवा अन्य संस्थाओं की परीक्षाएं हों, इनकी शुचिता पर सवाल उठते रहे हैं। इस कड़ी में ताजातरीन घटनाक्रम है नीट (मेडिकल प्रवेश परीक्षा), यूजीसी-नेट या सीएसआइआर परीक्षाओं को लेकर उठा विवाद, जिसने परीक्षा व्यवस्था से लोगों के विश्वास को हिलाकर रख दिया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि छात्रों के हित में समस्या का उचित हल निकालने की जगह इस मुद्दे पर राजनीतिक दांवपेच का खेल शुरू हो गया है। विपक्षी दल इसे रद करने की मांग कर रहे हैं। इस कड़ी में नवीनतम पेच है बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा पत्र, जिसमें नीट परीक्षा को ही समाप्त करने की मांग की गई है। ऐसी मांग कुछ और दल भी कर रहे हैं। इस मुद्दे के प्रशासनिक, तकनीकी और राजनीतिक पक्ष हैं और इसका समाधान राजनीतिक लाभ से ऊपर उठकर छात्रहित में ही होना।

इसमें संदेह नहीं कि नीट में खासी चूक हुई है। परीक्षा एजेंसी ‘नेशनल टेस्टिंग एजेंसी’ (एनटीए) मुख्य रूप से कठघरे में है। हालांकि सरकार ने उचित कार्रवाई करते हुए एनटीए प्रमुख को हटाकर एक नए सक्षम अधिकारी को एनटीए का दायित्व तो दिया ही, सीबीआइ जांच भी बैठा दी है। कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। सरकार की गंभीरता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि स्वयं राष्ट्रपति के संसदीय अभिभाषण में नीट मुद्दे का उल्लेख हुआ। वहीं, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने परीक्षाओं को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए पूर्व इसरो चेयरमैन के. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जो परीक्षा प्रक्रिया में सुधार, डाटा सुरक्षा प्रोटोकाल और एनटीए की संरचना पर अनुशंसा देगी।

केंद्र ने पेपर लीक और नकल रोकने के लिए सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 जैसे सख्त कानून को भी अधिसूचित कर दिया है। इस कानून के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती हैं। इस मामले में सीबीआइ को यह जांच भी करनी चाहिए कि क्या इस मामले में कोई अंतरराष्ट्रीय कड़ी भी जुड़ी है? ध्यातव्य है कि नीट परीक्षा 12 अन्य देशों में भी आयोजित की गई थी। पेपर लीक में डार्कनेट की भूमिका भी देखी जा रही है। रही बात नीट को रद करने की तो अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। उसका निर्णय जो भी हो, लेकिन ममता बनर्जी और एमके स्टालिन द्वारा नीट परीक्षा की व्यवस्था को ही समाप्त कर देने की मांग कहीं से भी उचित नहीं। तमिलनाडु के अन्य नेता भी नीट का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

ममता बनर्जी ने लिखा है कि गड़बड़ियों के मद्देनजर नीट परीक्षा को समाप्त कर पुरानी व्यवस्था लागू की जाए, जिसमें राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों के मेडिकल कालेजों में एडमिशन के लिए अलग-अलग प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करती थीं। उनके अनुसार इसमें ज्यादा परेशानी भी नहीं थी, लेकिन ममता का यह तर्क दमदार नहीं। पुरानी व्यवस्था में छात्रों की परेशानी का तो कोई ठिकाना नहीं था। एक ही मेडिकल पाठ्यक्रम (एमबीबीएस) में प्रवेश के लिए दर्जनों अलग-अलग परीक्षाएं होती थीं। एम्स, बीएचयू, एएमयू, पुडुचेरी, सीबीएसई, एएफएमसी के अतिरिक्त सभी राज्यों की अपनी मेडिकल प्रवेश परीक्षाएं होती थीं। फिर विभिन्न प्राइवेट कालेजों की अपनी अलग-अलग प्रवेश परीक्षाएं भी होती थीं। निम्न वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के विद्यार्थियों के लिए सभी परीक्षाओं में बैठना असंभव था। उच्च मध्यम वर्ग का छात्र भी इतनी ज्यादा परीक्षाओं को देते-देते पस्त हो जाता था। समय, धन, ऊर्जा की बर्बादी अलग होती थी। इन्हीं जटिलताओं के कारण 2017 से एकीकृत मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट शुरू हुई। नीट की विसंगतियों की पहचान कर उन्हें दूर करने की आवश्यकता है, न कि इस नई व्यवस्था को खत्म करने की।

ममता बनर्जी के अनुसार वर्तमान प्रणाली ने भ्रष्टाचार को जन्म दिया है। यहां जानना जरूरी है कि केंद्र या राज्य सरकार, चाहे किसी भी पार्टी की हो, प्रवेश परीक्षाओं या रोजगार परीक्षाओं में पेपर लीक और गड़बड़ी का इतिहास बहुत पुराना है। उनका यह कथन भी तर्कसम्मत नहीं कि एकात्मक-केंद्रीकृत परीक्षा प्रणाली देश के संघीय ढांचे की भावना का उल्लंघन करती है। शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में है। अतः जनहित में केंद्र ऐसे निर्णय ले सकता है। राज्यों में आइएएस और आइपीएस की नियुक्ति के लिए केंद्रीय स्तर पर यूपीएससी द्वारा एक केंद्रीकृत परीक्षा दशकों से आयोजित की जा रही है। अगर ममता की बात मान ली जाए तो फिर इंजीनियरिंग, कानून या अन्य प्रवेश परीक्षाओं में भी ऐसी मांगें उठेंगी, जो नई समस्याओं को जन्म देगा। यहां समझना जरूरी है कि अलग-अलग परीक्षाओं वाली व्यवस्था का ज्यादा लाभ अमीर छात्रों को ही मिलेगा। नीट का विरोध और उसे समाप्त करने की मांग कहीं से जायज नहीं। नीट और इस जैसी अखिल भारतीय केंद्रीकृत परीक्षाएं देश हित में हैं। यह जरूर है कि इनकी शुचिता के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएं, ताकि ईमानदार-प्रतिभावान अभ्यर्थियों के साथ भविष्य में छलावा न हो।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में सीनियर प्रोफेसर और डीन आफ प्लानिंग हैं)