विचार: फिर से न छिड़े परमाणु हथियारों की होड़, ट्रंप का एलान भारत जैसी उभरती हुई शक्तियों के लिए सिरदर्द
यह दौड़ जहां भारत जैसी उभरती शक्तियों के लिए सिरदर्द बनेगी, वहीं ट्रंप के शांति पुरस्कार के सपने को भी तोड़ सकती है, क्योंकि नोबेल समिति को परमाणु हथियारों की दौड़ शुरू कराने वाले को पुरस्कृत करने से पहले चार बार सोचना होगा।
HighLights
रूस, चीन ने आरोपों का खंडन किया
भारत के लिए परमाणु हथियारों की होड़ चिंता
शिवकांत शर्मा। भारत में तो एटम बम और हाइड्रोजन बम फोड़ने की बातें ही होती हैं, लेकिन असली बम तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण कोरिया में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात से पहले ही फोड़ दिया। उन्होंने अपने इंटरनेट मीडिया अकाउंट पर लिखा, ‘चूंकि कई दूसरे देश परमाणु परीक्षण कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने अपने युद्ध विभाग को भी तत्काल दूसरे देशों के स्तर के परमाणु परीक्षण शुरू करने के निर्देश दे दिए हैं।’ परीक्षण करने वाले देशों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने सीबीएस न्यूज को दिए साक्षात्कार में रूस, चीन और उत्तर कोरिया के साथ पाकिस्तान का नाम भी लिया।
नवंबर 1996 में पारित हुई परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि यानी सीटीबीटी के तहत नागरिक या सैनिक किसी भी उद्देश्य से परमाणु परीक्षण करना प्रतिबंधित है। हालांकि इस संधि का अमेरिका ने अभी तक अनुमोदन नहीं किया है, लेकिन वही इसका सबसे प्रबल प्रायोजक-पैरोकार रहा है। इसलिए ट्रंप के एलान से परमाणु परीक्षण निरीक्षकों, निरस्त्रीकरण विशेषज्ञों और दूसरी परमाणु शक्तियों में हैरत और परेशानी की लहर दौड़ना स्वाभाविक था।
ट्रंप ने जिन चार देशों पर छिपकर परीक्षण करने के आरोप लगाए उनमें से उत्तर कोरिया ने तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, पर चीन और रूस ने ट्रंप के आरोपों का खंडन करते हुए परमाणु परीक्षण प्रतिबंध का पालन करने के दावे किए। और तो और पाकिस्तान ने भी खंडन करने में ढिलाई नहीं दिखाई। पाकिस्तानी सैन्य प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने कहा, ‘पाकिस्तान 1988 के बाद से परीक्षणों पर लगाए स्वैच्छिक विराम का पालन कर रहा है। पाकिस्तान ने न तो परमाणु परीक्षण करने में पहल की थी और न वह उन्हें दोबारा शुरू करने में पहल करेगा।’
पाकिस्तान के परमाणु अप्रसार के अंतरराष्ट्रीय नियमों का खुला उल्लंघन करते हुए परमाणु बम बनाने और उसकी तकनीक ईरान, लीबिया और उत्तरी कोरिया जैसे देशों को बेचने के विवादास्पद इतिहास को देखते हुए उसकी इस बात पर यकीन नहीं किया जा सकता कि वह परीक्षणों पर लगे प्रतिबंध का स्वेच्छा से पालन कर रहा है। परमाणु अस्त्रों के प्रयोग में पहल न करने की भारत की नीति के विपरीत पहले प्रयोग करने की नीति पर चलना और तरह-तरह के परमाणु बमों के प्रयोग की धमकी देते रहना भी पाकिस्तान की नीयत पर संदेह पैदा करता है।
फिर भी, परमाणु परीक्षणों पर निगाह रखने के लिए बनी सीटीबीटी संगठन की अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण प्रणाली आइएमएस ने अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं दी है कि पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया है। रूस ने आखिरी परमाणु परीक्षण सोवियत संघ के विखंडन से एक साल पहले 1991 में किया था और चीन ने 1996 में। उसके बाद इस सदी में उत्तर कोरिया को छोड़कर किसी देश ने कोई परमाणु परीक्षण नहीं किया है।
ट्रंप का एलान कई सवाल खड़े करता है। मसलन क्या रूस, चीन और पाकिस्तान वाकई ऐसे परमाणु परीक्षण कर रहे हैं, जिनकी भनक आइएमएस को भी नहीं है? यदि ऐसा है तो फिर उसकी उपादेयता क्या है? अमेरिका के परमाणु परीक्षण शुरू करने से विश्व में परमाणु अस्त्रों की जो होड़ शुरू होगी उसे कैसे रोका जा सकेगा? इनका स्पष्टीकरण देने का काम ट्रंप ने अमेरिका के ऊर्जा मंत्री क्रिस राइट को सौंपा। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति ट्रंप ने जिन परमाणु परीक्षणों को शुरू करने का एलान किया है वे सब-क्रिटिकल या ठंडे परमाणु परीक्षण हैं जिनसे रेडियोधर्मिता नहीं फैलती।’ राइट का उद्देश्य दुनिया की चिंता दूर करने से अधिक अमेरिकी राज्य नेवाडा के निवासियों की चिंता दूर करना था, जो अमेरिका के परमाणु परीक्षण स्थल के पास रहते हैं। यहां पर 1992 के बाद से कोई परमाणु परीक्षण नहीं हुआ है और अब लोग परीक्षणों का कड़ा विरोध करते हैं।
हालांकि ट्रंप ने स्वयं इसका स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि वे विस्फोट वाले परीक्षण की नहीं, बल्कि सब-क्रिटिकल यानी ठंडे प्रायोगिक परीक्षण की बात कर रहे थे। बात से पलट जाना और मंत्रियों की बात काट देना उनके लिए आम बात है। इसलिए वे क्या कहना चाहते थे और क्यों, यह वही बता सकते हैं। फिर भी, यदि क्रिस राइट की बात सही मान ली जाए तब भी यह समझ नहीं आता कि इसके लिए सार्वजनिक एलान करने की क्या जरूरत थी और वह भी चीनी राष्ट्रपति के साथ होने वाली मुलाकात से ठीक पहले।
कंप्यूटरों पर और प्रयोगशालाओं में आभासी ठंडे परीक्षणों का अमेरिका के पास सबसे पुराना अनुभव और तकनीकी दक्षता है। आजकल उसी के सहारे परमाणु अस्त्रों का विकास और नवीनीकरण किया जाता है। अमेरिका, रूस और चीन के पास कुल मिलाकर 12 हजार के लगभग परमाणु बम हैं जिनसे दुनिया को कई बार ध्वस्त किया जा सकता है। इसलिए अब दौड़ परमाणु बम बनाने की नहीं, बल्कि उन्हें शत्रु के रक्षा कवच को भेद कर लक्ष्य तक पहुंचाने वाले प्रक्षेपास्त्रों के विकास की है, जिसमें रूस और चीन दोनों लगे हैं।
कुछ रणनीतिकारों का मानना है कि परीक्षण शुरू करने का एलान भभकी देकर सौदा पटाने की ट्रंप की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। दक्षिण कोरिया में चीनी राष्ट्रपति से हुई मुलाकात से कुछ ही दिन पहले रूस ने पोसाइडन परमाणु तारपीडो और बुरेवेस्तनिक परमाणु क्रूज मिसाइल के परीक्षण किए थे और दावा किया था कि ये दोनों अमेरिका के रक्षा कवच को भेदकर परमाणु बमों से लक्ष्य पर वार कर सकते हैं। इसलिए शायद ट्रंप परमाणु परीक्षण शुरू करने का नाटकीय एलान करके रूस और चीन दोनों को निरस्त्रीकरण वार्ताओं की मेज पर लाना चाहते हैं, ताकि अपनी शर्तों पर कोई सौदा कर सकें।
हालांकि निष्प्रभावी होती वैश्विक व्यवस्था, खेमों में बंटती दुनिया और बढ़ती असुरक्षा के माहौल में ऐसे एलानों से तीन दशकों पुरानी परमाणु अप्रसार की व्यवस्था टूटकर परमाणु हथियारों की दौड़ भी शुरू हो सकती है। यह दौड़ जहां भारत जैसी उभरती शक्तियों के लिए सिरदर्द बनेगी, वहीं ट्रंप के शांति पुरस्कार के सपने को भी तोड़ सकती है, क्योंकि नोबेल समिति को परमाणु हथियारों की दौड़ शुरू कराने वाले को पुरस्कृत करने से पहले चार बार सोचना होगा।
(लेखक बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक हैं)













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