विचार: अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकते गांव, भारत की आर्थिक सूरत बदल रही
यह समय की मांग है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अंतिम छोर तक मजबूत गैर-बैंकिग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की भूमिका को प्रभावी बनाया जाए। गांवों में प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना का तेजी से विस्तार करना होगा। इससे छोटे किसानों की संस्थागत ऋण तक पहुंच बढ़ाई जा सकेगी। देश को 2047 तक विकसित बनाने के लिए सरकार को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और सशक्त बनाने की डगर पर भी आगे बढ़ना होगा।
HighLights
भारत का खाद्यान्न उत्पादन 10 करोड़ टन बढ़ा
ग्रामीण भारत अर्थव्यवस्था को दे रहा मजबूती
गाँवों में साहूकारों पर निर्भरता कम करने की जरूरत
डॉ. जयंतीलाल भंडारी। भारत ने 2024-25 में 35.77 करोड़ टन अनाज पैदा करके एक ऐतिहासिक रिकार्ड बनाया है। पिछले दस सालों में भारत का खाद्यान्न उत्पादन 10 करोड़ टन बढ़ा है। यह खेती में आत्मनिर्भरता और गांवों के विकास की तरफ देश की लगातार बढ़ती रफ्तार को दिखाता है। इस समय जहां वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर लगभग तीन प्रतिशत है और जी-7 देशों की अर्थव्यवस्थाएं औसतन करीब 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, वहीं भारत में 2025-26 की दूसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही है।
इन दिनों भारत के आर्थिक परिदृश्य से संबंधित विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों में यह तथ्य रेखांकित हो रहा है कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 में ग्रामीण भारत से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है। इन रिपोर्टों के अनुसार गांवों में खपत तेजी से बढ़ रही है। ग्रामीण गरीबी में कमी, छोटे किसानों की साहूकारी कर्ज पर निर्भरता में कमी, ग्रामीण खपत में वृद्धि, किसानों का जीवन स्तर बढ़ने जैसी विभिन्न अनुकूलताओं से ग्रामीण भारत मजबूती की राह पर आगे बढ़ रहा है। रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समीक्षा की हालिया बैठक में कहा भी कि भारत में महंगाई घटने में कृषि उत्पादन और ग्रामीण विकास का महत्वपूर्ण योगदान है और आगे भी महंगाई नियंत्रण में खाद्यान्न उत्पादन की अहम भूमिका रहेगी।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण सुधार, बेहतर कृषि उत्पादन, ग्रामीण उपभोग में बढ़ोतरी तथा कर सुधार जैसे घटकों के दम पर भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा। इसी तरह एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स द्वारा प्रकाशित एशिया-पैसिफिक इकोनमिक आउटलुक रिपोर्ट 2025 के मुताबिक ग्रामीण भारत में विकास की सकारात्मकता है। महंगाई घटने और करों में कटौती से भारत की ग्रामीण खपत में सुधार हुआ है। रिजर्व बैंक द्वारा प्रकाशित ग्रामीण उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में 76.7 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में उपभोग वृद्धि और 39.6 प्रतिशत परिवारों में आय में वृद्धि सामने आई है। इसी तरह एसबीआइ रिसर्च द्वारा गरीबी पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबी में कमी शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक तेजी से आई है।
जहां 2011-12 में ग्रामीण गरीबी 25.7 प्रतिशत और शहरी गरीबी 13.7 प्रतिशत थी, वहीं 2023-24 में ग्रामीण गरीबी घटकर 4.86 प्रतिशत और शहरी गरीबी घटकर 4.09 प्रतिशत पर आ गई है। हाल में जारी नाबार्ड की सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में अब 54.5 प्रतिशत परिवार औपचारिक स्रोतों-क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों आदि से ऋण लेते हैं, जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। उल्लेखनीय है कि 2019 से शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना भी करोड़ों छोटे और सीमांत किसानों को वित्तीय मजबूती दे रही है।
अप्रैल 2020 से शुरू की गई पीएम स्वामित्व योजना के तहत ग्रामीणों को उनकी जमीन का कानूनी हक देकर उनके आर्थिक सशक्तीकरण का नया अध्याय लिखा जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में औपचारिक ऋण व्यवस्था ने अच्छी प्रगति की है। गांवों में बैंक शाखाओं की संख्या मार्च 2010 के 33,378 से बढ़कर दिसंबर 2024 तक 56,579 हो गई है। इसके साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड, सहकारी समितियों और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूह, ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था भी प्रभावी भूमिका निभा रही है। सरकार ने बीते 11 वर्षों में फसलों पर दी जाने वाली सब्सिडी और फसल बीमा राशि को बढ़ाया है।
हालांकि देश का कुल कृषि निर्यात 50 अरब डालर के पार पहुंच गया है, लेकिन हमें अभी भी ग्रामीण भारत के विकास और किसानों की प्रगति के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। छोटे और सीमांत किसान आधुनिक खेती की तकनीक अपनाने में असमर्थता अनुभव कर रहे हैं। छोटे किसान आनलाइन खरीदारी में बहुत पीछे हैं। अभी भी ग्रामीण जनजीवन के करीब 22 प्रतिशत लोगों की कर्ज के लिए साहूकारों और अन्य अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भरता बनी हुई है। यह वर्ग ऊंची ब्याज दर पर कर्ज देता है और उसकी औसत ब्याज दरें लगभग 17-18 प्रतिशत से भी अधिक होती हैं।
जब छोटे किसानों को मौसमी जोखिम और सरकार से पर्याप्त धन हस्तांतरण की कमी का सामना करना पड़ता है, तब वे भारी ब्याज के बावजूद साहूकारों की चौखट पर दस्तक देते हैं। कई बार छोटे किसान औपचारिक स्रोतों से ऋण लेना तो चाहते हैं, मगर इसमें दस्तावेजों की कमी, गारंटी दाता का अभाव एवं अन्य शर्तें बाधा डालती हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत कृषि परिवार अभी भी कर्ज में डूबे हुए हैं। ऐसे में गांवों में साहूकारों और अनौपचारिक ऋणों पर निर्भरता घटाने के लिए बैंक शाखा विस्तार के अलावा अन्य कदम उठाने की भी जरूरत है।
यह समय की मांग है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अंतिम छोर तक मजबूत गैर-बैंकिग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की भूमिका को प्रभावी बनाया जाए। गांवों में प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना का तेजी से विस्तार करना होगा। इससे छोटे किसानों की संस्थागत ऋण तक पहुंच बढ़ाई जा सकेगी। देश को 2047 तक विकसित बनाने के लिए सरकार को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और सशक्त बनाने की डगर पर भी आगे बढ़ना होगा।
(लेखक अर्थशास्त्री हैं)













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