जागरण संपादकीय: फर्जी विश्वविद्यालयों पर शिकंजा, बंद करने की कार्रवाई शुरू
प्रश्न यह भी है कि नियम-कानूनों को कठोर करके इन फर्जी विश्वविद्यालयों को एक झटके में बंद क्यों नहीं किया जा सकता या फिर उन पर ऐसी कोई शर्त क्यों नहीं थोपी जा सकती कि वे यूजीसी के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य हों, ताकि छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ न होने पाए?
HighLights
फर्जी विश्वविद्यालयों पर शिकंजा
नियमों का पालन अनिवार्य
छात्रों के भविष्य की सुरक्षा
इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि शिक्षा मंत्रालय फर्जी विश्वविद्यालयों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखने जा रहा है। आश्चर्य नहीं कि इस पत्राचार के बाद भी फर्जी शिक्षा संस्थान बंद न हों। इसकी आशंका इसलिए है, क्योंकि अतीत में इस तरह की पहल की जा चुकी है, लेकिन सभी फर्जी शिक्षा संस्थानों पर ताला नहीं लगाया जा सका।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी हर वर्ष फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी करता है, ताकि छात्र उनमें प्रवेश लेने और अपना समय एवं धन बर्बाद करने से बचें। इसके बाद भी वे चलते रहते हैं। इसका मतलब है कि छात्र उनमें प्रवेश लेते हैं। यूजीसी फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी करने के साथ ही यह भी बताता है कि इन शिक्षा संस्थानों की ओर से दी जाने वाली डिग्री किसी काम की नहीं होती, लेकिन उनका अस्तित्व बना ही रहता है।
कई फर्जी विश्वविद्यालय ऐसे हैं, जिनके खिलाफ एफआइआर भी दर्ज की जा चुकी है, लेकिन उन्हें इसलिए बंद नहीं किया जा सका, क्योंकि कुछ ने अदालतों की शरण ले ली तो कुछ ने किसी अन्य आधार पर अपने को वैध ठहराने की चेष्टा की। स्पष्ट है कि शिक्षा संस्थानों के संचालन संबंधी नियम-कानूनों में कुछ ऐसे छिद्र हैं, जिनका लाभ फर्जी विश्वविद्यालयों को चलाने वाले उठा रहे हैं।
फर्जी विश्वविद्यालयों का संचालित होते रहना केवल छात्रों के साथ खिलवाड़ ही नहीं, बल्कि शिक्षा संस्थानों को संचालित करने वाली व्यवस्था का उपहास भी है। यह व्यवस्था कितनी दीन-हीन है, इसका पता इससे चलता है कि देश में जो 22 फर्जी विश्वविद्यालय चल रहे हैं, उनमें से 10 देश की राजधानी दिल्ली यानी संसद, सुप्रीम कोर्ट, शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी की नाक के नीचे चल रहे हैं।
क्या यह एक मजाक नहीं? कुछ फर्जी विश्वविद्यालय तकनीक, प्रबंधन और कानून की भी डिग्रियां बांटते हैं। किसी को यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि आखिर इन फर्जी विश्वविद्यालयों से कथित तौर पर डिग्री हासिल करने वाले छात्र करते क्या हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वे अपनी अमान्य डिग्रियों का कहीं पर इस्तेमाल करने में समर्थ हो जाते हों?
यह सहज ही समझा जा सकता है कि फर्जी विश्वविद्यालय चोरी-छिपे नहीं, बल्कि खुलेआम सार्वजनिक स्थानों में चल रहे होते हैं। आखिर एक अवैध समानांतर व्यवस्था के सामने विधि का शासन इतना असहाय कैसे हो सकता है?
प्रश्न यह भी है कि नियम-कानूनों को कठोर करके इन फर्जी विश्वविद्यालयों को एक झटके में बंद क्यों नहीं किया जा सकता या फिर उन पर ऐसी कोई शर्त क्यों नहीं थोपी जा सकती कि वे यूजीसी के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य हों, ताकि छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ न होने पाए?













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