जागरण संपादकीय: गाजा शांति समझौता, पहले चरण पर अमल; दूसरे पर नजर
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि पाकिस्तान ने गाजा शांति समझौते को नकारने के लिए ही कट्टरपंथी तत्वों को सड़कों पर उतरने के लिए उकसाया और फिर उन पर गोलियां भी चलवाईं, ताकि दुनिया और विशेष रूप से अमेरिका को यह संदेश जाए कि उसके लिए गाजा शांति समझौते को स्वीकार करना संभव नहीं।
HighLights
- <p>गाजा शांति समझौते का पहला चरण शुरू</p>
- <p>इजरायल ने फलस्तीनी कैदियों को रिहा किया</p>
- <p>समझौते के अगले चरणों पर आशंका</p>
अंततः गाजा में शांति प्रस्ताव के पहले चरण पर अमल प्रारंभ हो गया। हमास की ओर से इजरायली बंधक छोड़ने के साथ इजरायल ने फलस्तीनी कैदी रिहा करने शुरू कर दिए। अब निगाह इस पर होगी कि शांति समझौते के अगले चरण कब पूरे होते हैं और वे सही तरह पूरे होते भी हैं या नहीं?
इस पर संशय इसलिए है, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं कि इजरायली सेना गाजा में कितना पीछे हटेगी और वहां के प्रशासन को संचालित करने का कैसा तंत्र तैयार होगा और क्या उस पर हमास सहमत होगा? इसके अतिरिक्त जहां हमास को हथियार छोड़ने हैं, वहीं इजरायल को स्वतंत्र फलस्तीन देश की राह आसान करनी है।
हमास का कहना है कि हथियार तब छोड़े जाएंगे, जब स्वतंत्र फलस्तीन का रास्ता साफ होगा। इस पर इजरायल तैयार नहीं दिख रहा है। यह ठीक है कि स्वयं की ओर से प्रस्तावित गाजा शांति समझौते पर अमल शुरू होने के अवसर पर मिस्र जाने के पहले इजरायल पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी पहल को पश्चिम एशिया में शांति की स्थापना का पथ करार दिया और इजरायली प्रधानमंत्री से ईरान से समझौता करने को कहा।
ऐसे किसी समझौते की सूरत तब बनेगी, जब ईरान इजरायल को मिटाने की अपनी जिद छोड़ेगा। इजरायल उस पर भरोसा नहीं कर सकता, क्योंकि वह उसके लिए खतरा बने हमास, हिजबुल्ला आदि की पीठ पर हाथ रखे हुए है और यमन में काबिज हाउती विद्रोहियों को भी अपना समर्थन दे रहा है। इसी कारण ईरान और इजरायल में युद्ध हुआ था, जिसमें अमेरिका ने भी दखल दिया था।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने इजरायली संसद को संबोधित करते हुए गाजा शांति समझौते को पश्चिम एशिया की ऐतिहासिक सुबह की संज्ञा दी। वे कुछ भी दावा करें, फिलहाल यह कहना कठिन है कि प्रमुख मुस्लिम देश इजरायल को मान्यता देने के लिए तैयार होंगे। भले ही ट्रंप यह कह रहे हों कि गाजा शांति समझौते को सभी मुस्लिम देशों का समर्थन मिला, लेकिन वस्तुस्थिति इससे अलग है।
जब यह समझौता सामने आया था, तब उसे समर्थन देने और ट्रंप की प्रशंसा करने वालों में पाकिस्तान भी था, पर अब वह इस समझौते को समर्थन देने से केवल पीछे ही नहीं हट गया, बल्कि उसने अपने यहां ऐसा माहौल बनाया कि उसके विरोध में कट्टरपंथी तत्व सड़क पर उतर आए।
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि पाकिस्तान ने गाजा शांति समझौते को नकारने के लिए ही कट्टरपंथी तत्वों को सड़कों पर उतरने के लिए उकसाया और फिर उन पर गोलियां भी चलवाईं, ताकि दुनिया और विशेष रूप से अमेरिका को यह संदेश जाए कि उसके लिए गाजा शांति समझौते को स्वीकार करना संभव नहीं। एक तरह से पाकिस्तान ने उस अब्राहम समझौते को आगे बढ़ने से रोक दिया, जिसके जरिये ट्रंप यह चाहते हैं कि सभी मुस्लिम देश इजरायल को मान्यता दें।
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