राहुल गांधी एक लंबे समय से यह प्रचारित कर रहे हैं कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में उच्च जातियों का आधिपत्य है और दलित-पिछड़ी जातियां हाशिये पर धकेल दी गई हैं। गत दिवस बिहार में उन्होंने यह भी कह दिया कि यही स्थिति सेना में भी है। उनकी मानें तो उच्च जातियों के दस प्रतिशत लोगों ने सेना पर नियंत्रण कर रखा है।

पहला प्रश्न तो यही उठता है कि उन्हें यह कैसे पता चला और दूसरा यह कि आखिर दस प्रतिशत लोगों का सेना पर नियंत्रण होने का क्या मतलब? वे ऐसे बयान देकर न केवल लोगों को गुमराह कर रहे हैं, बल्कि सेना की छवि भी मलिन कर रहे हैं। कम से कम उन्हें सेना को तो बख्श देना चाहिए, जिसमें जाति, पंथ आदि के लिए कोई स्थान नहीं।

कोई भी यह नहीं कह सकता कि सेना की भर्ती में किसी तरह का भेदभाव होता है। यह ठीक नहीं कि राहुल गांधी जाने-अनजाने सेना की साख पर प्रहार कर रहे हैं। लगता है वे यह भूल गए कि कुछ समय पहले सेना को नीचा दिखाने वाले अपने बयान के लिए उन्हें किस तरह सुप्रीम कोर्ट की फटकार का सामना करना पड़ा था।

यह विचित्र है कि राहुल गांधी सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का उल्लेख कर यह तो कहते रहते हैं कि वहां दस प्रतिशत की हिस्सेदारी वाली उच्च जातियों का प्रभुत्व है, लेकिन यह नहीं स्पष्ट करते कि खुद कांग्रेस के विभिन्न संगठनों में दलित, पिछड़ी जातियों का कितना प्रतिनिधित्व है?

राहुल गांधी की समझ से असमान प्रतिनिधित्व का एक मात्र उपाय जातिगत जनगणना है। हालांकि जातिगत जनगणना कराने का फैसला ले लिया गया है, लेकिन उन्हें इतने से ही संतोष नहीं। वे इसकी गिनती भी चाह रहे हैं कि किस क्षेत्र में किस जाति के कितने लोग हैं? क्या इससे वह असमान प्रतिनिधित्व दूर हो जाएगा, जिसकी चर्चा राहुल गांधी करते रहते हैं?

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मनमोहन सरकार के समय सच्चर कमेटी के जरिये यह जानने की चेष्टा की गई थी कि सेना में कितने मुस्लिम हैं? सेना की आपत्ति के बाद ऐसा नहीं हो सका। बीते कुछ समय से राहुल गांधी खुद को सामाजिक न्याय का सबसे बड़ा पक्षधर साबित करने में लगे हुए हैं, लेकिन सब जानते हैं कि राजीव गांधी के समय किस तरह कांग्रेस ने ओबीसी आरक्षण का प्रबल विरोध किया था।


राहुल गांधी को यह भी बताना चाहिए कि कांग्रेस ने लंबे समय तक सत्ता में रहते हुए असमान प्रतिनिधित्व को दूर करने के लिए क्या किया? असमान प्रतिनिधित्व की समस्या से इन्कार नहीं, लेकिन इसका समाधान समाज को विभाजित करना और जातियों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना नहीं है। दुर्भाग्य से राहुल गांधी ऐसा ही कर रहे रहे हैं। इससे भी खराब बात यह है कि वे ऐसा करते हुए जातीय वैमनस्य को भी हवा दे रहे हैं।