आतंकवाद के एक और चर्चित मामले में अदालत ने यह पाया कि जांच एजेंसी ने जिन्हें कठघरे में खड़ा किया और जो लंबे समय तक जेल में रहे, वे संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं। इस बार ऐसा मालेगांव विस्फोट कांड में एनआइए की विशेष अदालत ने पाया। उसने यह कहते हुए सभी सातों अभियुक्तों को बरी कर दिया कि अभियोजन आरोप साबित नहीं कर सका।

2008 की इस घटना में छह की मौत हुई थी और सौ के करीब लोग घायल हुए थे। चंद दिनों पहले बंबई उच्च न्यायालय ने आतंकवाद की बेहद गंभीर और बहुत बड़ी घटना मुंबई ट्रेन विस्फोट कांड की सुनवाई करते हुए सभी 12 दोषियों को बरी कर दिया था। इन्हें एक समय महाराष्ट्र अपराध नियंत्रण अधिनियम यानी मकोका की विशेष अदालत ने दोषी पाया था। इस फैसले से देश अवाक रह गया था, क्योंकि इस भीषण आतंकी घटना में 180 से अधिक लोग मारे गए थे और आठ सौ से ज्यादा घायल हुए थे। यह ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने बांबे हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी, लेकिन प्रश्न यह है कि आखिर अपने देश में आतंकवाद के गंभीर मामलों की जांच और उनकी सुनवाई में हो क्या रहा है? यदि आतंक निरोधक दस्ते और एनआइए जैसी एजेंसियां आतंक के मामलों की सही तरह जांच नहीं कर पाएंगी तो न्याय कैसे होगा?

मालेगांव विस्फोट मामले में एनआइए की विशेष अदालत उस नतीजे पर पहुंची, जिस पर बांबे हाई कोर्ट ट्रेन विस्फोट कांड की सुनवाई करते हुए पहुंचा था। ऐसा कई आतंकी घटनाओं के मामलों में हो चुका है। इससे यही पता चलता है कि कभी जांच एजेंसियां, कभी अदालतें और कभी दोनों अपना काम सही तरह और समय पर नहीं करतीं। जांच और फिर अदालती कार्यवाही में देरी तथा ढिलाई एक बड़ा रोग है। यह समझ आता है कि बड़ी आतंकी घटनाओं की गहन जांच में एजेंसियां थोड़ा समय लें, पर आखिर विशेष और उच्चतर अदालतें वर्षों और दशकों का समय क्यों ले लेती हैं?

नीति नियंताओं की ओर से इस पर चिंता जताना व्यर्थ है, क्योंकि समस्या का समाधान तो हो नहीं रहा। इसके चलते जो लोग आतंकी घटनाओं में मारे जाते हैं, उनके स्वजन ठगा महसूस करते हैं और आतंकियों को बल मिलता है। आतंक के मामलों की जांच में यह भी कोई दबी-छिपी बात नहीं कि संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ बाधा बनते हैं। आतंकी घटनाओं को राजनीतिक रंग दिया जाता है। मालेगांव विस्फोट कांड में प्रज्ञा ठाकुर, सुधाकर द्विवेदी आदि की गिरफ्तारी के आधार पर हिंदू और भगवा आतंक का जुमला उछाला गया। इसका मकसद कथित भगवा आतंक को जिहादी आतंक जैसा बताना था। यह हिंदू ही नहीं, देश विरोधी साजिश थी। इसका लाभ पाकिस्तान को मिला, क्योंकि कांग्रेस के कई नेताओं ने समझौता एक्सप्रेस कांड पर भी एजेंसियों के सहारे भगवा आतंक की फर्जी कहानी गढ़ी।