मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की परीक्षा नीट को लेकर उठे गंभीर सवालों के बीच नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए की ओर से कराई गई यूजीसी नेट परीक्षा को रद किया जाना शर्म का विषय है। क्या इससे शर्मनाक और कुछ हो सकता है कि 18 जून को यूजीसी नेट की परीक्षा हुई और 24 घंटे के अंदर खबर आ गई कि उसका प्रश्नपत्र लीक हो गया?

यह परीक्षा इसलिए रद करनी पड़ी, क्योंकि उसके प्रश्नपत्र मैसेजिंग एप टेलीग्राम पर उपलब्ध पाए गए। इसका अर्थ है कि एनटीए ने नीट में अनियमितता की शिकायतों से कोई सबक नहीं सीखा। यूजीसी नेट परीक्षा रद करने से तो यह भी संदेह होता है कि एनटीए के तंत्र में ही कुछ ऐसे लोग शामिल हैं, जो धांधली करते अथवा कराते हैं।

यह संदेह इसलिए होता है, क्योंकि एक तो इस संस्था के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं और दूसरे वह अपना अधिकांश काम ठेके पर कराती है और वह भी ऐसी एजेंसियों के माध्यम से, जिनके पास इस तरह का काम करने का कोई अनुभव नहीं है। समझना कठिन है कि जिन परीक्षाओं में लाखों छात्र बैठते हों, उनका आयोजन ठेके पर क्यों कराया जाता है? क्या पैसे बचाने के लिए? आखिर लाखों छात्रों के भविष्य से जुड़ा इतना संवेदनशील कार्य ठेके पर कराना कहां की समझदारी है?

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि यूजीसी नेट परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक होने की जांच सीबीआइ को सौंप दी गई है और शीघ्र दोबारा परीक्षा करने का आश्वासन दिया गया है। इस परीक्षा में नौ लाख से अधिक छात्र बैठे थे। आखिर दोबारा परीक्षा देने के लिए विवश इतने अधिक छात्रों के समय और संसाधन की बर्बादी के साथ उन्हें जिस मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ेगा, उसकी भरपाई कौन करेगा और कैसे?

एक के बाद एक परीक्षाओं की विश्वसनीयता को लेकर उठने वाले प्रश्न एनटीए के साथ-साथ शिक्षा मंत्रालय और साथ ही केंद्रीय सत्ता की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचा रहे हैं। चूंकि एनटीए की साख ही सवालों से घिर गई है, इसलिए उसकी कार्यप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। उसकी ओर से आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं को लेकर भरोसा तब बहाल होगा, जब स्वयं उसकी प्रतिष्ठा स्थापित होगी।

यह आश्चर्य की बात है कि दर्जनों प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक हो जाने की घटनाओं के बावजूद किसी को यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर प्रश्नपत्रों के कई सेट क्यों नहीं बनाए जा सकते, ताकि यदि कभी एक सेट के प्रश्नपत्र लीक भी हो जाएं तो देश या प्रदेश भर में परीक्षा रद करने की आवश्यकता न पड़े। आज के इस तकनीकी युग में परीक्षा से पहले प्रश्नपत्र छापकर रखने और फिर उन्हें शहर-शहर भेजने की पुरानी व्यवस्था से छुटकारा क्यों नहीं पाया जा सकता? यदि ऐसे प्रश्न अनुत्तरित हैं तो पुरानी भूलों से सबक न लिए जाने के कारण।