सबको चिपको आंदोलन नहीं करना, लेकिन सबको जलवायु परिवर्तन के असर को समझना पड़ेगा

ब्राजील के बेलेम शहर में 10-21 नवंबर तक COP30 होने जा रहा है। साल-दर-साल जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चरम घटनाएं बढ़ रही हैं और उनसे होने वाला नुकसान भी ब...और पढ़ें
एस.के. सिंह जागरण न्यू मीडिया में सीनियर एडिटर हैं। तीन दशक से ज्यादा के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में ...और जानिए
जलवायु परिवर्तन (climate change) पर सबसे बड़ा सालाना सम्मेलन ‘COP’ ब्राजील के बेलेम शहर में होने जा रहा है। 10 नवंबर से 21 नवंबर तक चलने वाला यह 30वां सम्मेलन (COP30) होगा। इसमें दुनियाभर के नेता, वैज्ञानिक और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि शामिल होंगे। थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (CEEW) के संस्थापक-सीईओ डॉ. अरुणाभ घोष COP30 में दक्षिण एशिया के विशेष प्रतिनिधि बनाए गए हैं। जागरण प्राइम के एस.के. सिंह ने उनसे सम्मेलन की तैयारियों से लेकर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई को आम लोगों से जोड़ने तक जैसे मुद्दों पर बात की। मुख्य अंश-
देखिए, कुछ अनुमान हैं कि 1.5 डिग्री की सीमा हम पार कर चुके हैं। कुछ इलाकों में शायद नहीं हुआ होगा, लेकिन कुछ इलाकों में तापमान ज्यादा हो गया है। औसत तापमान अधिक हो चुका है। हमें समझना पड़ेगा कि 1.5 डिग्री, 1.7 डिग्री और 2 डिग्री पार होने में काफी फर्क है। तापमान 1.5 से 2 डिग्री तक बढ़ने पर वेस्ट अंटार्कटिक आइस शीट और ग्रीनलैंड आइस शीट के पिघलने की आशंका बहुत बढ़ जाती है। तापमान 2 डिग्री से 3.5 डिग्री तक बढ़ने पर चुनौतियां और बढ़ेंगी। जैसे बोरियल फॉरेस्ट नष्ट होने लगें, या परमाफ्रॉस्ट (कम से कम दो साल तक जमी हुई जमीन) पिघलने लगे तो मीथेन उत्सर्जन बढ़ जाएगा। इसी तरह, तापमान 3.5 डिग्री से भी अधिक बढ़ा तो जेट स्ट्रीम और ओशन सर्कुलेशन प्रभावित होगा।
मेरे कहने का मतलब है कि हम जो एक्सट्रीम क्लाइमेट इवेंट्स देख रहे हैं, वह औसत तापमान 1.5 डिग्री से अधिक होने का सिग्नल है। तापमान और बढ़ने पर इस तरह की घटनाएं ज्यादा हो जाएंगी। इसलिए जरूरी है कि पहले हम तापमान बढ़ने की दर को रोकें और फिर उसे नीचे लाएं। COP30 में इसी पर फोकस किया जा रहा है कि विभिन्न देश अपने स्तर पर क्या कर रहे हैं, उनके राज्य और शहर क्या कर रहे हैं, उनके बिजनेस क्या कर रहे हैं।
क्लाइमेटिक कंडीशंस तो बढ़ेंगे ही। CEEW में हमने भारत की करीब 4500 तहसील में मॉनसून पैटर्न में बदलाव पर एक रिपोर्ट तैयार की है। लगभग 55% तहसीलों में पिछले 10 साल में, उसके पहले 30 सालों की तुलना में दक्षिण-पश्चिम मानसून बढ़ा और 11% तहसीलों में घटा है। इसका मतलब नहीं यह कि जहां बढ़ रहा है वह अच्छा है और जहां घट रहा है वह बुरा। इसमें कई बातें मायने रखती हैं- बारिश कब और कितने समय के लिए आ रही है, उसकी इंटेंसिटी क्या है। इनके आधार पर तय होगा कि आपकी फसल कैसी होगी, इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक-ठाक रहेगा या नहीं।
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