बढ़ती गर्मी और प्रदूषण से हवा मे बढ़ रहा ओजोन का स्तर, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

जमीनी स्तर पर बढ़ता ओजोन गैस का प्रदूषण नई चुनौती बनकर उभर रहा है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि यह ‘अदृश्य गैस’ न सिर्फ हमारी सांसों में जहर घोल रह...और पढ़ें
विवेक तिवारी जागरण न्यू मीडिया में एसोसिएट एडिटर हैं। लगभग दो दशक के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार् ...और जानिए
नई दिल्ली, विवेक तिवारी। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए किए गए वैश्विक प्रयासों से अंटार्कटिका में ओजोन परत में हुए छेद भरने लगे हैं। एमआईटी के नेतृत्व में हुए वैश्विक अध्ययन में सामने आया कि अंटार्कटिक ओजोन परत धीरे-धीरे ठीक हो रही है, वहीं दूसरी तरफ जमीनी स्तर पर ओजोन गैस का प्रदूषण नई चुनौती बनकर उभर रहा है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि यह ‘अदृश्य गैस’ न सिर्फ हमारी सांसों में जहर घोल रही है, बल्कि आने वाले समय में खाद्यान्न उत्पादन पर भी गहरा संकट खड़ा कर सकती है। जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ती गर्मी और प्रदूषण के चलते देश के कई बड़े शहरों में जमीनी स्तर पर ओजोन का प्रदूषण तेजी से बढ़ता दिख रहा है। शहरों में वाहनों, उद्योगों और अन्य स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषक तत्वों ने ओजोन को एक नए सार्वजनिक स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा संकट में बदल दिया है। वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो ओजोन प्रदूषण इंसानों की सेहत के साथ-साथ गेहूं, धान और मक्के जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
शहरों में तेजी से बढ़ता ओजोन का प्रदूषण
हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई ) की ओर से भारत के सभी प्रमुख महानगर और बड़े शहर पर किए गए अध्ययन में सामने आया कि 2025 की गर्मियों के दौरान कई शहरों में जमीनी स्तर पर हवा में ओजोन का स्तर आठ घंटे के मानक से कहीं ज्यादा रहा। यह रिपोर्ट सीएसई की अर्बन लैब द्वारा अपनी 'वायु गुणवत्ता ट्रैकर' के जरिए तैयार की गई है। इस अध्ययन में सामने आया कि प्राथमिक प्रदूषकों के विपरीत, ओजोन किसी भी स्रोत से सीधे उत्सर्जित नहीं होता है। यह नाइट्रोजन ऑक्साइड, वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों और कार्बन मोनोऑक्साइड से जटिल रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से बनता है। ये प्रदूषक तत्व वाहनों, बिजली संयंत्रों, कारखानों और अन्य दहन स्रोतों से निकलते हैं। सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में, ये प्रदूषक तत्व रासायनिक क्रिया करते हैं जिससे जमीनी स्तर पर ओजोन का निर्माण होता है। जमीनी स्तर पर ओजोन न केवल शहर में रहने वाले लोगों को प्रभावित करता है, बल्कि लंबी दूरी तक फैलकर क्षेत्रीय प्रदूषक में बदल सकता है। यह कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है और खाद्य सुरक्षा को खतरा पहुंचा सकता है।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी के मुताबिक, "अगर जमीन के करीब ओजोन के प्रदूषण को नियंत्रण नहीं किया गया तो यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन सकता है। ओजोन एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है और हवा में लम्बे समय तक ओजोन का स्तर ज्यादा बने रहने से ये आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। उत्तर भारत के शहरों के अलावा ऐसे राज्य जहां गर्मियों में उच्च तापमान और तीव्र सौर विकिरण की स्थिति बनती है वहां भी ओजोन का प्रदूषण बढ़ रहा है।
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