डॉ. जयंतीलाल भंडारी। वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत में महंगाई और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने की सराहना की है। उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि महंगाई में कम अवधि की तेजी के बावजूद आने वाले महीनों में महंगाई दर रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित दायरे में आ जाएगी, क्योंकि ज्यादा कृषि बोआई और पर्याप्त अनाज भंडार के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी आएगी।

चूंकि भू राजनीतिक तनावों और मौसम की स्थिति खराब होने पर महंगाई दर बढ़ने का अभी जोखिम भी बना हुआ है, इसी कारण नीतिगत ब्याज दरों में ढील को लेकर रिजर्व बैंक सावधानी बरत रहा है। रिपोर्ट की मानें तो भारत में महंगाई के बीच भी इसकी अर्थव्यवस्था अच्छे दौर में है।

मूडीज ने चालू वर्ष वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की विकास दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। इसी तरह वैश्विक साख निर्धारित करने वाली एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में खाद्य पदार्थों की बढ़ती हुई कीमतों से महंगाई बढ़ी है, लेकिन जिस तरह भारत में आपूर्ति क्षमता तेजी से बढ़ रही है, उससे आने वाले दिनों में महंगाई के दबाव को कम करने में मदद मिलेगी।

मूडीज और एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की रिपोर्ट ऐसे समय प्रस्तुत हुई हैं, जब एक ओर देश के उद्योग और कारोबार से जुड़े संगठनों द्वारा तेज विकास के लिए नीतिगत ब्याज दरें घटाने की जरूरत बताई जा रही है, वहीं दूसरी ओर देश के उपभोक्ता वर्ग द्वारा महंगाई के नियंत्रण के लिए और कठोर कदम उठाने की जरूरत बताई जा रही है। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी उल्लेखनीय है कि हाल में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने एक टीवी चैनल पर कार्यक्रम में कहा कि देश में आरबीआई द्वारा अर्थव्यवस्था और विकास को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए।

ब्याज दर घटाने या बढ़ाने का फैसला खाद्य महंगाई के हिसाब से लेने का सिद्धांत सही नहीं है।’ वहीं आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि ‘वैश्विक चुनौतियों के बावजूद उपयुक्त मौद्रिक नीति से महंगाई नियंत्रण के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था सुचारु तरीके से आगे बढ़ रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभी बांड प्रतिफल में वृद्धि, खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव और बढ़ते भू राजनीतिक जोखिम जैसी कई तरह की बाधाएं हैं।’

इसमें दो मत नहीं है कि इस समय देश में खाद्य पदार्थों की तेजी से बढ़ती महंगाई के नियंत्रण और विकास की जरूरतों के बीच उपयुक्त तालमेल जरूरी है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों के अनुसार बीते अक्टूबर में देश में थोक महंगाई दर बढ़कर 2.36 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो गत चार महीने का उच्चतम स्तर है। सितंबर में यह आंकड़ा 1.84 प्रतिशत था। अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर भी बढ़कर 6.21 प्रतिशत हो गई, जो गत 14 महीने का उच्चतम स्तर है।

सितंबर में यह आंकड़ा 5.49 प्रतिशत था। आलू तथा प्याज सहित सभी प्रकार की सब्जियों की कीमतों में तेज वृद्धि तथा महंगे हुए अनाज एवं फलों के कारण अक्टूबर में खाद्य वस्तुओं की खुदरा महंगाई दर भी बढ़कर 10.87 प्रतिशत हो गई। जबकि सितंबर में यह 9.24 प्रतिशत तथा अगस्त में 5.66 प्रतिशत थी। जिन राज्यों में महंगाई सबसे ज्यादा बढ़ी है, उनमें छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश प्रमुख हैं।

यह बात महत्वपूर्ण है कि ब्याज दरों की यथास्थिति के साथ आरबीआई और अच्छे मानसून एवं स्थिर आपूर्ति शृंखला के जरिये सरकार महंगाई नियंत्रण का प्रयास कर रही है। इसी कारण आरबीआई मौद्रिक नीति समीक्षा बैठकों में तेज विकास दर के बजाय महंगाई नियंत्रण को प्राथमिकता दे रहा है। उसने लंबे समय से रेपो रेट 6.50 प्रतिशत और बैंक रेट 6.75 प्रतिशत पर स्थिर रखा है।

मानसून के अच्छे रहने से इस वर्ष देश में खाद्यान्न, दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ेगा और इनकी आपूर्ति बढ़ने से इनकी कीमतें भी कम होंगी। इसके साथ सरकार खाद्य महंगाई के नियंत्रण के लिए चालू वित्त वर्ष के बजट के तहत की गई व्यवस्थाओं का भी तेजी से क्रियान्वयन कर रही है। जैसे कि दाम स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के लिए 10,000 करोड़ रुपये के प्रविधान किए गए हैं।

इस कोष का उपयोग दाल, प्याज और आलू के बफर स्टाक को रखने के लिए किया जा रहा है। इस समय सरकार खाद, उर्वरक और बीजों की सरल आपूर्ति सुनिश्चित करने की डगर पर भी तेजी से आगे बढ़ रही है। इस प्रकार मौद्रिक प्रबंधन और खाद्यान्न निर्यात नीति एवं स्टाक सीमा निर्धारण आदि उपाय बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण कर सकेंगे।

खाद्य पदार्थों की महंगाई रोकने के लिए सरकार को इन तात्कालिक उपायों के साथ दीर्घकालीन उपायों पर भी ध्यान देना होगा। इस समय ग्रामीण भारत में जल्द खराब होने वाले ऐसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति शृंखला बेहतर करने पर प्राथमिकता से काम करना होगा, जिनकी खाद्य महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है।

ऐसे में सरकार को खाद्य उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कृषि उपज की बर्बादी को रोकने के बहुआयामी प्रयासों के तहत खाद्य भंडारण की कारगर व्यवस्था की डगर पर बढ़ना होगा। उम्मीद करें कि खुदरा महंगाई और थोक महंगाई दर के बढ़ने की चिंताओं के मद्देनजर सरकार और रिजर्व बैंक विभिन्न रणनीतिक प्रयासों से देश में महंगाई को नियंत्रित करने और विकास को गति देने के लिए नई संतुलित रणनीति के साथ आगे बढ़ेंगे। इससे रिजर्व बैंक के लक्ष्य के मुताबिक खुदरा महंगाई दर चालू वित्त वर्ष में 4.5 प्रतिशत तथा आगामी वित्त वर्ष 2025-26 में चार प्रतिशत के दायरे में दिखाई दे सकेगी।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)