यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उत्तर प्रदेश के संभल में स्थानीय अदालत के आदेश पर एक मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा भड़क उठी और इसके चलते तीन लोगों की जान चली गई। इसके अतिरिक्त कई अन्य लोग घायल भी हुए, जिनमें पुलिसकर्मी भी हैं। इस हिंसा को टाला जा सकता था यदि अदालत के आदेश पर हो रहे सर्वेक्षण का हिंसक विरोध नहीं किया जाता।

संभल की स्थानीय अदालत ने उस याचिका पर जामा मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया था, जिसमें दावा किया गया था कि मुगल बादशाह बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण एक मंदिर के स्थान पर किया था। स्थानीय अदालत के आदेश पर इसी मंगलवार को जब प्रारंभिक सर्वे किया गया था तब भी इलाके में तनाव फैला था, लेकिन उसे दूर कर लिया गया था।

समझना कठिन है कि गत दिवस सर्वे के दौरान ऐसे प्रयास क्यों नहीं किए गए जिससे किसी तरह की अव्यवस्था और अशांति न फैलने पाए। रविवार को सर्वे के दौरान जिस तरह पुलिस पर पथराव किया गया और वाहनों में तोड़फोड़ करने के साथ उन्हें आग के हवाले किया गया, उससे लगता है कि कुछ तत्वों ने उपद्रव की तैयारी कर रखी थी।

यह अच्छा नहीं हुआ कि मंदिर-मस्जिद के एक और मामले ने तनाव की स्थिति उत्पन्न की। यदि मस्जिद पक्ष का यह मानना है कि जामा मस्जिद के सर्वे का आदेश सही नहीं तो उसे ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए था। अदालत के आदेश की अवहेलना करने के लिए हिंसा का सहारा लेने का कहीं कोई औचित्य नहीं और तब तो बिल्कुल भी नहीं जब निचली अदालत के किसी फैसले के खिलाफ ऊंची अदालतों में जाने का रास्ता खुला हो।

यह सही है कि 1991 का पूजा स्थल अधिनियम किसी धार्मिक स्थल में बदलाव का निषेध करता है, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह अधिनियम ऐसे किसी स्थल के सर्वेक्षण की अनुमति भी प्रदान करता है और इसी कारण वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण हुआ और धार में भोजशाला परिसर का भी। मथुरा में ईदगाह परिसर के सर्वेक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है।

मंदिर-मस्जिद के विवाद नए नहीं हैं। इन विवादों को सुलझाने की आवश्यकता है। इसका एक तरीका न्यायपालिका का सहारा लेना है और दूसरा आपसी सहमति से विवाद को हल करना। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि जहां भी ऐसे विवाद हैं, उन्हें दोनों समुदाय आपस में मिल-बैठकर हल करें। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि समाज में सद्भाव बना रहेगा।

यह समझा जाना चाहिए कि इन दोनों उपायों के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है। इसी के साथ यह भी समझना होगा कि देश को अतीत से अधिक भविष्य की ओर देखने और मंदिर-मस्जिद विवादों से बाहर निकलने की आवश्यकता है। इससे इन्कार नहीं कि विदेशी आक्रमणकारियों ने अनगिनत मंदिरों का ध्वंस किया, लेकिन यह उचित नहीं होगा कि प्रत्येक मस्जिद में मूर्तियों की खोज की जाए और यथास्थिति में बदलाव की मांग की जाए।