यह उत्साहजनक है कि माओवादी आतंकियों के आत्मसमर्पण का सिलसिला कायम है। पिछले कुछ दिनों में महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में जिस तरह बड़ी संख्या में माओवादियों ने हथियार डाले हैं, उससे यह भरोसा और बढ़ा है कि केंद्र सरकार मार्च 2026 तक माओवादी आतंक को समाप्त करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगी। इसका पता इससे भी चलता है कि गत दिवस प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहा कि देश शीघ्र ही माओवादी आतंक से मुक्त होगा और यह उनकी गारंटी है।

यह कथन उनकी सरकार की दृढ़ प्रतिज्ञा का परिचायक है। इस संदर्भ में इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि 11 वर्ष पहले देश के 125 जिले माओवादी आतंक से ग्रस्त थे। आज उनकी संख्या केवल 11 रह गई है और उनमें भी तीन जिले ही ऐसे हैं, जो माओवादियों की गतिविधियों से सर्वाधिक प्रभावित हैं।

एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि पिछले कुछ दिनों में जिन माओवादियों ने हथियार डाले हैं, उनमें कुछ ऐसे माओवादी सरगना हैं, जो इस खूनी विचारधारा को हर संभव तरीके से बल प्रदान करते थे। स्पष्ट है कि इससे बचे-खुचे माओवादी हतोत्साहित हो रहे होंगे। इस स्थिति का लाभ उठाया जाना चाहिए। माओवादियों के हतोत्साहित होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि छत्तीसगढ़ में जो इलाके उनके मजबूत गढ़ माने जाते थे, वे उनके आतंक से मुक्त करा लिए गए हैं।

माओवादी आतंकवाद इसीलिए दम तोड़ता दिख रहा है, क्योंकि मोदी सरकार ने उसके खात्मे के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति का तो परिचय दिया ही, माओवादियों से निपटने की एक ठोस रणनीति भी बनाई। इस ठोस रणनीति के लिए यदि किसी को सबसे अधिक श्रेय जाता है तो वे हैं गृहमंत्री अमित शाह। उन्होंने माओवादियों के खिलाफ जारी अभियान पर न केवल निरंतर नजर बनाए रखी, बल्कि बार-बार यह दोहराते भी रहे कि तय समय सीमा में उनका खात्मा होकर रहेगा।

यदि ऐसी ही इच्छाशक्ति का परिचय मनमोहन सरकार ने भी दिया होता तो आज नतीजा कुछ और होता। मनमोहन सरकार ने माओवादियों के खात्मे का अभियान अवश्य चलाया, लेकिन उसकी प्रखरता इस कारण बरकरार नहीं रह सकी, क्योंकि माओवादियों को वैचारिक खुराक देने वालों ने तरह-तरह के कुतर्कों के साथ विरोध का झंडा उठा लिया।

इनमें से कुछ तो ऐसे थे, जो बड़ी ही बेशर्मी से खूंखार माओवादियों को बंदूकधारी गांधी कहते थे। दुर्भाग्य से तत्कालीन सरकार में ऐसे पथभ्रष्ट विचारकों का प्रभाव था। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी ने माओवादियों के वैचारिक समर्थकों का उल्लेख अर्बन नक्सल के रूप में किया। चूंकि ये तत्व अभी भी सक्रिय हैं, इसलिए इनसे सावधान रहना होगा। इस विध्वंसकारी विचारधारा के खिलाफ विचार के स्तर पर भी लड़ना होगा।