“जब साइबर अटैक एआई-पावर्ड हो गए हैं तो सुरक्षा भी एआई-पावर्ड होनी चाहिए”

जब साइबर अटैक एआई-पावर्ड हो गए हैं तो सुरक्षा भी एआई-पावर्ड होनी चाहिए। यह कहना है आईटी फर्म जोहो (Zoho) के मैनेजइंजन में एआई सिक्युरिटी की हेड सुजाता...और पढ़ें
एस.के. सिंह जागरण न्यू मीडिया में सीनियर एडिटर हैं। तीन दशक से ज्यादा के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में ...और जानिए
मुंबई में रहने वाली एक महिला अपनी मां के लिए कोई घरेलू उपकरण तलाश रही थी। दो दिन बाद एक नंबर से वाट्सऐप पर उसे मैसेज आया जिसमें उस उपकरण के लिए 6000 रुपये का भुगतान करने को कहा गया था। भुगतान के बाद महिला को पता चला कि वह ठगी का शिकार हुई है। यह घटना बताती है कि साइबर क्राइम में किस तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल बढ़ रहा है। दरअसल, हैकर्स AI के जरिए अपने हैकिंग टूल्स को इंप्रोवाइज कर रहे हैं। आईटी फर्म जोहो (Zoho) के मैनेजइंजन (ManageEngine) में एआई सिक्युरिटी की हेड सुजाता एस. अय्यर का मानना है कि जब साइबर अटैक एआई-पावर्ड हो गए हैं तो सुरक्षा भी एआई-पावर्ड होनी चाहिए। ऐसे समय जब सरकार डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP Act) के नियमों को अंतिम रूप देने वाली है, डिजिटल सिक्युरिटी के तमाम पहलुओं पर सुजाता से जागरण प्राइम के एस.के. सिंह ने बात की। मुख्य अंश-
-साइबर अटैक लगातार सॉफिस्टिकेटेड होते जा रहे हैं। पिछले हफ्ते हमने देखा कि यूरोप के एयरपोर्ट में चेक-इन सिस्टम हैक हो गया। उससे पहले जेएलआर कंपनी साइबर अटैक का शिकार हुई। अब हैकर्स भी AI का इस्तेमाल करके हैकिंग टूल्स को इंप्रोवाइज कर रहे हैं। आने वाले समय में साइबर रिस्क का आप कैसे आकलन करती हैं?
एक दशक पहले साइबर अटैक को पहचानना आसान था। फिशिंग ईमेल में व्याकरण की अशुद्धियां होती थीं। लेकिन आज के फिशिंग ईमेल में ऐसी गलतियां नहीं होती हैं। जो एआई क्षमता हमारे पास है, वही अटैकर के पास भी है। आपने सही कहा कि आज के साइबर अटैक बहुत सॉफिस्टिकेटेड हो गए हैं। इसलिए हमारी सुरक्षा प्रणाली भी एआई-पावर्ड होनी चाहिए। अगर आपके पास फिशिंग या मालवेयर पकड़ने का सॉल्यूशन है, तो एआई से उसे और मजबूत बनाना पड़ेगा।
उदाहरण के लिए फिशिंग को ही लें, तो पुराने फिशिंग डिटेक्शन इंजन से नए हमलों को रोकना मुश्किल होगा। इसलिए हमें मशीन लर्निंग मॉडल के प्रयोग की जरूरत पड़ेगी। जिस डोमेन से फिशिंग ईमेल आते हैं उनमें कोई न कोई कमी होती ही है। मान लीजिए किसी बैंक के नाम से ईमेल आता है। बैंक का असली डोमेन वर्षों पुराना होगा, लेकिन फिशिंग डोमेन नया होगा। हो सकता है फिशिंग ईमेल भेजने के लिए दो महीने पहले वह डोमेन बनाया गया हो। ऐसे बहुत सारे फैक्टर्स हैं जिनसे उनकी पहचान की जा सकती है।
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