आरके सिन्हा। हाल में यूजीसी नेट में आयुर्वेद बायोलाजी को एक विषय के तौर पर शामिल करने का फैसला हो या फिर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पीएम जन आरोग्य योजना में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को भी शामिल करने की मांग, इससे यही पता चलता है कि आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की महत्ता बढ़ रही है।

इसका प्रमाण तब भी मिला था, जब यह खबर आई थी कि ब्रिटेन के किंग चार्ल्स बेंगलुरु के पास एक आधुनिक आरोग्यशाला में पत्नी कैमिला समेत स्वास्थ्य लाभ के लिए आए। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति से सस्ते और सफल इलाज के साथ ही विदेशियों में भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों जैसे-आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, आहार विज्ञान जैसे उपचार लोकप्रिय हो रहे हैं।

योग तो पहले से ही दुनिया भर में लोकप्रिय है। इस संदर्भ में यह भी स्मरण किया जाना चाहिए कि केरल के एर्नाकुलम स्थित श्रीधरीयम आयुर्वेदिक नेत्र अस्पताल द्वारा प्रदान की गई चिकित्सा के चलते केन्या के पूर्व प्रधानमंत्री रैला ओडिंगा की पुत्री की आंखों की रोशनी वापस आ गई थी। यह किसी चमत्कार से कम न था। इसके बाद अफ्रीकी देशों से बड़ी तादाद में रोगी आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए भारत आने लगे।

मैं अक्सर देहरादून जाता रहता हूं। हर बार मुझे वहां अनेक विदेशी मिल जाते हैं। उनसे बातचीत करने पर पता चलता है कि अधिकांश हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून या आसपास की आरोग्यशालाओं में आए होते हैं। कुछ तो महीनों के लिए आते हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कोरोना काल में दुनिया का आयुर्वेद पर भरोसा बढ़ा। इसके चलते विश्व के कई देशों में आयुर्वेदिक दवाओं की मांग बढ़ी है। आज करीब सौ देशों में भारत के हर्बल उत्पाद पहुंच रहे हैं।

आयुर्वेद की महत्ता को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी स्वीकार किया है। यह सही समय है कि आयुर्वेद के साथ अन्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में शोध को बढ़ावा दिया जाए। अब यह सिद्ध होता जा रहा है कि खानपान के जरिये भी सेहत का ध्यान रखा जा सकता है। इनमें मोटे और छोटे अनाज की महती भूमिका है। मिलेट्समैन कहे जाने वाले पद्मश्री डा. खादरवली का दावा है कि मिलेट्स से अनेक रोगों का इलाज संभव है।

उनका कहना है कि छह हफ्ते से लेकर छह महीने तक सिर्फ मिलेट्स के प्रयोग से कई बीमारियों के निदान में सफलता मिलती है। भारत में बीते कुछ वर्षों से हृदय रोग, अस्थि रोग, किडनी एवं लिवर ट्रांसप्लांट और दिल की तमाम बीमारियों के सफल इलाज के लिए दक्षिण एशियाई देशों के अलावा अफ्रीका, मध्य एशिया और खाड़ी के देशों से लेकर पश्चिमी देशों से भी हर साल लाखों रोगी आ रहे हैं।

कुछ वर्षों से दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु, चंडीगढ़ आदि के आधुनिक अस्पतालों में इलाज कराने के लिए भारी संख्या में विदेशी आने लगे हैं। दुनिया भर में बसे भारतवंशी भी स्वदेश में अपना इलाज कराना पसंद कर रहे हैं। इससे भारत मेडिकल टूरिज्म का गढ़ बन रहा है। देश के नामी प्लास्टिक सर्जन बताते हैं कि उनके पास हर महीने विदेशी बर्न इंजरी के इलाज से लेकर हेयर ट्रांसप्लांट और अपनी ढीली पड़ती त्वचा को ठीक कराने के लिए आते हैं।

हमें ऐसी नीतियां अपनानी चाहिए, जिससे अधिक से अधिक विदेशी रोगी इलाज के लिए भारत आएं। उनके भारत आने से देश को अमूल्य विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होगी। जब भी एक रोगी भारत आता है तो उसके साथ दो-तीन तीमारदार भी आते हैं। वे महीनों यहां रहते हैं। भारत में विदेश से रोगी इसलिए भी आ रहे हैं, क्योंकि यहां पर मरीजों को सर्वश्रेष्ठ प्री और पोस्ट-सर्जरी सुविधाएं यूरोप या अमेरिका की तुलना में बहुत कम कीमत पर मिल जाती हैं।

भारत के पास योग्य चिकित्सा पेशेवर और अत्याधुनिक उपकरण हैं। इसके अलावा भारत स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता से समझौता किए बिना अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में कम खर्चीला उपचार विकल्प प्रदान करता है। भारत में इलाज का खर्च अमेरिका के मुकाबले करीब एक चौथाई है। यदि हम इस मोर्चे पर संभल कर चले तो फिर विदेशी इलाज के लिए थाइलैंड, सिंगापुर और जापान जैसे देशों के बजाय भारत का ही रुख करने लगेंगे।

मेडिकल टूरिज्म अरबों डालर का सालाना कारोबार है। इस पर भारत को अपनी पकड़ मजबूत बनानी होगी। इस क्षेत्र में भारत के सामने तमाम संभावनाएं हैं, क्योंकि सारी दुनिया के लोग बेहतर इलाज के लिए अपने देशों की सरहद लांघने लगे हैं। गोवा में आयोजित जी-20 से जुड़े एक कार्यक्रम में बताया गया था कि 2022 में 14 लाख विदेशी इलाज के लिए भारत आए।

यह आंकड़ा ही साबित करता है कि भारत की मेडिकल सुविधाओं को लेकर दुनिया में भरोसा बढ़ रहा है, लेकिन हमें 2030 तक अपने यहां हर साल एक करोड़ तक विदेशी रोगियों को इलाज के लिए बुलाने के उपाय करने होंगे। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अस्पतालों और क्लीनिकों का निर्माण करके गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।

सरकार को मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए, जिसमें उचित नियम-विनियमन और प्रोत्साहन शामिल हो। भारत को अपने मेडिकल टूरिज्म का प्रचार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग अभियान भी चलाना चाहिए।

टेलीमेडिसिन, ई-परामर्श और अन्य डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं को अपनाकर भी भारत मेडिकल टूरिज्म को गति दे सकता है। भारत को आधुनिक चिकित्सा के साथ ही आयुर्वेद एवं अपनी अन्य परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार-प्रसार पर और ध्यान देना होगा। इसका एक बड़ा लाभ यह होगा कि बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार मिलेंगे।

(लेखक पूर्व सांसद और पूर्व संपादक हैं)