जागरण संपादकीय: विपक्ष की पहली प्राथमिकता हंगामा, सदन में यह स्वभाव ठीक नहीं
विपक्ष को हंगामा मचाने की इतनी जल्दी थी कि दिवंगत सांसदों को श्रद्धांजलि देने के तुरंत बाद ही हंगामा किया जाने लगा। क्या इसलिए कि उसकी पहली प्राथमिकता हंगामा करना ही था? संसद के आने वाले दिन भी हंगामे भरे हों तो आश्चर्य नहीं क्योंकि विपक्ष ने पहले ही संकेत दे दिया था कि वह इन-इन मुद्दों को संसद में उठाएगा।
संसद का कोई भी सत्र हो, उसकी शुरुआत हंगामे से होना एक परंपरा का रूप ले चुका है। यह एक खराब परंपरा है, लेकिन यह इसके बाद भी जारी है कि इससे किसी को कुछ हासिल नहीं होता-उस विपक्ष को भी नहीं, जो हंगामा करता है। विडंबना यह है कि वह हंगामे को अपनी जीत की तरह प्रस्तुत करता है।
संसद में इस या उस मुद्दे के बहाने हंगामा करना एक राजनीतिक स्वभाव बन गया है। जब जो दल विपक्ष में होता है, वह हंगामा करना पसंद करता है और वह भी तब, जब वह सत्ता में रहते समय हंगामे से त्रस्त हो चुका होता है। इस पर हैरानी नहीं कि संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन दोनों सदनों में हंगामा हुआ।
विपक्ष को हंगामा मचाने की इतनी जल्दी थी कि दिवंगत सांसदों को श्रद्धांजलि देने के तुरंत बाद ही हंगामा किया जाने लगा। क्या इसलिए कि उसकी पहली प्राथमिकता हंगामा करना ही था? संसद के आने वाले दिन भी हंगामे भरे हों तो आश्चर्य नहीं, क्योंकि विपक्ष ने पहले ही संकेत दे दिया था कि वह इन-इन मुद्दों को संसद में उठाएगा।
विपक्ष यदा-कदा अपने हिसाब से ज्वलंत मुद्दों को उठाता है, लेकिन उन पर सार्थक बहस करने और सरकार से जवाब मांगने के बजाय उसकी दिलचस्पी इसमें अधिक होती है कि संसद चलने न पाए। आम तौर पर विपक्ष संसद में सरकार को घेरने के लिए मुद्दों का चयन खुद नहीं करता। वह उन मुद्दों को लेकर आगे आ जाता है, जो संसद सत्र के पहले से ही चर्चा में आ गए होते हैं।
यह पहले से तय था कि मणिपुर और अदाणी प्रकरण के साथ संभल का मामला भी विपक्ष की कार्यसूची में आ जाएगा। ऐसे मामले उसकी कार्यसूची में होने ही चाहिए, लेकिन क्या उसके लिए यह भी आवश्यक नहीं कि वह अपने स्तर पर जनता से जुड़े कुछ मुद्दों का चयन करे और इसके लिए प्रयत्न करे कि सरकार उन पर जवाब दे?
शिक्षा, स्वास्थ्य, शहरीकरण समेत न जाने कितने ऐसे विषय हैं, जिन पर संसद में व्यापक विचार-विमर्श होना चाहिए। पता नहीं क्यों विपक्ष इन विषयों पर संसद में चर्चा के लिए गंभीर नहीं दिखता? विपक्ष हंगामा कर संसद को बाधित करते रह सकता है, लेकिन वह ऐसा करके जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता।
जनता हंगामा नहीं, राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सरकार का जवाब चाहती है। संसद में हंगामा करते रहने की अपनी आदत पर विपक्ष को तो विचार करना ही चाहिए, सत्तापक्ष को भी यह देखना चाहिए कि संसद सही ढंग से कैसे चले? इसके लिए उसे विपक्ष को भरोसे में लेने के साथ ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर गंभीर विचार-विमर्श के लिए माहौल बनाने के लिए आगे आना चाहिए। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कटुता दूर होनी चाहिए। यह तभी संभव है, जब दोनों पक्ष एक-दूसरे को आदर देंगे।