यह अच्छा है कि सरकार बिना बीमा वाहन चलाने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए इंश्योरेंस इन्फार्मेशन ब्यूरो बनाया जा रहा है, जहां सभी वाहनों का डाटा होगा। इस ब्यूरो के जरिये जिन वाहनों का बीमा नहीं पाया जाएगा, उनके मालिकों को चेतावनी संदेश भेजा जाएगा और उस पर ध्यान न देने वालों पर जुर्माना लगाया जाएगा। ऐसा किया ही जाना चाहिए, लेकिन यह ध्यान रहे कि बात तब बनेगी, जब बीमा रहित वाहन चलाने वालों के खिलाफ सचमुच कठोर कार्रवाई की जाएगी।

चूंकि अभी ऐसा नहीं किया जाता, इसलिए बड़ी संख्या में लोग बीमा खत्म होने के बाद भी उसके बगैर वाहन चलाते रहते हैं। यह स्थिति यही बताती है कि अपने देश में आवश्यक नियम-कानूनों का पालन न करने की प्रवृत्ति कायम है। यह प्रवृत्ति सब चलता है वाले रवैए को ही बयान करती है। यह प्रवृत्ति वाहन मालिकों के साथ-साथ सरकारी तंत्र की ढिलाई का भी नतीजा है।

यह ढिलाई किस बड़े पैमाने पर बरती जा रही है, इसका पता इससे चलता है कि सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए एक आंकड़े के अनुसार देश में 50 प्रतिशत से अधिक वाहन बिना बीमा के चलाए जाते हैं। जब कभी बिना बीमा वाले वाहन दुर्घटना से दो-चार होते हैं, तब वाहन स्वामी के साथ हादसे के शिकार व्यक्ति को भी अतिरिक्त मुसीबत का सामना करना पड़ता है।

अपने देश में मार्ग दुर्घटनाओं और उनमें मरने एवं घायल होने वालों की संख्या बढ़ती ही चली जा रही है। बिना बीमा वाहन चलाने वाले दुर्घटना की स्थिति में अपने साथ-साथ दूसरों को संकट में ही नहीं डालते, मुकदमेबाजी का कारण भी बनते हैं। ऐसे लोग इससे बेपरवाह रहते हैं कि उनके वाहन का बीमा न पाए जाने पर उन्हें जुर्माना भरना पड़ सकता है। इस बेपरवाही के मूल में है जुर्माने की राशि अधिक न होना और पकड़े जाने पर कुछ ले-देकर या रौब जमाकर छूट जाने का भरोसा होना।

नियम-कानूनों की अनदेखी तभी होती है, जब उनके पालन का तंत्र निष्प्रभावी या नाकाम होता है। अपने देश में ऐसा हर क्षेत्र में होता है। इसी कारण सार्वजनिक सुरक्षा खतरे में पड़ती रहती है और बढ़ते सड़क हादसों पर लगाम नहीं लग पा रही है। आवश्यक केवल यह नहीं कि बिना बीमा वाहन न चलने दिए जाएं, बल्कि यह भी है कि अकुशल चालकों, खटारा वाहनों, खराब सड़कों के साथ-साथ यातायात नियमों की अवेहलना के चलते होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाई जाए।

इसके लिए केवल नियम-कानूनों को कठोर ही नहीं करना होगा, उन पर सही तरह अमल भी सुनिश्चित करना होगा। आम तौर पर ऐसा करने की घोषणा कर दी जाती है और कभी-कभी तो नियम-कानूनों में संशोधन भी कर दिया जाता है, लेकिन उनके पालन के अभाव में नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहता है।