बढ़ती गर्मी से गेहूं की फसल के लिए बढ़ा संकट, खाद्यान्न सुरक्षा के लिए उठाने होंगे कदम

मौसम विभाग के मुताबिक इस साल मार्च में देश के कई हिस्सों में गर्मी सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। जलवायु परिवर्तन के चलते पिछले कुछ सालों से फरवर...और पढ़ें
नई दिल्ली, जागरण प्राइम। मौसम विभाग के मुताबिक इस साल मार्च से मई के बीच देश के कई हिस्सों में गर्मी सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। मार्च से ही हीटवेव दर्ज की जा सकती है। जलवायु परिवर्तन के चलते पिछले कुछ सालों से फरवरी और मार्च में औसत तापमान सामान्य से अधिक रह रहा है। मौसम के प्रभाव के चलते पिछले 4 साल से गेहूं के दाम ऊंचे बने हुए हैं। फरवरी का औसत तापमान पहले ही 125 साल में सबसे अधिक दर्ज किया जा चुका है। फरवरी और मार्च में सामान्य से ज्यादा तापमान के चलते गेहूं की फसल पर असर पड़ने की आशंका है। ज्यादा गर्मी से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य भारत तथा दक्षिण के कुछ राज्यों तक गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान ने मार्च में बढ़ती गर्मी को ध्यान में रखते हुए किसानों के लिए एडवाइजरी भी जारी की है। संस्थान के निदेशक डॉक्टर रतन तिवारी कहते हैं कि मार्च की अभी शुरुआत हुई है। फिलहाल औसत तापमान सामान्य से बहुत ज्यादा नहीं है। ऐसे में उत्पादन को लेकर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन निश्चित तौर पर फरवरी और मार्च में बढ़ती गर्मी गेहूं की फसल के लिए नुकसानदायक है। इस समय गेहूं की बालियों में दाने पड़ते हैं। इस समय तेज गर्मी दानों को सुखा देती है जिससे दाने छोटे रह जाते हैं। इससे उत्पादन पर असर पड़ता है। बढ़ती गर्मी को ध्यान में रखते हुए किसानों के लिए एडवाइजरी भी जारी की गई है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश के 573 ग्रामीण जिलों में जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर खतरे का आकलन किया है। इस आकलन के अनुसार 2020 से 2049 तक 256 जिलों में अधिकतम तापमान 1 से 1.3 डिग्री सेल्सियस और 157 जिलों में 1.3 से 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की आशंका है। इससे गेहूं की खेती प्रभावित होगी। इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेज एंड व्हीट रिसर्च के प्रोग्राम निदेशक डॉ. पीके अग्रवाल के एक अध्ययन के मुताबिक तापमान एक डिग्री बढ़ने से भारत में गेहूं का उत्पादन 4 से 5 मिलियन टन तक घट सकता है। तापमान 3 से 5 डिग्री बढ़ने पर उत्पादन में 19 से 27 मिलियन टन तक कमी आएगी।
आईसीएआर की संस्था सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईलैंड एग्रीकल्चर के निदेशक डॉक्टर विनोद कुमार सिंह कहते हैं, फरवरी और मार्च में बढ़ती गर्मी गेहूं के उत्पादन को सीधे प्रभावित करती है। इस प्रभाव को कम करने के लिए किसान स्प्रिंकलर से सिंचाई कर सकते हैं इससे एक तरफ पानी की खपत कम होती है वहीं फसल में लम्बे समय तक नमी बनी रहती है। किसानों को बदलते मौसम के अनुरूप अपनी खेती की पद्धति को भी बदलना होगा। जो किसान समय से या थोड़ा पहले फसल लगा चुके होंगे उनकी फसल में दाने पड़ चुके होंगे। उनकी फसल को नुकसान कम होगा। जिन्होंने लेट फसल लगाई है उनकी फसल को ज्यादा नुकसान हो सकता है। किसानों को अब गेहूं की फसल लगाने के साथ ही खेतों में पुआल की मल्चिंग करनी चाहिए। इससे खेत में नमी बनी रहती है और फरवरी और मार्च में बढ़ती गर्मी के प्रभाव को कुछ कम किया जा सकता है।
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