मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज में श्रेष्ठता के लिए AI का टार्गेटेड उपयोग जरूरीः नीति आयोग

NITI Aayog on AI सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने AI पर एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें बताया गया है कि अगर विभिन्न उद्योगों के लिए टार्गेटेड तरीके से एआई क...और पढ़ें
एस.के. सिंह जागरण न्यू मीडिया में सीनियर एडिटर हैं। तीन दशक से ज्यादा के करियर में इन्होंने कई प्रतिष्ठित संस्थानों में ...और जानिए
प्राइम टीम, नई दिल्ली।
अगले एक दशक में विभिन्न क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को अपनाने से विश्व अर्थव्यवस्था में 17-26 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर का इजाफा होने की उम्मीद है। विशाल STEM वर्कफोर्स, R&D इकोसिस्टम का विस्तार और बढ़ती डिजिटल एवं तकनीकी क्षमता के बल पर भारत वैश्विक AI वैल्यू में 10-15 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर सकता है। नीति आयोग ने ‘विकसित भारत के लिए एआई: तेज आर्थिक विकास का अवसर’ शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट में यह दावा किया है। इसके मुताबिक वर्तमान 5.7% विकास दर के साथ भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वर्ष 2035 तक 6.6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य के तहत 8% की विकास दर के साथ देश की जीडीपी दस वर्षों में 8.3 ट्रिलियन डॉलर हो सकती है। यह सामान्य विकास गति की तुलना में 1.7 ट्रिलियन डॉलर अधिक होगा।
विभिन्न उद्योगों की उत्पादकता बढ़ाने में एआई की क्षमता का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। इस अध्ययन में 16 क्षेत्रों के 850 से अधिक व्यवसाय शामिल किए गए और 2,100 से अधिक विशिष्ट कार्यों का परीक्षण किया गया। विश्लेषण से पता चला कि उत्पादकता में सुधार, कामकाज में दक्षता और हाई वैल्यू वाले कार्यों में एआई को अपनाने से 2035 तक भारत की जीडीपी में 500-600 अरब डॉलर का अतिरिक्त योगदान हो सकता है। इसमें सबसे अधिक लाभ मैन्युफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र को होगा।
रिपोर्ट की प्रस्तावना में नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने लिखा है, “यदि विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक 8 प्रतिशत विकास दर को हासिल करना है, तो हमारे पास अर्थव्यवस्था में उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि करने और इनोवेशन के माध्यम से वृद्धि को गति देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।”
“एक केंद्रित और क्षेत्र विशिष्ट वाले दृष्टिकोण के साथ बैंकिंग और मैन्युफैक्चरिंग जैसे सेक्टर एफिसिएंसी, सर्विस क्वालिटी और प्रतिस्पर्धी क्षमता में सुधार के लिए एआई का उपयोग कर सकते हैं। भारत को एआई-सक्षम दवा की खोज से लेकर सॉफ्टवेयर-डिफाइन्ड वाहनों तक इनोवेशन को बढ़ावा देना होगा। यही विकास का अगला इंजन होगा।”
नीति आयोग की विशिष्ट फेलो देबजानी घोष के अनुसार, “भारत के लिए बड़े पैमाने पर AI क्रांति का नेतृत्व करने का समय आ गया है। मजबूत पॉलिसी फ्रेमवर्क, उन्नत इन्फ्रास्ट्रक्चर और सहयोगात्मक इनोवेशन के साथ भारत विकास और सामाजिक उन्नति के एक नए मॉडल का नेतृत्व कर सकता है, जिससे आने वाले दशकों तक समृद्धि और तकनीकी नेतृत्व सुनिश्चित होगा।”
नीति आयोग का कहना है कि मैन्युफैक्चरिंग, वित्तीय सेवा, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोटिव उद्योग में एआई पर ध्यान केंद्रित करके इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा सकेगा, उत्पादकता में सुधार किया जा सकेगा और निर्यात क्षमता बढ़ाई जा सकेगी।
मैन्युफैक्चरिंगः एआई से 10 वर्षों में 100 अरब डॉलर का लाभ
रिपोर्ट में कहा गया है कि मैन्युफैक्चरिंग में AI के नेतृत्व वाली उत्पादकता और दक्षता में सुधार से 2035 तक 85-100 अरब डॉलर का लाभ हो सकता है। एआई बेहतर प्रोडक्ट डिजाइन, रियल-टाइम क्वालिटी कंट्रोल और व्यापक कस्टमाइजेशन से कम कीमत पर उच्च-गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन संभव बना सकता है। हालांकि एआई-आधारित मैन्युफैक्चरिंग का पूरा लाभ उठाने के लिए फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज, दोनों को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय मैन्युफैक्चरिंग मिशन में पाच प्रमुख स्तंभ बताए गए हैंः व्यापार करने में आसानी, भविष्य के लिए तैयार कार्यबल, जीवंत MSME क्षेत्र, प्रौद्योगिकी की उपलब्धता और गुणवत्तापूर्ण उत्पाद। इनमें से भविष्य के लिए तैयार कार्यबल, प्रौद्योगिकी की उपलब्धता और जीवंत MSME क्षेत्र, इन तीनों पर AI का काफी प्रभाव पड़ेगा।
आयोग के अनुसार, विश्वस्तरीय स्मार्ट-फैक्ट्री कॉरिडोर का निर्माण करके एआई डेवलपमेंट तेज किया जा सकता है। इसके लिए ये उपाय किए जा सकते हैंः (1) एआई-तैयार औद्योगिक पार्क बनाना जहां स्वच्छ-ऊर्जा संयंत्र, उच्च प्रदर्शन वाले कंप्यूटिंग लैब और रोबोटिक्स परीक्षण क्षेत्र हों; (2) मैन्युफैक्चरिंग डेटा ग्रिड लांच करना ताकि उपकरण निर्माता, आपूर्तिकर्ता और स्टार्टअप एक मानक एपीआई के माध्यम से रियल टाइम प्रोडक्शन डेटा का आदान-प्रदान कर सकें; और (3) माइक्रो-लर्निंग से पोस्ट ग्रैजुएशन स्तर तक इंजीनियरों को अप-स्किल करने के लिए स्तरीय ‘उन्नत मैन्युफैक्चरिंग के लिए एआई’ सुविधा शुरू करना।
वित्तीय सेवाः वैल्यू 50 अरब डॉलर बढ़ा सकता है एआई
एआई-आधारित उत्पादकता और दक्षता में सुधार से वित्तीय सेवाओं में 2035 तक इस क्षेत्र की वैल्यू में 50-55 अरब डॉलर की वृद्धि हो सकती है। एआई बैंकिंग वैल्यू चेन में व्यावसायिक और फंक्शनल परिवर्तन को गति प्रदान करता है, प्रत्येक उत्पाद, प्रक्रिया और कस्टमर रिलेशन में इंटेलिजेंस को समाहित करता है। इसमें एआई को तेजी से अपनाने के लिए ये कदम उठाए जा सकते हैंः (1) धोखाधड़ी/जोखिम और एंटीमनीलॉन्ड्रिंग मॉडल का परीक्षण करने के लिए सैंडबॉक्स पायलट बढ़ाना; (2) वैकल्पिक, सहमति-आधारित डेटासेट साझा करने के लिए मौजूदा ढांचे में वृद्धि; और (3) राष्ट्रीय ‘वित्तीय सेवाओं के लिए एआई’ कार्यक्रम के जरिए विशेषज्ञों को प्रमाणित करना तथा वित्तीय संस्थानों के लिए एक विश्वसनीय टैलेंट बेंच बनाना।
फार्मास्यूटिकल्सः नई दवा की खोज की लागत और समयसीमा कम होगी
अभी भारत के फार्मा बाजार का 80 प्रतिशत हिस्सा जेनेरिक दवाओं का है। ऐसा इसलिए है क्योंकि नई दवा विकसित करने की लागत अधिक होती है। यह प्रति मॉलिक्यूल 1-2 अरब डॉलर तक है। इसमें समय भी 10 वर्ष से अधिक लगता है। एआई लागत और समयसीमा कम करने में मदद कर सकता है। इससे भारत अगले दशक में जेनेरिक दवाओं से नई दवाओं के क्षेत्र में प्रवेश कर सकेगा। जेनेरिक दवाओं में विशेषज्ञता, मौजूद प्रतिभा और समृद्ध जेनेटिक पूल के कारण भारत इस अवसर का लाभ उठाने की अच्छी स्थिति में आ सकता है।
इसके लिए ये कदम उठाए जा सकते हैं: (1) बायोटेक पार्कों का 10 गुना विस्तार करना और एआई मॉडलिंग को सशक्त बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ तथा उच्च प्रदर्शन वाली कंप्यूटिंग को जोड़ना; (2) उच्च स्तर के शोधकर्ता तक पहुंच के साथ एकीकृत राष्ट्रीय डेटासेट बनाना; और (3) 2035 तक कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी तथा एआई में एक लाख से अधिक बायोफार्मा आरएंडडी वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित करना।
ड्रग रिपर्पसिंग, एआई-संचालित रिसर्च और डॉक्यूमेंटेशन तथा क्लिनिकल ट्रायल में पारंपरिक प्लेसीबो की जगह एआई-जनित आभासी प्लेसीबो के इस्तेमाल से एआई आरएंडडी लागत 20-30 प्रतिशत कम कर सकता है। एआई दवा खोज में लगने वाले समय को 60-80 प्रतिशत कम कर सकता है। यह क्लिनिकल ट्रायल की सफलता दर में भी 5-15 प्रतिशत तक सुधार कर सकता है।
ऑटोमोटिव और कंपोनेंटः सॉफ्टवेयर-रेडी वाहन में मददगार एआई
ऑटोमोटिव क्षेत्र के लिए एआई क्रांतिकारी बदलाव साबित हो सकता है। इससे लागत में कमी, सुरक्षा में सुधार और इनोवेशन में तेजी आ सकती है। रिपोर्ट में ऑटोमोटिव क्षेत्र के लिए दो रास्ते तलाशे गए हैं: सॉफ्टवेयर-असिस्टेड वाहन (एसएवी) और एआई-इनेबल्ड कंपोनेंट डिजाइन। RFID-आधारित स्मार्ट कॉरिडोर, 5जी-कनेक्टेड रूट और एआई-संचालित डिजाइन और सत्यापन जैसी टेक्नोलॉजी का उपयोग करके 2035 तक भारतीय सड़कों पर 1.8-2 करोड़ सॉफ्टवेयर-रेडी वाहन चलाए जा सकते हैं। निर्यात और आयात में भी 20-25 अरब डॉलर का लाभ मिल सकता है।
सॉफ्टवेयर आधारित और ऑटोनोमस मोबिलिटी के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं: (1) भारत के अनुकूल ऑटोनोमस वाहनों के सत्यापन के लिए छह से आठ भौतिक-डिजिटल परीक्षण पार्क स्थापित करना; (2) रियल टाइम वाहन-से-इन्फ्रास्ट्रक्चर के डेटा प्रवाह के लिए 10,000 किमी 5जी / प्रारंभिक 6जी स्मार्ट कॉरिडोर तैयार करना; और (3) राष्ट्रीय सुरक्षा और इनोवेशन डेटासेट के लिए हर साल 20-25 प्रतिशत नए वाहनों से टेलीमेट्री को अनिवार्य करना।
डीप-लर्निंग सरोगेट्स (DLS) जैसे AI-संचालित मॉडल आरएंडडी वैल्यू चेन को बदल रहे हैं। ये कंपोनेंट डिजाइन, टेस्टिंग और मैन्युफैक्चरिंग तरीके को नई परिभाषा दे रहे हैं। AI मॉडल मिलीसेकंड में सिमुलेशन करते हैं, जिससे आरएंडडी चक्र में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। इससे अधिक कुशल और कम लागत वाले इनोवेशन संभव होते हैं। भारत अभी 500-550 अरब डॉलर के वैश्विक ऑटोमोटिव पार्ट्स निर्यात बाजार में 1-2% यानी 7-8 अरब डॉलर का योगदान देता है। इसके लिए अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में DLS सहायक हो सकता है। इससे आयात पर निर्भरता कम करने में भी मदद मिलेगी।
‘भारत एआई मिशन’ के बारे में आयोग का कहना है कि डेटा, प्रतिभा और एडॉप्शन पर ध्यान केंद्रित करके एआई क्षमता बढ़ाने की दिशा में यह एक आधारभूत कदम है। सात प्रमुख स्तंभों पर आधारित इस मिशन का पांच वर्षों का बजट 10,000 करोड़ रुपये है। इसके तहत एक केंद्रीय कंप्यूट नेटवर्क के माध्यम से 38,000 से अधिक जीपीयू तैनात करने, भारत-विशिष्ट एलएलएम विकसित करने और एक अनाम लेकिन सहमति-आधारित सार्वजनिक डेटासेट प्लेटफॉर्म स्थापित करने का लक्ष्य है। इस पहल का उद्देश्य विभिन्न शैक्षणिक स्तरों पर एआई पाठ्यक्रमों के एकीकरण और टियर 2 व टियर 3 शहरों में एआई-डेटा लैब के माध्यम से एआई कौशल का विस्तार करना है। साथ ही कृषि, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और मोबिलिटी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एप्लिकेशन डेवलपमेंट के जरिए टेक्नोलॉजी को अपनाने में तेजी लाना है।
भारत 2035 तक कुशल पेशेवर तैयार करके, अनुसंधान को आगे बढ़ाकर और एआई मॉडलों में योगदान कर अग्रणी देशों के साथ एआई में स्किल के अंतर को कम कर सकता है। इसके लिए एआई रिसर्च पर केंद्रित पीएचडीधारकों की संख्या बढ़ाने, व्यावहारिक विशेषज्ञता और पेटेंट के आधार पर एआई में मौलिक योगदान पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
इस उद्देश्य के लिए रिपोर्ट में कई उपाय बताए गए हैंः
• अकादमिक जगत का बेहतर उपयोग: विषय विशेषज्ञता और एआई के संयोजन में पीएचडी/सीनियर क्वालिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिए शीर्ष 20 टेक्नोलॉजी, चिकित्सा, विधि और बिजनेस स्कूलों में एआई चेयर की स्थापना।
• उद्योग को प्रोत्साहन: एआई-फर्स्ट मॉड्यूल के जरिए 3-5 प्रतिशत कार्यरत पेशेवरों को कौशल प्रदान करने के तरीके निकालना। इसके लिए नियोक्ता को कर छूट की सुविधा दी जा सकती है।
• भारत का कौशल विकास: एक एआई ओपन यूनिवर्सिटी स्किल इंडिया डिजिटल/ई-श्रम को बढ़ावा दे सकती है।
• पेशेवरों को तैयार करना: विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट कौशल प्रदान करना। जैसे, वित्तीय सेवा क्षेत्र में शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर क्रेडिट, जोखिम और धोखाधड़ी के लिए एआई में एक राष्ट्रीय सर्टिफिकेशन कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है। मैन्युफैक्चरिंग में उद्योग के सहयोग से एक स्तरीय ‘उन्नत मैन्युफैक्चरिंग के लिए एआई’ प्रमाणपत्र शुरू किया जा सकता है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का अनुमान है कि 23-25 प्रतिशत भूमिकाएं पांच वर्षों के भीतर बदल जाएंगी, 6.9 करोड़ नए रोजगार सृजित होंगे तो 8.3 करोड़ खत्म भी हो सकते हैं। ओईसीडी ने पाया है कि 27% नौकरियों पर ऑटोमेशन का खतरा है।
आयोग के अनुसार, भारत ऐसी व्यवस्था बना सकता है जहां कर्मचारियों की निरंतर अपस्किलिंग हो, कंपनी स्तर पर डिजिटल व्यवस्था को अपनाने में तेजी आए और सुरक्षा को मजबूत बनाए। इसके लिए नौकरियों में होने वाले बदलाव की मैपिंग करनी पड़ेगी, एमएसएमई में डिजिटल अपस्किलिंग को बढ़ाना होगा और गिग तथा प्लेटफॉर्म कर्मचारियों की सुरक्षा करनी पड़ेगी। ऐसे कर्मचारियों की संख्या 2029-30 तक 2.35 करोड़ पहुंचने का अनुमान है।
वर्कफोर्स को तैयार करने के लिए भारत निम्न विकल्पों पर विचार कर सकता है:
निरंतर रिस्किलिंग: ‘वर्कफोर्स सिंगापुर’ जैसे मॉडलों का उपयोग करते हुए प्राथमिकता वाले 25-30 सेक्टर के लिए नौकरियों में होने वाले बदलाव की मैपिंग करना। इससे कामकाज के तरीके में होने वाले बदलावों, उभरती भूमिकाओं और रिस्किलिंग के तरीकों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
सुलभ शिक्षण: एक तरीका डिजिटल और पोर्टेबल व्यक्तिगत लर्निंग एकाउंट शुरू करना हो सकता है। सिंगापुर का ‘स्किल्सफ्यूचर’ और इंग्लैंड का ‘लाइफलॉन्ग लर्निंग एंटाइटेलमेंट’ इसके लिए विचारनीय मॉडल हैं।
गिग-प्लेटफॉर्म कर्मचारियों की मदद: सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) लागू करके सार्वभौमिक पंजीकरण और स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना कवर और सेवानिवृत्ति बचत जैसे लाभ दिए जा सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की सबसे बड़ी ताकत इसका विशाल डेटा भंडार है। डिजिटल अर्थव्यवस्था में डेटा ऐसी मुद्रा है जो इनोवेशन को बढ़ावा देगा, मूल्यांकन को गति देगा और वैश्विक नेतृत्व को आकार देगा। भारत अपने आकार, विविधता और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण नेतृत्व की क्षमता रखता है। गुणवत्तापूर्ण, विश्वसनीय और इंटर-ऑपरेबल डेटा को केंद्र में रखकर भारत विश्व की डेटा राजधानी बन सकता है।
इसके लिए भारत डेटा प्रबंधन कार्यालय (आईडीएमओ) और राष्ट्रीय डेटा एक्सेस प्लेटफॉर्म जैसी संस्थाओं के नेतृत्व में सार्वजनिक डेटा को आसानी से और सुरक्षित रूप से एकत्र करने के लिए एक डेटा संग्रह फ्रेमवर्क तैयार करना होगा। राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क के तहत गोपनीयता और क्वालिटी सर्टिफिकेशन सुविधाओं के साथ नॉन-पर्सनल डेटा बाजार बनाना होगा। वित्तीय सेवाएं, मैन्युफैक्चरिंग, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोटिव क्षेत्र के लिए विशेष डेटा प्लेटफॉर्म विकसित करने की जरूरत पड़ेगी।
भारत की अर्थव्यवस्था पर एआई के संपूर्ण प्रभाव की कल्पना करना कठिन है। यह रिपोर्ट एक प्रारंभिक बिंदु प्रस्तुत करती है। इसमें बताए दृष्टिकोण को लॉजिस्टिक्स, कंस्ट्रक्शन और रिटेल समेत अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है। इसमें अनेक अवसर हैःं आईएमएफ का अनुमान है कि एआई अगले दशक में वैश्विक जीडीपी को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है; वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का आकलन है कि एआई को अपनाने से दुनिया में लगभग एक-चौथाई काम पांच वर्षों के भीतर बदल जाएंगे; मैकिन्से के शोध से पता चलता है कि अकेले जनरेटिव एआई हाल के इतिहास में किसी भी तकनीकी लहर से कहीं अधिक योगदान कर सकता है।
आयोग का कहना है कि श्रमशक्ति में परिवर्तन भारत में एआई को अपनाने के तरीके में केंद्रीय भूमिका निभाएगा। अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों का अनुमान है कि दुनिया में 35-40 प्रतिशत नौकरियों पर एआई का खतरा है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में इसका जोखिम अधिक है, पर उभरते देशों में भी व्यापक प्रभाव होगा। अनुमान बताते हैं कि एआई अनेक नई भूमिकाएं पैदा करेगा, लेकिन यह अनेक मौजूदा नौकरियों को भी विस्थापित करेगा, खासकर कम-कौशल वाले क्षेत्रों में।
ऐसे में भारत के लिए चुनौती दोहरी है- नए अवसरों का लाभ उठाने के लिए उन्नत डिजिटल और एआई कौशल वाला कार्यबल तैयार करना, और साथ ही यह सुनिश्चित करना कि एआई के कारण हटाए गए लोगों की रिस्किलिंग करके उन्हें लाभकारी काम में वापस लाया जा सके।
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बढ़ते कर्ज और घटती बचत के दौर में युवाओं का इक्विटी में अधिक निवेश, संतुलित पोर्टफोलियो ही रास्ता
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