राजीव सचान। राजधानी दिल्ली में लाल किले के पास जिस कार में भीषण धमाका हुआ और जिसके चलते दस से अधिक लोग मारे गए, उसका चालक भी एक डाक्टर ही निकला। नाम है उमर मोहम्मद। उसने विस्फोटक से लैस कार के साथ या तो खुद को उड़ा लिया या फिर किसी गफलत में धमाका कर बैठा। पुलवामा का उमर उन तीन डाक्टरों का सहयोगी निकला, जिनके पास से फरीदाबाद में करीब 3000 किलो विस्फोटक और हथियार मिले थे।

इनमें एक का नाम डाक्टर मुजम्मिल है और दूसरे का डाक्टर आदिल। दोनों कश्मीर के हैं। इनकी तीसरी साथी डाक्टर शाहीन है। शाहीन लखनऊ की है। इनके और साथियों की भी तलाश की जा रही है। हैरानी नहीं कि उनके संपर्क में और भी ऐसे डाक्टर निकलें, जो आतंकी हों। इन डाक्टरों के अतिरिक्त एक अन्य डाक्टर मोहिउद्दीन गुजरात पुलिस की गिरफ्त में है। उसने चीन से मेडिकल की पढ़ाई की है। उसे गुजरात पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने उसके दो साथियों के साथ हथियारों संग गिरफ्तार किया। वह अरंडी के बीज से बेहद घातक जहर राइसिन बनाने की तैयारी कर रहा था, ताकि एक साथ तमाम लोगों को मारा जा सके।

यह पहली बार नहीं है जब किसी आतंकी साजिश और घटना में किसी डाक्टर का नाम सामने आया हो। इसके पहले भी कई डाक्टर आतंक की राह पर चलते पकड़े जा चुके हैं। हाल के समय में इनमें सबसे चौंकाने वाला नाम पुणे के डाक्टर अदनान अली सरकार का था। उसे एनआइए ने 2023 में गिरफ्तार किया था। वह शहर का प्रतिष्ठित डाक्टर था, लेकिन खूंखार आतंकी समूह आइएस के लिए काम कर रहा था। बीते वर्षों में डाक्टरों के अलावा कई ऐसे आतंकी गिरफ्तार किए गए हैं, जो इंजीनियर थे।

इनमें से एक बेंगलुरु में बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रहा था और शामी विटेनस नाम से आनलाइन सक्रिय रहकर मुस्लिम युवाओं को आइएस में भर्ती के लिए उकसाता भी था और उन्हें सीरिया भेजने में मदद भी करता था। डाक्टरों और इंजीनियरों के अलावा अन्य तमाम उच्च शिक्षित मुस्लिम युवा आतंकी के रूप में पकड़े जा चुके हैं। कुछ इसलिए नहीं पकड़े जा सके, क्योंकि वे पुलिस के हत्थे चढ़ने के पहले आइएस या अलकायदा का हाथ बंटाने सीरिया और अफगानिस्तान पहुंच गए। अब ऐसे पढ़े-लिखे और यहां तक कि उच्च शिक्षित युवाओं की गिनती करना कठिन है, जो आतंकी बन गए।

यह धारणा नितांत मिथ्या सिद्ध हो चुकी है कि अशिक्षित अथवा गरीब ही मजहबी उन्माद से ग्रस्त होकर या फिर किसी प्रताड़ना के चलते आतंकी बनते हैं। पिछले दो-तीन दशकों में देश और दुनिया में न जाने कितने ऐसे मुस्लिम युवकों ने आतंकी बनना पसंद किया है, जो उच्च शिक्षित थे। दुनिया भर से ऐसे युवाओं को सबसे अधिक आकर्षित किया आइएस ने। भारत में केरल से लेकर कश्मीर तक में अनेक पढ़े-लिखे मुस्लिम युवा आतंकी बन चुके हैं। पहले उनके बारे में ऐसी खबरें आती थीं कि वे किसी जिहादी मौलवी-मौलना के संपर्क आए और आतंकी बन गए। फिर ऐसी खबरें आने लगीं कि वे इंटरनेट पर जिहादी सामग्री देखकर आतंकी बन गए। कुछ तो मजहबी उन्माद से इतना अधिक भर गए कि उन्होंने गजवा ए हिंद या ऐसे ही किसी नाम से खुद का आतंकी गुट बना लिया। क्या यह किसी से छिपा है कि ऐसे नामों की प्रेरणा मजहबी मान्यताओं से ही मिलती है?

मोडिकल या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए आतंकी बनना पसंद करने वालों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वे प्रताड़ित थे या फिर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। वे चाहते तो खुशहाल जिंदगी जीते रह सकते थे, लेकिन उन पर आतंकी बनने का भूत सवार हुआ। ऐसा क्यों हुआ, इसका जवाब इस कथन में नहीं खोजा जा सकता कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता। इस कथन को लेकर सदैव विवाद होता रहता है, लेकिन इसमें तो कोई विवाद ही नहीं कि मजहब की आड़ लेकर या फिर उसके सहारे ही आतंक के रास्ते पर चला जाता है। दुनिया भर के जिहादी गुट मजहबी मान्यताओं से ही लैस हैं। इन्हीं के सहारे वे अपनी जिहादी हरकतों को सही ठहराते हैं। उनके खिलाफ समय-समय पर फतवे जारी होते रहे हैं, लेकिन अब डाक्टरों, इंजीनियरों के भी आतंकी बनने से यही सिद्ध होता है कि वे प्रभावी नहीं साबित हो रहे हैं।

जिहादी आतंक एक विचारधारा की उपज है। इस खतरनाक विचारधारा से अकेले पुलिस, खुफिया एजेंसियां और सरकारें नहीं निपट सकतीं। उससे निपटना सरकारों के साथ समाज की भी जिम्मेदारी है। समाज इस जिम्मेदारी का निर्वहन तभी कर सकता है, जब वह यह समझेगा कि समस्या उन मजहबी सिद्धांतों और मूल्यों-मान्यताओं में है, जिनकी बड़ी आसानी से मनचाही व्याख्या कर ली जाती है। जिहादी आतंक से निपटने के लिए यह भी आवश्यक है कि सस्ती और संकीर्ण राजनीति न हो। दिल्ली में धमाका होते ही बिहार में मतदान के दूसरे चरण का उल्लेख करके चटखारे लेकर यह कहा जाने लगा, पता करो कहीं चुनाव हैं क्या? ऐसी छिछली बातें आतंकियों और उनके समर्थकों की ही मदद करती हैं।

देश के किसी न किसी हिस्से से पुलिस की ओर से रह-रहकर किसी आतंकी माड्यूल का भंडाफोड़ करने, आतंकियों को गिरफ्तारी करने और उनके पास से विस्फोटक-हथियार बरामद करने की खबरें आती ही रहती हैं। इसका यह मतलब नहीं कि आतंकी खतरा कम हो रहा है। सच यह है कि वह दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि अब सम्मानित पेशे वाले भी आतंकी बन रहे हैं।


(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)